16-Sep-2017 09:47 AM
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत छोड़ो आंदोलन की 75वीं वर्षगांठ पर सदन में बोलते हुए नारा दिया भ्रष्टाचार भारत छोड़ोÓ। भ्रष्टाचार भारत छोड़ो नारे के साथ ही भ्रष्टाचार का मामला फिर से जिंदा हो गया है। मोदी सरकार के तीन साल के कार्यकाल में केन्द्रीय व्यवस्था में भ्रष्टाचार भले ही कम हुआ है, लेकिन दुनिया भर के देशों में भ्रष्टाचार के मामले में भारत आज भी 79वें नम्बर पर है। वहीं एशिया में हम पहले नंबर पर हैं। ऐसे में अब सवाल उठने लगा है कि भ्रष्टाचार आखिर भारत कब छोड़ेगा?
दरअसल, प्रधानमंत्री ने जब से भ्रष्टाचार भारत छोड़ों नारा दिया है तब से देश में भ्रष्टाचार के खिलाफ एक माहौल बना है, लेकिन अभी हाल ही में प्रतिष्ठित मैग्जिन फोब्र्स ने एशिया के सबसे भ्रष्ट देशों की एक सूची जारी की है। इस सूची में सबसे पहले पायदान पर भारत को रखा गया है। जबकि दूसरे नम्बर पर वियतनाम, तीसरे पर थाईलैंड, चौथे पर पाकिस्तान और पांचवें नंबर पर म्यांमार है। सूची में लिखा गया है कि ट्रांसपैरेंसी इंटरनेशनल के 18 माह के विस्तृत सर्वेक्षण से पता चलता है कि इस क्षेत्र में अभी बहुत कुछ काम होना शेष है। भारत को इंगित करते हुए कहा गया कि भारत की
छह सार्वजनिक सेवाओं में से पांच-शिक्षा, स्वास्थ्य, आईडी दस्तावेज, पुलिस और उपयोगिता सेवाओं के मामले में आधे से
ज्यादा उत्तरदाताओं को रिश्वत का भुगतान करना पड़ा है।
भ्रष्टाचार के खिलाफ हालांकि पीएम नरेन्द्र मोदी ने जंग छेड़ रखी है और एक नई उम्मीद जगाने का प्रयासरत हैं। फोब्र्स की रिपोर्ट के अनुसार घूसखोरी के मामले में भारत ने वियतनाम, पाकिस्तान और म्यांमार को भी इस मामले में पीछे छोड़ दिया है। सर्वे में पाया गया है कि भारत में रिश्वतखोरी की दर 69 फीसदी है। 65 प्रतिशत रिश्वतखोरी दर के साथ वियतनाम दूसरे स्थान पर है, तो वहीं 41 प्रतिशत के साथ थाईलैंड तीसरे स्थान पर है। सर्वे में म्यांमार को पांचवां स्थान प्राप्त हुआ है, जहां रिश्वतखोरी दर 40 प्रतिशत है।
दरअसल भारत में भ्रष्टाचार लोगों की सोच में बैठ चुका है। जन्म प्रमाण-पत्र बनवाना हो या ट्रेन का टिकट लेना हो, हमें हर दिन भ्रष्टाचार से दो-चार होना पड़ता है, लेकिन इसमें गलती सिर्फ उन अधिकारियों या कर्मचारियों की नहीं है, जो आपसे छोटे-छोटे कामों के पैसे मांगते हैं। असल गलती हमारी-आपकी है, जो इस भ्रष्टाचारी तंत्र का हिस्सा बनते हैं और उन्हें पैसे देकर और भ्रष्टाचार करने के लिए प्रेरित करते हैं। इसके अलावा लोगों की सोच ऐसी बन गई है कि अगर ट्रेन में पानी की बोतल लेनी है तो 15 रुपए की कीमत वाली बोतल के लिए 20 रुपए चुकाने ही होंगे या अगर फोन चोरी की थाने में शिकायत दर्ज करानी है तो 100-50 रुपए देने ही होंगे। अब तक सिस्टम ऐसा ही चलता आया है, लेकिन ऐसा चलना नहीं चाहिए, लेकिन भारत में वह सब हो रहा है जो नहीं होना चाहिए।
फोब्र्स की रिपोर्ट ने यह साफ कर दिया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सत्ता संभालते ही इस देश को रिश्वतखोरी और भ्रष्टाचार से मुक्त करने का जो वादा किया था उसमें वे सफल नहीं हो पाए हैं। दरअसल भ्रष्टाचार 70 साल से हमारी व्यवस्था में अपना पैर इस कदर जमा चुका है कि उसे उखाडऩा मुश्किल है। इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि भारत के पहले प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू ने भ्रष्टाचारियों से क्रुद्ध होकर कहा था कि भ्रष्टाचारियों को टेलीफोन के खम्भे में लटका देना चाहिए। कुछ ऐसा ही मोदी ने भी कहा है, लेकिन भ्रष्टाचार आज भी मुस्कुराकर रह गया है, क्योंकि वह जानता है कि भ्रष्टाचार कोई कुम्हड़े का फूल नहीं है जो ऊंगली दिखाने मात्र से
सड़ जाए।
स्कूल, अस्पताल, पुलिस, पहचान पत्र में दी जाती है रिश्वत
फोब्र्स द्वारा किए गए 18 महीने लंबे सर्वे के मुताबिक भारत में स्कूल, अस्पताल, पुलिस, पहचान पत्र और जनोपयोगी सुविधाओं के मामले जुड़े सर्वे में भाग लेने वाले लगभग आधे लोगों ने कहा कि उन्होंने कभी न कभी रिश्वत दी है। 53 प्रतिशत लोगों का मानना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भ्रष्टाचार के खिलाफ काम करने की कोशिश कर रहे हैं, जबकि 63 प्रतिशत मानते हैं कि आम लोगों पर उनके प्रयासों से कोई असर नहीं पड़ेगा।
-ऋतेन्द्र माथुर