विचार कभी नहीं मरते...!
18-Sep-2017 06:46 AM 1234930
गौरी लंकेश कर्नाटक में पत्रकार थीं और एक्टिविस्ट भी थीं। कर्नाटक की सिद्धारमैया सरकार ने गौरी लंकेश की हत्या के मामले में एसआईटी जांच का आदेश दिया है। साथ ही, ये भी कहा है कि अगर जरूरत पड़ी तो केस सीबीआई को सौंपा जा सकता है। गौरी की हत्या को उस कड़ी में चौथे केस के तौर पर देखी जा रही है जिसमें अब तक एमएम कलबुर्गी, गोविंद पानसरे और नरेंद्र दाभोलकर को मौत के घाट उतार दिया गया। बड़ा सवाल ये है कि गौरी लंकेश की हत्या के बाद देश भर में जो विरोध प्रदर्शन हो रहा है, क्या हालात उससे बदलेंगे या फिर कुछ दिन बाद सब कुछ सामान्य हो जाएगा। कम से कम तब तक जब तक फिर ऐसी कोई घटना सामने नहीं आती? हद तो यह देखिए कि गौरी लंकेश की हत्या के बाद दुष्प्रचार का दौर भी शुरू हो गया। पिछले दिनों सोशल मीडिया पर दुष्प्रचार के पोस्ट डाले गए कि गौरी लंकेश का असली नाम पैट्रिक था और वो मूलत: ईसाई धर्म प्रचार करने के लिए पैसे देते थे इसलिए उसने उनके लिए गौरी लंकेश पैट्रिक अखबार शुरू किया था और यह कि गौरी ने अपने नाम के आगे लंकेश रखा था इसी से पता चलता है कि उसकी मानसिकता क्या है। और यह कि उसे दफनाया गया है फिर तो वो पक्की ईसाई है। दरअसल गौरी ईसाई समुदाय से नहीं बल्कि लिंगायत समुदाय से थी जो शिव को मानता है। लंकेश परिवार दावणगेरे में साल नन्दितावरी शिव मंदिर जाता है, हाल ही में इंद्रजीत (गौरी के भाई) ने मंदिर जाकर अपनी पत्नी का जन्म दिन मनाया। वीरशैव या लिंगायत समुदाय वैदिक काल से ब्राह्मणों के हिन्दू धर्म पर कब्जे और कुरीतियों का विरोध करता आया है। वे मृतक को ध्यान मुद्रा में दफनाते हैं वे विश्वास करते हैं स्थरावक्कलीवुन्तु जड्गमागक्कलीविल्लाÓÓ (मतलब जो स्थिर है वह मर जाता है और चलायमान ही जीता है) वे वैदिक काल की सभी कुरीतियों का विरोध करते हैं मसलन केवल ब्राह्मण ही वेद पढ़ें, स्त्रियां मंदिर में न जाएं, ब्राह्मणों के अलावा कोई पूजा न करे वगैरा। ये लंकेश संभवतया लिंगेश का अपभ्रंश है क्योंकि वीरशैव इष्टलिंग को ही मानते हैं। वे शिव के उपासक हैं। क्या ये हिन्दू विरोध है? लंकेश (पैट्रिक/पत्रिका अखबार) पिता पाल्यदा लंकेशप्पा ने 1980 में शुरू किया था। वे दलितों के पक्ष में और सामाजिक कुरीतियों के विरोध में लिखते थे। कहा जाता है यह अखबार गांधी जी के हरिजनÓÓ अखबार की तरह आज भी कोई विज्ञापन नहीं लेता केवल सब्सक्रिप्शन पर ही चल रहा है। इसकी पाठक संख्या भी काफी अच्छी है। सन् 2000 में उनकी मौत के बाद गौरी ने इसका संपादन संभाला। गौरी की एक बहिन जानी मानी फिल्मकार, गीतकार और पटकथा लेखक है। उसका नाम कविता लंकेश है। गौरी का भाई इंद्रजीत भी पत्रकार और फिल्मकार है। वह कर्नाटक की तरफ से क्रिकेट भी खेल चुका है। वह एक खेल पत्रिका ऑल राउंडर निकालता था। गौरी ने गौरी लंकेश पत्रिका (पत्रिके) इसलिए शुरू किया क्योंकि उसका उसके भाई से झगड़ा शुरू हो गया था। सुना है दोनों ने एक-दूसरे के खिलाफ पुलिस में शिकायत भी दर्ज करवाई थी। चूंकि इंद्रजीत लंकेश पत्रिका (पत्रिके) का प्रकाशक था उसे गौरी के एक रिपोर्ट को छपने की अनुमति देने पर आपत्ति थी जिसमें उसने, इंद्रजीत के मुताबिक, नक्सलवाद का पक्षपात झलक रहा था। इंद्रजीत ने गौरी पर ऑफिस से कम्प्यूटर चुराने जैसे आरोप लगाए थे। दोनों ने प्रेस कांफ्रेंस कर एक-दूसरे के आरोपों का खंडन भी किया था। यह सारे तथ्य यह बताते हैं कि गौरी बौद्धिक संपन्न होने के साथ ही अपने विचारों के लिए लडऩे वाली निडर महिला थीं। फिर कौन लड़ेगा दलितों, अछूतों के हक की लड़ाई वह समाज के शोषित, दबे-कुचले लोगों के प्रति आवाज उठाती थीं। उनके विचार संपादकीय में साफ दिखते थे। वह दक्षिणपंथी हिंदूवादी विचारधारा पर बेबाक लिखती थीं। उनका मानना था कि धार्मिक और बहुसंख्यवाद की राजनीति भारत को तोड़ देगी। वह माओवादी समर्थक मानी जाती थीं। माओवादियों को मुख्यधारा में लाने का प्रयास कर रही थीं। उन्होंने दलितों, अछूतों को अधिकार दिलाने के लिए भी अभियान चलाया। उनकी पत्रिका के प्रसार में गिरावट के बावजूद उसकी धार बनी रही। उसने टकराना बंद नहीं किया। दो साल पहले हंपी यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर और मशहूर विद्वान 77 वर्षीय एमके कुलबर्गी को धारवाड़ में उनके घर के दरवाजे पर गोली मार कर हत्या कर दी गई थी। रैशनलिस्ट नरेंद्र दाभोलकर और तर्कवादी गोविंद पानसरे की कट्टरपंथियों ने जान ले ली थीं। इनके हत्यारों को अब तक सजा नहीं मिल पाना संकीर्ण विचारों और उससे जुड़े अपराधों को सरंक्षण देना ही है। विरोधी स्वरों को बंद करने के प्रयास किए जा रहे हैं। - अक्स ब्यूरो
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