17-Oct-2017 08:46 AM
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मप्र की व्यावसायिक राजधानी इंदौर को अफसरों का स्वर्ग माना जाता है, लेकिन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और मुख्य सचिव वीपी सिंह की सख्ती के कारण अब यहां पदस्थ अफसर परेशान हो उठे हैं। दरअसल, विगत दिनों मुख्य सचिव बसंत प्रताप सिंह ने इंदौर संभाग की समीक्षा के दौरान जब खिंचाई की, तो कलेक्टर सहित अन्य अफसरों ने वादा कर दिया कि वे 700 करोड़ रुपए राजस्व इक_ा करेंगे। दौरे को एक माह हो गया है, लेकिन आंकड़ा 25 करोड़ से ऊपर नहीं जा रहा है।
मध्यप्रदेश में सबसे ज्यादा डायवर्शन टैक्स की वसूली करने वाले जिलों में इंदौर का नाम है। पूरे प्रदेश की वसूली एक तरफ और इंदौर की एक तरफ। इसके बावजूद यहां के अफसरों को पिछले माह मुख्य सचिव सिंह के दौरे में जमकर डांट खाना पड़ी। वसूली के एक मामले में एसडीओ तक को सस्पेंड होना पड़ा। सिंह का गुस्सा भी वाजिब था, क्योंकि उन्हें वसूली का आंकड़ा 700 करोड़ पेश किया गया जबकि सच्चाई ये है कि इंदौर जिले में सालाना वसूली 70 करोड़ की है, और भी जोड़ लिए जाए तो दस करोड़ हो सकते हैं, इससे ज्यादा नहीं होंगे।
चौंकाने वाली बात ये है कि ये आंकड़ा मुख्य सचिव को किसने बताया, यह अब तक पता नहीं चला। हालांकि दौरे के समय संभागायुक्त संजय दुबे पूरे समय मौजूद थे, जो जानकारियां दे रहे थे। जब ये आंकड़ा आया तो कलेक्टर निशांत वरवड़े ने उसे वसूल करने का वादा भी कर दिया। इसके बाद से एसडीओ से लेकर तहसीलदार, आरआई और पटवारियों तक की नींद उड़ी हुई है। लगातार वसूली को लेकर दबाव बनाया रहा है। लेकिन लक्ष्य बहुत दूर है। ऐसे में सवाल उठता है कि 675 करोड़ रुपए कहां से वसूली होगी? न होने पर क्या कमिश्नर व कलेक्टर को दंडित किया जाएगा? आंकड़ा अगर सही कर भी दिया जाए, तो गलत आंकड़ा पेश करने वालों को भी दंड दिया जाएगा। इसके चलते अब सही आंकड़े की जानकारी निकाली जा रही है।
शिवराज सरकार का खजाना पूरी तरह खाली है और बार-बार लोन लेकर गुजारा करना पड़ रहा है, जिसके चलते तमाम विभागों, खासकर राजस्व अमले को 2 हजार करोड़ रुपए से अधिक की वसूली के लक्ष्य थमा दिए हैं। मुख्य सचिव और उनकी टीम संभागवार राजस्व प्रकरणों की जांच के साथ वसूली की भी गहन समीक्षा कर रही है। वहीं संभागायुक्त और कलेक्टर भी लगातार अधीनस्थों को कड़ी फटकार लगा रहे हैं। प्रदेश की औद्योगिक राजधानी इंदौर को सबसे बड़ा लक्ष्य 700 करोड़ रुपए का थमा दिया है। आश्चर्य की बात यह है कि यह राशि कैसे और किन मदों पर वसूल की जाना है इसका कहीं कोई खुलासा शासन ने नहीं किया। वहीं कलेक्टर ने एक हजार करोड़ रुपए तक की वसूली के दावे अलग कर दिए। जब उनसे पूछा गया कि यह आंकड़ा कहां से आया तो वे इसका स्पष्ट जवाब तो नहीं दे पाए, मगर बोले कि रिकॉर्डों की जांच करवा रहे हैं, जिससे पता चलेगा कितनी वसूली बकाया है? 24 घंटे तनाव में रहने वाले राजस्व अफसरों का तो दो टूक कहना है कि इंदौर जिले में 100 करोड़ रुपए की वसूली भी नहीं हो सकती, क्योंकि इतना राजस्व बाकी ही नहीं है। अभी सिर्फ 25 करोड़ रुपए ही मिले हैं। अब तो शासन हमारी किडनी और आंखें निकलवाकर बेच दे तो शायद थोड़ा-बहुत लक्ष्य पूरा हो सके।
इंदौर आने को ही तैयार नहीं अफसर
अभी तक इंदौर को दुधारू जिला माना जाता रहा है और सारे ही विभागों के अफसर यहां पर पोस्टिंग न सिर्फ करवाते रहे, बल्कि सालों तक जमे भी रहते हैं। पिछले दिनों मुख्यमंत्री और मुख्य सचिव ने सालों से इंदौर में जमे अफसरों को रवाना करने की बात कही और नए अफसरों को पदस्थ करने को कहा, मगर अब हालत यह है कि कोई भी अफसर इंदौर कलेक्टोरेट में अपनी पोस्टिंग नहीं करवाना चाहता। यही कारण है कि अपर कलेक्टर से लेकर डिप्टी कलेक्टरों और पटवारियों तक के पद खाली पड़े हैं। पिछले दिनों जिन अफसरों के तबादले किए गए उन्हें भी इसीलिए कलेक्टर द्वारा रिलीव नहीं किया जा रहा है, क्योंकि अफसरों का ही टोटा है। दो अफसरों को नगर निगम ने बुला लिया। उनमें पहले संतोष टैगोर आए, उसके बाद पिछले दिनों संदीप सोनी की भी पोस्टिंग निगम में हो गई। हालांकि कलेक्टर निशांत वरवड़ेे ने अपने अधीनस्थों को फटकारते हुए उनका इंदौर प्रेम भुलाने और यहां आने के लिए अफसरों की लाइन लगी होने की बात भी कही है।
- नवीन रघुवंशी