03-Oct-2017 08:15 AM
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महाराष्ट्र में भाजपा और शिवसेना का शीत युद्ध तलाक की ओर बढ़ गया है। हालांकि ऐसी नौबत पिछले कुछ सालों में कई बार आई है, लेकिन जैसे-तैसे गठबंधन आगे बढ़ रहा है, लेकिन इस बार शिवसेना के तेवर कुछ बदलते नजर आ रहे हैं। संभावना जताई जा रही है कि राज्य में भाजपा को पिछले तीन साल से समर्थन दे रही शिवसेना गठबंधन से बाहर निकल सकती है। शिवसेना ने साफ कह दिया है कि वह भारतीय जनता पार्टी और मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के फैसलों से नाराज है और सरकार से अलग होने के विकल्प पर विचार करेगी। गत दिनों पार्टी के नेताओं, विधायकों, सांसदों और मंत्रियों ने शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे के साथ बंद कमरे में हुई बैठक में शिकायतों की झड़ी लगाते हुए कहा कि उनके विकास कार्यों को राज्य सरकार ने रोक दिया है, फाइलों को आगे नहीं बढ़ाया गया तथा कई निर्णयों को लागू नहीं किया गया।
शिवसेना के राज्यसभा सांसद संजय राउत और पर्यावरण मंत्री रामदास कदम ने मीडिया को अलग से पार्टी की इस बैठक और चर्चा के बारे में जानकारी दी। राउत ने कहा, विधायकों ने शिवसेना प्रमुख को स्थिति की समीक्षा कर सही निर्णय लेने के लिए अधिकृत किया है। राज्य सरकार के संबंध में हम अंतिम निर्णय लेने के करीब हैं। इंतजार करें और देखें। पार्टी सूत्रों ने अंतिम निर्णय के बारे में इशारा करते हुए कहा कि गठबंधन बना रहेगा या नहीं, इसका निर्णय पितृपक्ष समाप्त होने और ठाकरे की वार्षिक दशहरा रैली के बाद जल्द लिया जाएगा। रामदास कदम ने बताया कि सभी विधायकों ने ठाकरे को स्थिति के बारे में बता दिया और समय आने पर उचित निर्णय लेने के लिए कहा। सभी विधायकों को भरोसा है कि ठाकरे इस संबंध में उचित निर्णय लेंगे। उन्होंने इस संबंध में ज्यादा जानकारी नहीं दी।
इससे महाराष्ट्र में भाजपा और शिवसेना के बीच का मतभेद अब काफी रोचक हो गया है। जिसमें शिवसेना के अध्यक्ष उद्धव ठाकरे अपनी पार्टी को महाराष्ट्र की सत्ता से अलग करना चाहते हैं तो वहीं दूसरी ओर शिवसेना के ही 25 विधायकों को पार्टी से अलग होने का फैसला रास नहीं आ रहा है। बता दें कि शिवसेना के कुल 63 विधायकों में से 25 विधायकों ने साफ कहा है कि वे फडणवीस सरकार का साथ नहीं छोड़ेंगे।
उल्लेखनीय है कि केंद्र और महाराष्ट्र में सरकार का हिस्सा होने के बावजूद शिवसेना और भाजपा के बीच लंबे समय से रस्साकशी चल रही है। हाल ही में मोदी मंत्रिपरिषद के विस्तार को शिवसेना ने भाजपा का विस्तार बताया था। गौरतलब है कि मंत्रिपरिषद विस्तार में सहयोगी दलों के किसी सदस्य को मंत्री नहीं बनाया गया था। 18 लोकसभा सांसदों वाली शिवसेना की विस्तार में अनदेखी की गई। अब यह देखना रोचक होगा कि शिवसेना और भाजपा का यह गठबंधन निरंतर जारी रहता है या इस बार असल में तलाक हो जाएगा।
शिवसेना की समर्थन वापसी की धमकी क्यों ?
दरअसल शिवसेना को लगता है कि देश में महंगाई से लेकर पेट्रोल-डीजल के बढ़ते दाम के मुद्दे पर सरकार बुरी तरह से घिरी हुई है। दूसरी तरफ तमाम दावों के बावजूद महाराष्ट्र में किसानों की आत्महत्या रुक नहीं पा रही है। ऐसे में सरकार में साझीदार के तौर पर उसे भी जनता के सामने जवाब देना मुश्किल हो रहा है। इसीलिए बार-बार इन मुद्दों को उठाकर शिवसेना अपने-आप को सरकार के फैसलों से अलग रखकर किसानों का हमदर्द बताना चाहती है। वहीं शिवसेना की नाराजगी का कारण केंद्र और राज्य दोनों जगह उसे सरकार में ज्यादा महत्व नहीं मिलना भी है। मोदी सरकार में शिवसेना कोटे से महज एक कैबिनेट मंत्री अनंत गीते हैं, जिन्हें भी मनचाहा मंत्रालय नहीं मिला है। दूसरी तरफ तीन कैबिनेट विस्तार के बावजूद शिवसेना को और मंत्रालय मिलने की आस टूट कर बिखर जाती है। दूसरी तरफ महाराष्ट्र में भी शिवसेना कोटे के मंत्री अपनी मनमानी नहीं कर पा रहे हैं। उन्हें भी लगता है कि सरकार में शामिल होने के बावजूद वो अपने मनमुताबिक काम नहीं कर पा रहे हैं, जिससे उनकी तरफ से लगातार सरकार पर हमले हो रहे हैं।
-अक्स ब्यूरो