ममता का फिर घातक कदम
16-Sep-2017 11:03 AM 1234814
ममता बनर्जी पश्चिम बंगाल में अल्पसंख्यकों के वोट बैंक को देखते हुए विवादित फैसले कर रही हैं, लेकिन उनके यही फैसले अब भाजपा के लिए संजीवनी बनते जा रहे हैं। ऐसे ही फैसलों का परिणाम है कि पश्चिम बंगाल में भाजपा का जनाधार बढऩे लगा है। पिछले साल कोर्ट की फटकार के बाद भी इस साल ममता ने मूर्ति पर रोक लगाकर हिंदुओं की भावनाओं को ठेस पहुंचायी है। हम सभी जानते हैं कि पश्चिम बंगाल में दुर्गा पूजा हिंदुओं की आस्था का सबसे बड़ा केंद्र है। लेकिन ममता बनर्जी इसके बावजूद दूसरे साल भी घातक कदम उठाने से बाज नहीं आई हैं। बहरहाल ममता का यह फैसला भाजपा के लिए जरूर अच्छी खबर हो सकती है। भाजपा जो पिछले कुछ सालों से बंगाल में अपनी राजनैतिक जमीन तलाश रही है, उसे यह फैसला ममता को घेरने का एक मौका जरूर मुहैया कराएगा। वैसे भी हाल के दिनों में बंगाल में ममता ने जिस तरह के फैसले लिए हैं उससे भाजपा को बंगाल में अपनी जड़ें जमाने के भरपूर मौके दिए हैं, और इसके बेहतर नतीजे भी भाजपा को देखने को मिले हैं। हालांकि ममता बनर्जी की पार्टी को मिलने वाले वोटों में कोई कमी नहीं देखी गयी है, मगर आश्चर्यजनक रूप से भारतीय जनता पार्टी प्रदेश में दूसरे नंबर की पार्टी बनने की ओर बढ़ रही है। अभी पिछले ही हफ्ते संपन्न हुए सात स्थानीय निकायों के चुनावों में भाजपा ने बेहतर प्रदर्शन किया, हालांकि इन चुनावों में तृणमूल ने क्लीन स्वीप किया, मगर भाजपा ज्यादातर जगहों पर दूसरे स्थान पर रही और साथ ही भाजपा ने तीन नगर निगमों में छह सीटों पर जीत भी दर्ज की। इससे पहले अप्रैल के महीने में हुए उपचुनाव में भी भाजपा शानदार प्रदर्शन करते हुए 50 हजार से ज्यादा वोट पाकर दूसरे स्थान पर रही थी। बंगाल में भाजपा के प्रदर्शन के इतिहास को देखकर इसे बेहतरीन प्रदर्शन कहा जा सकता है। बंगाल में भारतीय जनता पार्टी के उभार की एक बानगी इस साल के रामनवमी के त्योहार में भी देखने को मिली जब सड़कों पर हजारों लोग हथियार लेकर भाजपा द्वारा मनाए जा रहे इस कार्यक्रम में सम्मिलित हुए। इसके कुछ ही दिन बाद मनाई गई हनुमान जयंती में भी लोगों की अच्छी खासी भीड़ देखने को मिली। हालांकि देखा जाए तो ये दोनों ही त्योहार कभी भी बंगाल में उतने धूम धाम से नहीं मनाए जाते रहे, मगर भाजपा के कार्यक्रम में सम्मिलित लोग प्रदेश में भाजपा के बढ़ते प्रभाव को ही दिखाता है। बंगाल में भाजपा के इस उभार में ममता बनर्जी के फैसलों ने भी अच्छी खासी भूमिका निभाई है। पिछले कुछ वर्षों में ममता बनर्जी ने कुछ ऐसे फैसले लिए हैं, जिसमें यह साफ तौर पर देखने को मिला है कि इन फैसलों से वो अपने अल्पसंख्यक वोट बैंक को साधने की जुगत में हैं। अपने पिछले कार्यकाल में ममता बनर्जी ने सभी इमामों, और अजान देने वालों के लिए स्टीपेंड देने की घोषणा की थी, हालांकि बाद में हाई कोर्ट ने इस फैसले को असंवैधानिक घोषित कर दिया था। हालांकि ममता ने अल्पसंख्यकों को रिझाने का कार्यक्रम अबाध रूप से जारी रखा, ममता ने इसके लिए बंगाल के सभी सरकारी पुस्तकालयों में नबी दिवसÓ को अनिवार्य रूप से मनाए जाने का आदेश जारी कर दिया। बंगाल में इंद्रधनुष को रामधेनुÓ कहा जाता है, मगर ममता को इसमें भी साम्प्रदायिकता नजर आई। ममता ने बंगाल के स्कूली पुस्तकों में रामधेनुÓ शब्द को रंगधेनुÓ कर दिया। और हाल ही में ममता ने 288 साल पुराने तारकेश्वर मंदिर की देखरेख के लिए बनाए गए तारकेश्वर डेवलपमेंट बोर्ड की कमान भी एक मुस्लिम मंत्री के हाथों में सौप दी। 30 फीसदी के लिए 70 फीसदी के साथ अन्याय ममता इन फैसलों से अपने करीब 30 फीसदी मुस्लिम आबादी के वोट बैंक को सुरक्षित रखना चाहती हैं, मगर ऐसा करते वक्त वो शायद उस 70 फीसदी आबादी को भूल जाती हैं जो कि बहुसंख्यकों की है। हालांकि ममता की इन्हीं नीतियों ने भाजपा को बंगाल की राजनीति में अपनी जड़ें जमाने का मौका भी दे दिया है, और धीरे-धीरे ही सही मगर भाजपा प्रदेश में अपनी पकड़ मजबूत करती भी दिख रही है। ममता अगर आगे भी इसी तरह के फैसले करती रहीं तो वो निश्चित रूप से अपनी राजनैतिक जमीन खोने की दिशा में ही कदम बढ़ाएंगी और उनका यह कदम भाजपा के उभार के रूप में भी दिख सकता है। देश इस बात को अच्छी तरह से देख और समझ रहा है कि कैसे ममता बनर्जी की मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति में फंसकर बंगाल सांप्रदायिक हिंसा का गढ़ बनता जा रहा है। अत: उचित होगा कि ममता बनर्जी देश की चिंता करने की बजाय बंगाल में कानून व्यवस्था सुधारें। -बिन्दु माथुर
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