पर्यटन निगम बेकाम!
03-Oct-2017 08:33 AM 1234816
देश-विदेश के पर्यटन मानचित्र पर मध्यप्रदेश को स्थापित करने में पर्यटन विकास निगम की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। निगम ने अपनी नीयत और नीतियों के दम पर मध्यप्रदेश को टूरिज्म हब के रूप में विकसित किया है, लेकिन प्रदेश सरकार ने अफसरशाही के जाल में फंसकर निगम को बेकाम कर दिया है। यानी पर्यटन विकास निगम के पास वह काम नहीं बचा है जिसके लिए वह कई राष्ट्रीय अवार्ड जीत चुका है। सरकार की नई नीति के अनुसार मध्यप्रदेश में अब पर्यटन को बढ़ावा देने की जिम्मेदारी पर्यटन बोर्ड संभालेगा। इसके लिए राज्य सरकार ने मध्यप्रदेश पर्यटन बोर्ड का गठन किया है जिसने काम करना शुरू भी कर दिया है। मुख्यमंत्री बोर्ड के अध्यक्ष होंगे वहीं उपाध्यक्ष पर्यटन मंत्री रहेंगे। कंपनी के रूप में रजिस्टर्ड बोर्ड का काम-काज मप्र पर्यटन विकास निगम के प्रबंध संचालक हरिरंजन राव को ही सौंपा गया है। बोर्ड का काम-काज इतने गुपचुप तरीके से शुरू किया गया है कि निगम उन कर्मचारी, अधिकारियों को भी इसकी भनक तक नहीं है जिनसे इसका काम-काज लिया जा रहा है। जानकारी के अनुसार पर्यटन बोर्ड पर्यटन स्थलों पर निजी होटलों को जोड़ेगा जिससे वहां टूरिस्टों को बेहतर सुविधाएं मिल सकें। बेहतर परिवहन और कनवेंस के लिए भी निजी एजेंसियों की सेवाएं लेगा। पर्यटन की संभावनाएं तलाशेगा और योजना बना कर उनके लिए निवेश का इंतजाम करना। वॉटर स्पोट्र्स और एडवेंचर स्पोट्र्स के आयोजन के साथ पर्यटन के लिए मार्केटिंग भी करेगा। वहीं पर्यटन विकास निगम के हिस्से सिर्फ निगम की होटलों का संचालन भर रह जाएगा। जानकारों का कहना है कि निगम की विशेषज्ञता होटल संचालन और खान-पान में ही है। निगम के पास अभी 73 होटल और रेस्टोरेंट हैं। इसलिए सरकार ने उसे होटलों के संचालन का ही काम दे दिया है। यानी पर्यटन विकास निगम होटल और रेस्टोरेंट से कमाई करेगा और पर्यटन बोर्ड उन्हें खर्च करेगा। सरकार की तरफ से पर्यटन बोर्ड के गठन के बारे में तर्क दिया गया है कि मध्यप्रदेश में पर्यटन की खस्ता हालत को देखते हुए पर्यटन से संबंधित सभी अधिकार पर्यटन निगम से लिए गए हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि प्रदेश को लगातार जो तीन बेस्ट टूरिज्म स्टेट का अवार्ड मिला है वह किसके कार्यों का परिणाम है। दरअसल पर्यटन विकास निगम पर अध्यक्ष के तौर पर राजनीतिक निगहबानी होती है। इस कारण अधिकारी अपनी मनमानी कम ही कर पाते हैं। अब बोर्ड के गठन के बाद सारा दारोमदार अधिकारियों के ऊपर रहेगा। यानी बोर्ड पूरी तरह अधिकारियों की मनमर्जी से काम करेगा। इससे बोर्ड में अराजकता भी बढ़ सकती है। अब देखना यह है कि बोर्ड पर्यटन विकास निगम की तरह प्रदेश के पर्यटन को किस मुकाम तक पहुंचाता है या फिर यह सफेद हाथी बनकर रह जाएगा। ज्ञातव्य है कि पर्यटन विकास निगम के प्रयासों से ही आज मध्यप्रदेश में देशी-विदेशी पर्यटक रिकार्ड संख्या में आते हैं और उससे राज्य को आर्थिक लाभ मिलता है। अब यह जिम्मेदारी पूरी तरह पर्यटन बोर्ड पर आ गई है और उसे अपनी सार्थकता सिद्ध करनी होगी। सिर मुड़ाते ही ओले पड़े पर्यटन बोर्ड के गठन के बाद बोर्ड पर अपनी गतिविधियां तेज करने की जिम्मेदारी है, लेकिन इसी जिम्मेदारी को निभाने के दौरान अधिकारियों से कुछ ऐसी गल्तियां हो गई कि उसे मुंह की खानी पड़ी। दरअसल हुआ यह कि पुरानी विधानसभा के एतिहासिक मिंटो हॉल में बन रहे अत्याधुनिक कन्वेंशन सेंटर के दौरान यहां चल रहे अटल बिहारी वाजपेयी हिंदी विश्वविद्यालय में भी तोडफ़ोड़ कर दी गई। मजदूरों द्वारा कुलपति के कमरे में की गई तोडफ़ोड़ को लेकर विवि प्रशासन ने इसकी शिकायत जहांगीराबाद पुलिस थाने में की है। उधर छात्रों ने पर्यटन विकास निगम के खिलाफ नारेबाजी की और विवि की शिफ्टिंग तक यहां किसी भी प्रकार की तोडफ़ोड़ नहीं करने की मांग की। छात्रों के दबाव में पर्यटन बोर्ड को झुकना पड़ा और हिन्दी विश्वविद्यालय के लिए नई व्यवस्था नहीं होने तक तोडफ़ोड़ बंद करना पड़ा। -अक्स ब्यूरो
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