16-Sep-2017 10:16 AM
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देशभर में चोटियां कट रही हैं। कमाल की बात ये है कि देश की राजधानी दिल्ली से लेकर कई राज्यों में महिलाओं की चोटियां लगातार कट रही हैं। तरह-तरह की अफवाह भी है। अफवाहें चोटी कटने से भी तेजी से फैल रही हैं।
ये अफवाहें उसी तरह की हैं, जैसे 21 सितम्बर 1995 को पूरे देश में ये अफवाह फैल गई कि गणेश जी दूध पी रहे हैं। मतलब किसी भी मूर्ति को दूध पिलाइए, वो सीधे गणेश जी पी रहे हैं। ये अफवाह ऐसी फैली कि लोगों ने अपने घर में गणेश मूर्ति के सामने भी दूध से भरा चम्मच लगा दिया। लाखों लीटर दूध पत्थर की मूर्तियों के जरिए बहा दिया गया।
बालों के काटे जाने का रहस्य पूरे उत्तर भारत को अपने चपेट में ले चुका है। जोधपुर से मेवात, गुडग़ांव से मुरैना तक महिलाओं के रहस्यमयी तरीके से बाल काटे जा रहे हैं। भले ही ये बात आपके गले से न उतरे लेकिन सच्चाई यही है कि किसी महिला के बाल, सिर्फ बाल नहीं होते। द्रौपदी के बालों को याद करिए। उसका नतीजा क्या हुआ था वो तो पता ही होगा। जब दुशासन ने चौपड़ के खेल में हार दी गई द्रौपदी को उसकी चोटी पकड़कर खींचा तो कौरवों ने उसे ऐसा करने से मना नहीं किया। उन्होंने ऐसा करके न सिर्फ घर की मर्यादा को भंग किया था, बल्कि बड़ा अधर्म ही किया था। भारत में पारंपरिक तरीके से चोटी रखना नारीत्व की निशानी है। इसे समाज में नारी की भूमिका, उसके कर्तव्यों और पति से मधुर संबंधों की निशानी के तौर पर भी देखा जाता है। द्रौपदी ने उस घटना के बाद 13 साल अपने बाल नहीं बांधे। इशारा यह था कि पांडवों ने द्रौपदी पर से अपना अधिकार खो दिया है और जब तक द्रौपदी के उस गुस्से का कारण (यानी दुशासन) खत्म नहीं हुआ, तब तक न तो द्रौपदी और न ही दुनिया को चैन मिल सका।
गांवों में तो लड़कियां इसी के साथ बड़ी होती हैं। बालों का ख्याल रखती हैं। बालों को अपनी सुंदरता का पर्याय मानती हैं। इसमें कोई आश्चर्य नहीं है कि बचपन से संभाले गए अपने इन बालों को खो देने से औरतें सदमे में होंगी ही।
उनके साथ जो कुछ भी हो रहा है वो अजीब है। पिछले एक हफ्ते में कई औरतों ने इस बारे में शिकायतें की हैं कि उनकी चोटियां काटी जा रही हैं। आखिर ये सब कौन कर रहा है। कैसे और क्यों? अधिकतर पीडि़त कहते हैं कि घटना के समय या तो वो बेहोश थीं या फिर नींद में थीं। किसी ने भी अपने अपराधियों को नहीं देखा है। हालांकि कुछ लोगों ने दावा किया है कि बिल्ली जैसी कोई भूतहा परछाईं देखी थी या फिर वह लाल और पीले रंग के कपड़े पहने हुए था या फिर वो बुर्का पहने हुए और हाथ में कैंची लिए था। कुछ ने बेहोश होने के पहले किसी खास किस्म की दुर्गंध को महसूस किया था। अब ये माने या न माने लेकिन सभी पीडि़तों के घर के सारे दरवाजे अंदर से बंद पाए गए थे।
झारखंड में भीड़ द्वारा एक इंसान की पीट-पीटकर हत्या करने की घटना याद है? इस घटना में बाहरी लोगों और बच्चों को उठाने वालों के खिलाफ एक भड़काऊ व्हाट्सएप मैसेज हफ्तों पहले से लोगों के बीच फैल रहा था। इसी मैसेज ने गांव वालों को एक हत्यारी भीड़ में बदल दिया था। इस मामले में भी व्हाट्सएप मैसेज फैल रहे हैं। जून से ही काला जादू करने के लिए बाहरी लोगों द्वारा महिलाओं की चोटी काटने के मैसेज लोगों के बीच शेयर किए जा रहे थे। घटना की तस्वीरें चाहें कितनी भी हास्यस्पद क्यों ना लग रही हों, लेकिन इससे लोगों के बीच एक तरह का आतंक घर कर गया है। डरे, सहमे ग्रामीणों ने अब अपने घरों के बाहर नींबू-मिर्च टांगना शुरू कर दिया है। ताकि बुरी आत्माएं उनके घर से दूर रहें। लोग अब अजनबियों से सावधान रहने लगे हैं और रातों को जागकर काट रहे हैं। साथ ही महिलाओं ने अब अपने बालों को बांधना बंद कर दिया है। ये सब विचित्र है लेकिन भारत के लिए कोई असामान्य बात नहीं है। 2001 में चमकदार लाल आंखों वाला एक मंकी मैन रात में दिल्ली की सड़कों पर घूमता था। और लोगों पर हमला करता था। इस मंकी मैन ने भी लोगों के बीच दहशत फैला दी थी। हालांकि फोरेंसिक विशेषज्ञों और मनोचिकित्सकों की एक टीम ने इसे सिर्फ भावनात्मक रूप से कमजोर लोगों की कोरी कल्पना बताया।
सामूहिक भ्रम की स्थिति
चोटियां काटने वाले मामले में भी मास हिस्टीरिया यानी की सामूहिक भ्रम की स्थिति के सारे लक्षण मौजूद हैं। आखिर सामूहिक रूप से ये भ्रम पैदा कैसे होता है? डर, चिंता, तनाव, अंधविश्वास और कल्पनाओं में खो जाने की प्रवृति। ये सब मिलकर एक बड़ा मनोवैज्ञानिक विकार पैदा करते हैं।
खासतौर पर महिलाओं और बच्चों में।
इतिहास गवाह है कि इस तरह के भ्रम हमारे समाज के हर दौर में पाए जाते थे।
-ज्योत्सना अनूप यादव