17-Oct-2017 09:05 AM
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नापाक पाकिस्तान अपने ही देश के एक समुदाय को नापाक बताकर उन पर जुल्म ढा रहा है। अब तो हद यह हो गई है कि पाकिस्तान में सत्ताधारी पार्टी मुस्लिम लीग (नवाज) के प्रमुख नवाज शरीफ के दामाद और संसद सदस्य कैप्टन (रिटायर्ड) मोहम्मद सफदर ने सेना में अहमदिया मुसलमानों की भर्ती पर पाबंदी लगाने की मांग की है। उन्होंने इसके लिए संसद में एक प्रस्ताव लाने की घोषणा की है। विगत दिनों संसद को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा, पाकिस्तान में सेना समेत किसी भी अहम विभाग में उच्च पदों पर बैठे अहमदिया समुदाय के लोग पाकिस्तान की सुरक्षा के लिए खतरा हैं। इसलिए उन्हें फौरान पदों से हटाया जाना चाहिए।
ख्याल रहे कि पाकिस्तान के संविधान के अनुसार अहमदिया लोगों को मुसलमान नहीं माना जाता। मुसलमानों का विश्वास है कि पैगंबर मोहम्मद खुदा के भेजे हुए आखिरी पैगंबर (खुदा के आखिरी दूत) हैं और उनकी मौत के साथ ही ये सिलसिला खत्म हो गया। जबकि पाकिस्तान में मुसलमानों के मुताबिक अहमदी समुदाय के लोग इस बात को नहीं मानते कि पैगंबर मोहम्मद खुदा के भेजे हुए आखिरी पैगंबर थे। कैप्टन (रिटायर्ड) मोहम्मद सफदर ने पाकिस्तान के कायद-ए-आजम यूनिवर्सिटी के फिजिक्स विभाग का नाम बदलने की भी मांग की है। कायद-ए-आजम यूनिवर्सिटी के फिजिक्स विभाग का नाम नोबेल विजेता वैज्ञानिक डॉक्टर अब्दुस्सलाम के नाम पर रखा गया है। कैप्टन (रिटायर्ड) मोहम्मद सफदर ने ऐसा न होने की सूरत में आंदोलन करने की भी धमकी दी है।
गौरतलब है कि कायद-ए-आजम यूनिवर्सिटी के फिजिक्स विभाग का नाम डॉक्टर अब्दुस्सलाम के नाम पर रखने का फैसला उनके ससुर और तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने ही किया था। नोबेल विजेता वैज्ञानिक डॉक्टर अब्दुस्सलाम पाकिस्तान के पहले और अकेले वैज्ञानिक हैं जिन्हें फिजिक्स के लिए नोबेल पुरस्कार दिया गया है।
डॉक्टर अब्दुस्सलाम अहमदिया समुदाय से हैं। प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के इस फैसले का उस समय कुछ इस्लामिक गुटों ने विरोध भी किया था। कैप्टन सफदर ने आगे कहा कि इंसाफ की कुर्सी पर किसी ऐसे आदमी को नहीं बिठाया जाना चाहिए जिसका संबंध अहमदिया समुदाय से हो। यानी उनके मुताबिक अहमदिया समुदाय के लोगों को न तो सेना में जगह मिलनी चाहिए और न ही न्यायपालिका में। उनकी मांगों की फेहरिस्त यहीं तक नहीं रुकी। उन्होंने राजनीतिक पार्टियों से अपील की कि उम्मीदवारों को टिकट बांटते वक्त भी इस बात का ध्यान रखें।
ईशनिंदा के दोषी 3 को मौत की सजा
पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में अहमदिया समुदाय के तीन लोगों को ईशनिंदा करने के जुर्म में मौत की सजा सुनाई गई है। उन पर अल्पसंख्यक समुदाय का बहिष्कार करने की मांग करने वाले पोस्टर फाड़कर ईशनिंदा करने का दोष है। ईशनिंदा के तीनों दोषियों में से प्रत्येक पर 200,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया गया है और अगर वे जुर्माना नहीं भरते हैं तो उन्हें छह महीने की जेल की कठोर सजा काटनी पड़ेगी। बता दें कि पाकिस्तान के संविधान के अनुसार अहमदिया समुदाय के लोगों को मुसलमान नहीं माना जाता है।
-बिन्दु माथुर