03-Oct-2017 08:17 AM
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अभी भी कुछ परिवार बहू को अपनी संपत्ति समझते हैं। कमाऊ लड़की के साथ अपने बेटे का विवाह उसके ऊंचे पैकेज के लालच में कर लेते हैं। शादी के बाद पति और घर वाले बहू के बैंक अकाउंट पर अपना अधिकार समझते हुए उसकी आय और व्यय का हिसाब किताब रख कर उस पर अपना अधिकार दिखाते हैं। कुछ लड़कियां तो ससुराल वालों के दबाव में आजीवन दुखी रहती हैं पर अधिकतर इस तरह के अनावश्यक प्रतिबंध एवं दबाव को स्वीकार नहीं करतीं। इस विषय में इंदौर की मनु कहती हैं, बहू ससुराल की संपत्ति भला क्यों है? वह कोई वस्तु नहीं है वरन उसका अपना स्वतंत्र वजूद है। अब जितनी जिम्मेदारी अपने ससुराल के लोगों के प्रति बनती है उतनी ही अपने मां-बाप के प्रति भी। हम दोनों पति-पत्नी का आपस में स्पष्ट समझौता है। यदि मैंने उनके परिवार को अपनाया है, तो उन्होंने मुझे और मेरे परिवार को। दोनों परिवारों के बीच बहुत अच्छा रिश्ता और तालमेल है। न कोई झगड़ा न झंझट।ÓÓ
जबलपुर की 60 वर्षीय गृहिणी रंजना, जो 2 बहुओं की सास हैं, अपना अनुभव बताते हुए कहती हैं कि आजकल की बहू के साथ आप जोर जबरदस्ती या अधिकारपूर्वक कोई भी काम नहीं करवा सकते। आप को उसे प्यार, स्नेह और इज्जत देनी पड़ेगी। तभी बहू आप की इच्छानुसार कोई काम करेगी। इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि उसका पति उसके उचित अनुचित निर्णयों के पक्ष में हर समय उसके साथ खड़ा रहता है। आज की बहू शिक्षित है, आत्मनिर्भर है और आजाद ख्यालात की है, इसलिए आप को उसकी इच्छानुसार अपने को बदलना होगा। हम लोगों के समय में तो पति अपनी मां के इशारे पर ही चलते थे। अब स्थितियां बदल रही हैं, जो लड़कियों के लिए सकारात्मक पक्ष है। यही कारण है कि आजकल कई लड़कियां अपने मायके की पूरी जिम्मेदारी उठा रही हैं। अब अक्सर सुनने या पढऩे में आने लगा है कि बेटी ने अपने माता या पिता का अंतिम संस्कार संपन्न किया या कामकाज संभाल लिया। बहू को ससुराल की संपत्ति कहना उचित नहीं है। वह उस परिवार के एक सदस्य की तरह वहां की जिम्मेदारी भी निभा रही है। आज स्त्री आत्मनिर्भर एवं शिक्षित होने के कारण अपने फैसले स्वयं लेने में सक्षम है। इसीलिए अब कोई भी उसे अपनी संपत्ति समझता है, तो यह उसकी भूल ही होगी।
हमारे समाज में लड़की को उसके अपने घर की पहचान का संकट आजीवन झेलना पड़ता है। मां-बाप के घर जहां वह जन्म लेती है, वहां यही सुनती हुई बड़ी होती है कि बेटी को तो पराए घर जाना है और फिर जब वह ससुराल आती है तो सुनती है कि अपने घर से यही सीख कर आई हो?
लड़की के लिए नया परिवार, नए लोग, रीति-रिवाज, आचार-विचार, वहां का खानपान आदि के साथ-साथ तालमेल का भी संकट रहता है। वहां उसे अनेक समझौते करने पड़ते हैं। मगर लड़की को अपने निजत्व एवं स्वत्व को नहीं भूलना चाहिए। अपने भविष्य एवं व्यक्तित्व के अनुसार वह अपना जीवन खुल कर जीना चाहती है। वह अपने फैसले खुद ले रही है, इसलिए मात्र अपने घर के लिए कुंठा के साथ समझौता करने की कोई आवश्यकता नहीं है। आज वह पुरुषों से कहीं कमतर नहीं है। इसलिए उसे यह सोचने या चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है कि कोई क्या कहेगा? वह उसी भवन के प्रांगण में अपना एकल घर बना
सकती है।
जिस पुरुष के साथ वह अपना जीवन बिताना चाह रही है, उसके घर के अंदर अपना घर बना कर रहना किसी तरह से गलत नहीं है वरन यह उसका अधिकार है। आखिर बड़े- बुजुर्गों को भी तो आजादी से जीने का अधिकार है। उन्होंने जो अपने सपनों का घरौंदा सजाया है उसमें बहू की घुसपैठ या दखलंदाजी हो सकता है उन्हें रुचिकर न लगे। इसलिए बहू स्वतंत्र रूप से उसी जगह अपना एकल घर बना कर प्रसन्नता पूर्वक रह सकती है। ससुराल वालों को भी लचीला रुख रखते हुए यह समझना चाहिए कि अब यह घर आने वाली बहू का अपना घर है ताकि वह उस घर को अपना घर महसूस कर सके। लड़की के लिए यह कतई आवश्यक नहीं है कि वह अपने सास-ससुर के ही साथ रहे। वह उसी घर में अपना एकल घर बना कर आजादी से रह सकती है। यदि साथ-साथ रहने में परेशानी है, दोनों के विचार आपस में मेल नहीं खा रहे तो उचित यही होगा कि अपना अलग घर बना कर रहे ताकि आपसी रिश्ते मधुर बने रहें।
-ज्योत्सना अनूप यादव