02-Oct-2017 11:10 AM
1234763
केंद्र सरकार हर घर तक बिजली पहुंचाने का वायदा पूरा करने के लिए योजनाएं बना और लागू करने में पसीना बहा रही है लेकिन देशभर में 23 प्रतिशत बिजली आज भी चोरी हो जाती है। ऊर्जा मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार बिहार (36 फीसदी), हरियाणा (33 फीसदी), प. बंगाल (33 फीसदी) और मध्य प्रदेश (30 फीसदी) में सबसे ज्यादा बिजली चोरी दर्ज की गई है। इससे सरकार को हर साल करोड़ों रूपए की चपत लग रही है।
देश में जहां कई राज्यों में बिजली की कमी है वहीं मध्यप्रदेश में बिजली सरप्लस में है। बिजली उत्पादन में भले ही मप्र बाकी राज्यों से आगे है, लेकिन बिजली चोरी रोकने में प्रदेश की तीनों वितरण कंपनियां नाकाम साबित हो रही हैं। हर साल औसतन पांच हजार करोड़ की बिजली चोरी हो रही है। हालात यह हैं कि बिजली चोरी के मामले में यहां कई बड़े नेता, अधिकारी तक के नाम सामने आ चुके हैं। कई करोड़पति, अरबपतियों ने भी या तो चोरी की बिजली यूज की या बिजली के बिल ही नहीं भरे। स्थिति ये हो गई है कि बिजली चोरी के मामले में देश में मप्र से आगे राजस्थान और उप्र ही हैं। उप्र में जहां हर साल 16 हजार करोड़ रुपए की बिजली चोरी हो रही है। वहीं, राजस्थान में ये आंकड़ा 11 हजार करोड़ रुपए सालाना है।
प्रदेश में पावर मैनेजमेंट ने वित्तीय वर्ष 2017-18 के लिए राज्य विद्युत नियामक आयोग में जो आंकड़ा पेश किया था। उसके मुताबिक तीनों वितरण कंपनियों ने 32 हजार करोड़ रुपए के खर्च का अनुमान लगाया था। जबकि, तीनों कंपनियों के आय का अनुमान 27 हजार करोड़ रुपए के लगभग था। कंपनियों ने आय व व्यय में आ रहे पांच हजार करोड़ की भरपायी के लिए बिजली दरों में बढ़ोत्तरी का प्रस्ताव दिया था, जिसे नियामक आयोग ने लगभग उसी तरह स्वीकार कर लिया था।
प्रदेश में मौजूदा समय में कुल तकनीकी और वाणिज्यिक (टीएंडसी) हानि 25.2 प्रतिशत के लगभग है, जो नियमानुसार नौ प्रतिशत से अधिक नहीं होनी चाहिए। तीनों वितरण कंपनियों ने इस हानि को 12 प्रतिशत के लगभग लाने की बात कही थी। 17 प्रतिशत के लगभग बिजली चोरी हो रही है। प्रदेश के कुछ जिलों में ये आंकड़ा 40 प्रतिशत के लगभग है। किसी सब स्टेशन से फीडर और ट्रांसफॉर्मर तक पहुंचने वाली बिजली की हानि को तकनीकी हानि कहते हैं। इसकी प्रतिशतता 2.5 से 3 प्रतिशत के लगभग होती है। जबकि, फीडर और ट्रांसफॉर्मर से सप्लाई होने वाली बिजली और उपभोक्ताओं के मीटर में दर्ज बिजली के बाद के अंतर को वाणिज्यिक हानि कहते हैं। ये हानि पांच से सात प्रतिशत के बीच होनी चाहिए। इससे अधिक होने का मतलब है बिजली चोरी अधिक हो रही है। कंपनियां बिजली चोरी पर अंकुश लगा पाने में नाकाम हैं। इसके चलते चोरी वाली बिजली को भी वाणिज्यिक हानि में शामिल कर लिया जाता है। वितरण कंपनी के चेयरमैन संजय कुमार शुक्ला बताते हैं कि किसी सब स्टेशन से फीडर और ट्रांसफॉर्मर तक पहुंचने वाली बिजली की हानि को तकनीकी हानि कहते हैं। बिजली चोरी को सामाजिक जागरुकता से इसे रोका जा सकता है। इसे रोकना अकेले कंपनियों के बूते की बात नहीं है।
मध्यप्रदेश में करीब 45 फीसदी घरों पर चोरी की बिजली से रोशनी हो रही हैं। यह तथ्य मध्य क्षेत्र बिजली वितरण कम्पनी की रिपोर्ट से सामने आया है। बिजली कम्पनी के परिक्षेत्र के द्वारा प्रदेश के 16 जिलों की रिपोर्ट में होशंगाबाद जिले में 33.05 प्रतिशत घरों में कनेक्शन ही नहीं है, जबकि मुरैना में 72.28 प्रतिशत, भिण्ड में 60.89 प्रतिशत, श्योपुर में 60.07 प्रतिशत, शिवपुरी में 59.78 प्रतिशत, दतिया में 54.76 प्रतिशत, अशोकनगर में 52.63 प्रतिशत, गुना में 52.19 प्रतिशत, सहित राजगढ़ में 54.04 घरों में कनेक्शन नहीं है। पूरे प्रदेश में 45 प्रतिशत लोग चोरी की बिजली रोशन कर रहे हैं। खासकर झुग्गी बस्ती क्षेत्रों में जमकर बिजली चोरी हो रही है। इसका खामियाजा दूसरे लोगों को भरना पड़ा रहा है। बिजली चोरी में भोपाल अकेला जिला है, जिसमें 14.55 प्रतिशत घरों में चोरी की रोशनी है, वही अन्य जिलों में 40 प्रतिशत तक की चोरी हो रही है। उधर बिजली पर जितना खर्च हो रहा है उसका 50 फीसदी राजस्व भी नहीं मिल पा रहा है। वहीं दूसरी तरफ सूखे के हालात निर्मित होने के बाद बांधों में पानी की कमी को देखते हुए बिजली कंपनी ने सरकार से 2000 करोड़ रुपए की मांग की है, ताकि कोयले की आपूर्ति सुनिश्चित की जाए। आने वाले समय में सरकार के सामने बिजली उत्पादन भी एक बड़ी
समस्या है।
सौभाग्य योजना में मध्यप्रदेश के 25 लाख घर होंगे रोशन
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा घोषित की गई सौभाग्य योजना के तहत मप्र के करीब 25 लाख घरों को बिजली मिलेगी। मप्र में लगभग डेढ़ करोड़ परिवार हैं, जिसमें से लगभग सवा करोड़ घरों तक बिजली पहुंच चुकी है। मप्र पॉवर मैनेजमेंट कंपनी के एमडी संजय शुक्ला के मुताबिक दीनदयाल ग्राम ज्योति योजना के तहत परिभाषित प्रदेश के सभी गांवों में बिजली पहुंच चुकी है, लेकिन करीब 20 से 25 लाख घरों तक बिजली पहुंचाना बाकी है। दीनदयाल योजना के तहत 100 घर वाली जगह को गांव कहा गया है। इससे कम घर मजरे-टोले में गिने जाएंगे, इनमें से कई मजरे-टोले तक बिजली नहीं पहुंची है। शुक्ला के मुताबिक घने जंगलों में स्थित सिर्फ 20 गांवों तक बिजली नहीं पहुंची है, वहां नवकरणीय ऊर्जा की मदद से बिजली पहुंचाई जाएगी।
-श्याम सिंह सिकरवार