सूखे के पैकेज से बनी मंडियां और गोदाम
02-Oct-2017 11:13 AM 1234801
बुंदेलखंड पैकेज से भले ही वहां के निवासियों का भला नहीं हुआ, लेकिन अधिकारियों और ठेकेदारों की तकदीर जरूर बदल गई। अधिकारियों ने पैकेज में भ्रष्टाचार करने के लिए ऐसे कार्यों को भी करवा डाला जिसकी जरूरत ही नहीं थी। पैकेज के दुरुपयोग का अहसास तब गंभीर रूप से हुआ जब इस पैसे से हर जिले में बड़ी मंडियां और गोदाम बने दिखे। सूखे से प्रभावित इस इलाके के हर जिले में मंडियां बनाई गई हैं, लेकिन इन मंडियों में आपको एक दाना नहीं मिलेगा। दरअसल, हर साल सूखे की मार झेलने वाले बुंदेलखंड में उपजने वाला अनाज इतना नहीं होता है की वह मंडियों में जा सके, लेकिन अधिकारियों ने किसानों को सुविधा के नाम पर मंडियों और गोदामों का निर्माण करवा दिया। आलम यह रहा की जिस अधिकारी को मौका मिला उसने बुंदेलखंड पैकेटÓ से बहती भ्रष्टाचार की गंगा में जमकर डूबकी लगाई। पैकेजÓ में अफसरों ने तो खुद चांदी काटी लेकिन सूखे बुंदेलखंड की कहानी अभी भी वही है। यानी सूखा, भूख, प्यास और पलायन। वहीं मंडियां और गोदाम वीरान पड़े हुए हैं। बुंदेलखंड पैकेज में हुए भ्रष्टाचार को सामने लाने वाले टीकमगढ़ के सामाजिक कार्यकर्ता पवन घुवारा की माने तो बुंदेलखंड पैकेज के तहत प्रदेश को मिले 3700 करोड़ रूपए में से 80 फीसदी राशि अफसरों और ठेकेदारों के भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गई। इसका परिणाम यह हुआ है कि आज भी बुंदेलखंड में सूखा, प्यास, भूख आम बात है और लोग पलायन को मजबूर हैं। मप्र में बुंदेलखंड पैकेज में भ्रष्टाचार के लिए अधिकारियों ने मनमानी से काम किया है। इस पैकेज के अनुसार सूखे और जल संकट से निपटने के लिए कुछ काम तत्काल करने थे और कुछ दूरगामी योजना के तहत कराए जाने थे। लेकिन इस रकम का जिस तरह से इस्तेमाल हुआ उसे देखकर और सुनकर विश्वास ही नहीं होता कि ऐसा भी हो सकता है। यह पैकेज खास तौर पर छोटे बांध लगाने, पेड़ लगाने और चेक डैम बनाने के लिए था। इसके लिए राज्य सरकार ने विभिन्न विभागों को अलग-अलग जिम्मेदारियां दीं, लेकिन काम कागजों पर अधिक दिखे, जमीन पर कम। जानकारों का कहना है कि अगर अधिकारियों ने पैकेज की आधी राशि भी मप्र के छह: जिलों में ईमानदारी से खर्च की होती तो आज क्षेत्र की तस्वीर बदल गई होती, लेकिन हर विभाग के अधिकारियों ने मिलीभगत से मनमानी कार्यों में रकम खर्च की और मुख्य सचिव ने कभी भी यह जानने की कोशिश नहीं की कि राशि सही योजना में खर्च की गई है की नहीं। यदि पेड़ लगाने और चेक डैम की बात करें तो वन विभाग को इसके लिए बड़ी धनराशि मुहैया कराई गई, लेकिन चेक डैम की जगह महज पत्थर रखकर खानापूर्ति कर दी गई। पेड़ लगाने की बात तो छोड़ ही दीजिए। कुछ ऐसा ही हाल पशुपालन विभाग का भी है। यहां बकरियां खरीदने के लिए स्वयं सहायता समूहों को 100 करोड़ रुपए जारी किए गए थे। पर खरीददारी केवल कागजों पर ही हुई लगती है। सामाजिक कार्यकर्ता पवन घुवारा कहते हैं कि बुंदेलखंड पैकेज में हुए भ्रष्टाचार को लेकर पूर्व मुख्य सचिव अंटोनी डिसा को कई बार पत्र लिखे जा चुके हैं। मप्र में 3700 करोड़ रुपए के पैकेज में 80 फीसदी से ज्यादा भ्रष्टाचार हुआ है। जनता को कोई फायदा नहीं मिला है। राज्य सरकार ने अभी तक केंद्र के बुंदेलखंड पैकेज का उपयोगिता प्रमाण पत्र नहीं भेजा है। कागजों में खुद गए कुएं और तालाब पैकेज के तहत 20,000 नए कुएं बनाने और पुराने कुओं की मरम्मत करने के लिए 500 करोड़ रुपए की सीमा तय की गई थी, लेकिन हाल ये है कि बुंदेलखंड में नया कुआं शायद ही कहीं दिखे, और पुराने कुओं की हालत देखकर लगता नहीं कि इनके रखरखाव पर सैंकड़ों करोड़ रुपए बहा दिए गए। मुख्य तकनीकी परीक्षक ने जांच के बाद मुख्य सचिव को भेजी रिपोर्ट में लिखा कि बुंदेलखंड के सागर, छतरपुर, पन्ना, दमोह, टीकमगढ़ एवं दतिया जिले में बांध, तालाब, नहर एवं अन्य जल संरचनाओं का काम बेहद घटिया किया गया है। निर्माण के समय गुणवत्ता का ध्यान नहीं रखा गया। पूर्व केंद्रीय मंत्री व कांग्रेस नेता प्रदीप जैन आदित्य कहते हैं कि हमने इस राशि की मॉनीटरिंग के लिए संसद से एक समिति बनाने का आग्रह किया था, लेकिन उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश की सरकारों ने बहुत विरोध किए। इसके अलावा इस पैकेज के खर्च की जानकारी ऑनलाइन करने की भी बात मैंने कही थी लेकिन उसके लिए भी राज्य सरकारें तैयार नहीं हैं। -सिद्धार्थ पांडे
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