03-Oct-2017 08:48 AM
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आतंकवाद के उन्मूलन के लिए संयुक्त प्रयास पर सहमति बना रहे विश्व के समक्ष इस समय उत्तर कोरिया एक महासंकट के रूप में उपस्थित है। संयुक्त राष्ट्र संघ समेत विश्व के लगभग सभी महाशक्ति देशों के प्रतिबंधों और चेतावनियों को अनदेखा करते हुए तानाशाह किम जोंग के नेतृत्व में यह पिद्दी-सा देश विश्व के लिए भारी सिर दर्द बनता जा रहा है। संयुक्त राष्ट्र के प्रतिबंधों को धता बताते हुए एक के बाद एक घातक प्रक्षेपास्त्रों का परीक्षण करने से लेकर अमेरिका जैसे देश को खुलेआम चुनौती देने तक उत्तर कोरिया का रवैया पूरी तरह से उकसावे वाला रहा है। अभी हाल ही में उसने जापान के होकैडो शहर के ऊपर से मिसाइल ही दाग दी थी। जिसके बाद जापान ने अपने इस शहर समेत अपनी राजधानी क्षेत्र में मिसाइल रक्षा प्रणाली की तैनाती कर ली। उत्तर कोरिया का क्या करना है, इसका कोई ठोस उत्तर फिलहाल विश्व के किसी भी महाशक्ति देश के पास नहीं है। अब तक उत्तर कोरिया की इन अराजक गतिविधियों के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र और विश्व के महाशक्ति देशों की तरफ से, सिवाय जुबानी जमाखर्च के धरातल पर कोई कार्यवाही नहीं की जा सकी है।
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप कह तो बहुत कुछ रहे हैं, मगर मालूम उन्हें भी होगा कि किम जोंग का खात्मा इतना आसान नहीं है। कहा तो यह भी जा रहा कि अमेरिका ने लादेन को जैसे पाकिस्तान में घुस कर मार गिराया था। ठीक वैसे ही किम को भी मार सकता है। लेकिन, हमें नहीं भूलना चाहिए कि इन दोनों ही मामलों में भारी अंतर है। लादेन एक आतंकी था, जिसके पास सिवाय कुछ लड़ाकों और पाकिस्तानी हुकूमत के अप्रत्यक्ष सहयोग के अलावा कुछ नहीं था। जबकि किम जोंग एक देश का सनकी राष्ट्राध्यक्ष है। जिसके साथ न केवल लादेन से कहीं अधिक सुरक्षा तंत्र है, बल्कि उसके नियंत्रण में परमाणु हथियारों का जखीरा भी है। ऐसे में, क्या उसे भी लादेन की तरह मार गिराने की कल्पना की जा सकती है? यकीनन नहीं! यह बात अमेरिका भी बखूबी समझता है, तभी तो अब तक उसने भी किसी प्रकार की कार्यवाही करने से परहेज किया है। स्पष्ट है कि किम जोंग के तानाशाही नेतृत्व में उत्तर कोरिया विश्व के लिए एक घातक यक्ष-प्रश्न बन गया है। घातक यक्ष-प्रश्न इसलिए क्योंकि अगर जल्द से जल्द इसका उचित उत्तर नहीं खोजा गया तो पूरी संभावना है कि ये दुनिया को तीसरे विश्व युद्ध की तरफ ले जाएगा।
आज वैश्विक वातावरण में तनाव साफ है, ऐसे में उत्तर कोरिया का रवैया इस नाते डराता है कि उसकी या उसके साथ की गयी किसी अन्य की कोई भी हरकत तीसरे विश्व युद्ध का कारण बन सकती है। यह बात सर्वस्वीकृत है कि उत्तर कोरिया को चीन का अंदरूनी समर्थन और सहयोग है। जिसके दम पर वो हथियारों आदि के मामले में बेहद सशक्त हो चुका है। साथ ही, चीन का जापान और अमेरिका से मुखर विरोध है। ऐसे में, उत्तर कोरिया पर हाथ डालने की स्थिति में उसके साथ-साथ चीन भी दिक्कतें खड़ी कर सकता है। पाकिस्तान का समर्थन भी चीन के ही साथ होगा। अमेरिका और यूरोपीय देश एक साथ आ सकते हैं। इसके बाद तीसरे विश्व युद्ध के लिए और आवश्यकता ही किस चीज की रह जाएगी? संयुक्त राष्ट्र संघ आज उत्तर कोरिया के संदर्भ में निष्प्रभावी ही सिद्ध हो रहा है।
इन संभावित परिस्थितियों को देखते हुए तीसरे विश्व युद्ध की आहट महसूस न करने का कोई कारण नहीं दिखता। एक मार्ग यह है कि उत्तर कोरिया पर हाथ न डाला जाए, लेकिन किम जोंग का सनकीपना और आक्रामकता देखते हुए ऐसा करने का भी कोई लाभ नहीं है। क्योंकि, उत्तर कोरिया खुद ही किसी न किसी से उलझकर विश्व युद्ध की परिस्थितियों को आमंत्रित कर देगा। ये विश्व युद्ध हुआ तो पिछले दोनों विश्व युद्धों से कहीं अधिक विनाशकारी और भयावह होगा। अगर तीसरे विश्व युद्ध की इस आशंका पर विराम लगाना है तो उत्तर कोरिया का समाधान शीघ्रातिशीघ्र विश्व के महाशक्ति राष्ट्रों को संयुक्त राष्ट्र संघ के साथ मिलकर खोजना पड़ेगा।
आग सुलग रही है बस हवा की जरूरत है।
अब तक हुए विश्व युद्धों के इतिहास पर दृष्टि डालें तो दोनों ही विश्व युद्धों की परिस्थितियां तो पहले से ही ज्वालामुखी की तरह निर्मित हो रही थीं। बाद में एक छोटी सी तत्कालीन घटना को कारण बनाकर दोनों विश्व युद्ध के रूप में महाविस्फोट हुआ। आस्ट्रिया के राजकुमार और उनकी पत्नी की सेराजोवा में हुई हत्या प्रथम विश्व युद्ध का तात्कालिक कारण बनी। इस विश्व युद्ध की पृष्ठभूमि के अध्ययन पर स्पष्ट होता है कि तत्कालीन दौर में यूरोपीय देशों के बीच उपनिवेशों की स्थापना की होड़ के कारण परस्पर ईष्र्या और द्वेष का भाव पूरी तरह से भर चुका था। हितों के टकराव जैसी स्थिति जन्म ले चुकी थी। गुप्त संधियां आकार लेने लगी थीं। परिणाम विश्व युद्ध के रूप में सामने आया। इसी तरह वर्साय की संधिÓ के तहत जर्मनी पर लगाए गए अनुचित और अन्यायपूर्ण प्रतिबंधों के माध्यम से अनजाने में ही द्वितीय विश्व युद्ध की भूमिका का निर्माण भी कर दिया। फलस्वरूप 1935 में जर्मनी जब हिटलर के नेतृत्व में ताकतवर होकर उभरा, तो उसने वर्साय की संधि और प्रतिबंधों का उल्लंघन आरम्भ कर दिया। 1939 में जर्मनी ने पोलैंड पर आक्रमण किया और बस यहीं से द्वितीय विश्व युद्ध का आरम्भ हो गया। इसी तरह एक बार फिर से एक और विश्व युद्ध की परिस्थिति निर्मित होती दिख रही है।
-बिन्दु माथुर