03-Oct-2017 08:26 AM
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मप्र में कांग्रेस सत्ता में वापसी के लिए तत्पर दिख रही है। आमतौर पर चुनावों के दौरान या फिर सियासी जलसों के वक्त ही मध्य प्रदेश में नजर आने वाले 2 बड़े कांग्रेसी नेता कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया की कोशिश यह रहने लगी है कि वे ज्यादा से ज्यादा प्रदेश ही में दिखें। तकरीबन 2 साल बाद होने वाले विधानसभा चुनावों के लिए सियासी बिगुल बज उठा है। कांग्रेसी जगह-जगह सियासी जलसे कर शिवराज सिंह चौहान की अगुआई वाली भारतीय जनता पार्टी की सरकार को उखाड़ फेंकने का दम भरने लगे हैं। इसकी असल वजह है सरकार के प्रति जन आक्रोश।
वैसे, कुछ महीने पहले तक कांग्रेसी जलसों का फीकापन हर किसी को नजर आता था, लेकिन किसान आंदोलन, जिसमें मंदसौर में पुलिस फायरिंग में 6 किसान मारे गए थे, कांग्रेस के लिए वरदान साबित हुआ। किसान आंदोलन से कांग्रेस का कोई सीधा वास्ता नहीं था, लेकिन भाजपा से किसानों की नाराजगी जब उजागर हुई, तो कांग्रेस एकाएक ही उम्मीद के सागर में डुबकियां लगाते हुए हरकत में आ गई। तेजी से बनते बिगड़ते सियासी समीकरणों के बीच कांग्रेस की कोशिश अपना खोया हुआ परंपरागत वोट बैंक और साख हासिल करने की है। परंपरागत वोट बैंक यानी दलित, आदिवासी और कुछ पिछड़ों के अलावा मुस्लिम वोट एकजुट हो जाएं, तो तख्ता पलटने में देर नहीं लगेगी।
कांग्रेस ने यह वोट बैंक अपने हाथों और हरकतों से खोया था, जिसके एकलौते जिम्मेदार दिग्गज कांगे्रसी नेता दिग्विजय सिंह माने जाते हैं। 10 साल मुख्यमंत्री रहते हुए दिग्विजय सिंह ने अपनी ही पार्टी की लुटिया डुबोने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। नतीजतन, साल 2003 के विधानसभा चुनावों में वोटर ने उन्हें खारिज कर दिया था। इस बात में कोई शक नहीं कि शिवराज सिंह चौहान के कार्यकाल में भाजपा राज्य में जितनी मजबूत हुई है, उतनी पहले कभी नहीं हो पाई थी। इसकी अहम वजह यह थी कि लाल कृष्ण आडवाणी खेमे के चहेते शिवराज सिंह चौहान एक अच्छे संगठक रहे हैं, जिन्होंने कभी कांग्रेस को पनपने का मौका नहीं दिया। साल 2014 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस महज 2 सीटों छिंदवाड़ा और गुना पर ही जीत दर्ज करा पाई। कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया अपने-अपने गढ़ों में जीते, तो इसकी वजह कांग्रेस कम इन दोनों की पकड़ ज्यादा थी।
अब हालात और माहौल भाजपा विरोधी होते देख कमलनाथ और ज्यातिरादित्य सिंधिया दोनों ही मुख्यमंत्री पद के दावेदार हो गए हैं। कांग्रेस की गुटबाजी अभी खत्म नहीं हुई है, जो भाजपा और शिवराज सिंह चौहान के लिए राहत देने वाली बात है, पर उन्हें डर यह भी है कि अगर कांग्रेस ने इनमें से किसी एक को मुख्यमंत्री पेश कर दिया, तो जीत पहले की तरह आसान नहीं रह जाएगी, क्योंकि वोटर बदलाव का मन बना रहे हैं। कांग्रेस मौके का फायदा उठाने के लिए अपनी खेमेबाजी से छुटकारा पाने की कोशिश कर रही है। सोनिया गांधी और राहुल गांधी को भी समझ आ रहा है कि हिंदीभाषी इलाकों में सत्ता वापसी का रास्ता अगर किसी राज्य से हो कर जाता है, तो वह मध्य प्रदेश है, पर इसके लिए जरूरी है कि कमलनाथ या ज्योतिरादित्य सिंधिया में से किसी एक को बतौर मुख्यमंत्री प्रोजेक्ट कर दिया जाए।
हालांकि प्रदेश में इसके हालात नजर नहीं आ रहे हैं, लेकिन कांग्रेस के पास वापसी का मौका है। शायद यही वजह है कि पार्टी के नेता भाजपा को घेरने के लिए कोई मौका नहीं छोड़ रहे हैं, लेकिन केवल बयानबाजी से काम नहीं बनने वाला। इसके लिए नेताओं को सामुहिकता के साथ काम करना होगा, तभी वोट बैंक मजबूत होगा। मध्य प्रदेश के आदिवासी इलाकों में कभी कांग्रेस के अलावा वोटर कुछ सोचता नहीं था, पर अब वह कांगे्रस के बारे में ही नहीं सोचता, जो कांग्रेस के लिए चिंता की बात है। गरीब आदिवासियों का न तो किसान आंदोलन से कोई वास्ता है, न ही नोटबंदी और जीएसटी से कोई लेना-देना है। ऐसे में कांग्रेस को अगर सत्ता चाहिए, तो उसे खासतौर से आदिवासी इलाकों में पसीना बहाना पड़ेगा। भोपाल, इंदौर, जबलपुर और ग्वालियर की बजाय कांग्रेस को गांवों में चौपाल लगानी होगी, क्योंकि प्रदेश सरकार के खिलाफ वहां आक्रोश की आग सुलग रही है।
सत्ता में वापसी के लिए करना होगा त्याग
साफ दिख रहा है कि कांग्रेस को अगर सत्ता वापस चाहिए, तो उसके नेताओं को त्याग करना होगा। यानी कुर्सी की दौड़ छोड़कर पार्टी के लिए काम करना होगा। किसान आंदोलन में हुई मौतों से भाजपा की इमेज इस तरह बिगड़ी है कि किसानों का एक बड़ा तबका यह कहने लगा है कि हम वोट फेंक देंगे, पर भाजपा को नहीं देंगे। तकरीबन 65 फीसदी किसानों के वोट ही सत्ता तय करते हैं। कांग्रेस नहीं चाहती कि किसानों की भाजपा से नाराजगी दूर हो या उनका गुस्सा ठंडा पड़े, इसलिए वह जगह-जगह धरना-प्रदर्शन करते हुए किसानों की खुदकुशी के लिए भाजपा को जिम्मेदार ठहरा रही है। कांग्रेस के लिए अच्छी बात यह है कि इस दफा सोयाबीन की बोआई का रकबा घटा है और समर्थन मूल्य पर प्याज खरीदी में भी घोटाले हुए हैं। इससे किसानों का गुस्सा और बढ़ रहा है। बस जरूरत है इसे भुनाने की।
-भोपाल से अरविंद नारद