गढ़ बचाने की चुनौती
18-Sep-2017 05:57 AM 1234796
उत्तर प्रदेश में भाजपा ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सहित दो उप मुख्यमंत्री केशव मौर्य और डाक्टर दिनेश शर्मा और दो मंत्री स्वतंत्र देव सिंह, मोहसिन रजा को बिना चुनाव लड़े विधानसभा विधान परिषद के माध्यम से विधानसभा भेज तो दिया, लेकिन अब उसके सामने गढ़ (गोरखपुर और फूलपुर संसदीय सीट) बचाने की चुनौती है। दरअसल, योगी आदित्यनाथ के एमएलसी बनने से गोरखपुर संसदीय सीट और केशव मौर्या के एमएलसी बनने से फूलपुर सीट खाली हुई हंै। अब मुख्यमंत्री और भाजपा यूपी के नवेले अध्यक्ष महेंद्र नाथ पांडेय के सामने सबसे बड़ी चुनौती योगी का गोरखपुर किला और फूलपुर सीट भाजपा के लिए कायम रखना है। योगी आदित्यनाथ 1998 से गोरखपुर सीट जीतते आ रहे हैं। गोरखपुर में अब तक योगी का एकछत्र राज रहा है - इसकी बड़ी वजह उनका मंदिर का महंत होना और हिंदू युवा वाहिनी जैसे संगठन में उनके समर्थकों का समूह भी है। योगी के इस सीट को अब तक बरकरार रखने के पीछे सबसे बड़ी वजह उनकी मौजूदगी रही, लेकिन तब क्या होगा जब कोई और मैदान में उतरेगा? गोरखपुर में ब्राह्मण नेताओं का अरसे से वर्चस्व रहा है, लेकिन योगी के ताकतवर होने के बाद ये समीकरण बदल गया। भाजपा के लिए ये बड़ा सिरदर्द साबित हो रहा था। भाजपा हर सूरत में ठाकुरों के साथ-साथ ब्राह्मणों का वोट भी अपने समर्थन में बनाये रखना चाहती थी। भाजपा नेता शिवकुमार शुक्ल का कद ऊंचा उठने के पीछे सबसे बड़ा कारण भी यही है। पिछली बार जब राज्य सभा चुनाव हुए तो योगी की नाराजगी को दरकिनार करते हुए भाजपा आलाकमान ने शिवप्रताप शुक्ल को संसद पहुंचाया - और अब उन्हें मंत्री बनाकर इलाके के लोगों को मैसेज देने की कोशिश की गयी है। अब तक के ट्रैक रिकॉर्ड को देखें तो गोरखपुर सीट पर उपचुनाव की स्थिति में भाजपा अध्यक्ष महेंद्र नाथ पांडेय को फिक्र करने की जरूरत नहीं थी, लेकिन गोरखपुर अस्पताल में बच्चों की मौत के बाद स्थिति बदली हुई होगी। गोरखपुर के बीआरडी अस्पताल में 60 से ज्यादा बच्चों की मौत पर योगी और उनके साथियों ने जो रवैया अपनाया वो उनके अब तक सारे किये कराये पर पानी फेरने के लिए काफी रहा। इसका असर उपचुनाव के नतीजों पर देखने को मिलेगा। उधर, फूलपुर संसदीय सीट पर भी विपक्ष घेराबंदी कर रहा है। जब मायावती ने राज्य सभा से इस्तीफा दिया तो चर्चा छिड़ी कि वो फूलपुर से विपक्ष की संयुक्त उम्मीदवार हो सकती हैं। उसके बाद समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव ने भी जोर शोर से कहा कि अगर मायावती मैदान में उतरती हैं तो वो पूरी तरह सपोर्ट करेंगे। तब बताया गया था कि लालू प्रसाद की पटना रैली में अखिलेश और मायावती रैली में मंच शेयर करेंगे - और बाद में यूपी में भी दोनों गठबंधन का हिस्सा होंगे। रैली की तारीख आते-आते विपक्ष बिखरता गया और पटना रैली में अखिलेश तो पहुंचे लेकिन मायावती नदारद रहीं। उधर, भाजपा की ओर से जिन दावेदारों का नाम आ रहा है उसमें चर्चा में जो नाम सबसे ऊपर है वो है- अपर्णा यादव का। ये कोई और अपर्णा यादव नहीं बल्कि मुलायम सिंह यादव की बहू और अखिलेश यादव के भाई प्रतीक की पत्नी हैं जो लखनऊ से विधानसभा का चुनाव भी लड़ी थीं। अपर्णा को कांग्रेस छोड़ कर भाजपा में आईं रीता बहुगुणा जोशी ने हराया था। वैसे अपर्णा का नाम उछलने और उस पर विश्वास करने की वजह भी है। अपर्णा शुरू से ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रशंसक रही हैं। प्रधानमंत्री मोदी के साथ एक निजी समारोह में उनकी सेल्फी की खूब चर्चा हुई थी। योगी के मुख्यमंत्री बनने के बाद अपर्णा अपने पति प्रतीक यादव के साथ मिलने भी गयी थीं। तब तो अपर्णा ने इसे शिष्टाचार भेंट बताया था, लेकिन कुछ ही दिन बाद जब योगी उनकीगौशाला पहुंचे तो उसके अलग से मतलब निकाले जाने लगे। ये तो साफ है कि भाजपा फूलपुर से किसी ओबीसी उम्मीदवार को भी टिकट देगी - वो उम्मीदवार अपर्णा यादव होंगी या नहीं, इसके लिए तो इंतजार ही करना होगा। बैक डोर से इंट्री प्रदेश में भाजपा की सरकार प्रचंड बहुमत में है, मगर सीएम योगी आदित्यनाथ, डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य और डॉ. दिनेश शर्मा के अलावा परिवहन राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) स्वतंत्र देव सिंह और वक्फ एवं हज राज्य मंत्री मोहसिन रजा विधान मंडल के किसी सदन के सदस्य नहीं हैं। इन पांचों की नैया एमएलसी के सहारे पार हुई है। ऐसे में सवाल यह है कि सीएम योगी ने जनता के बीच जाने की बजाय सुरक्षित तरीका क्यों अपनाया? वह गोरखपुर से सांसद हैं। समय रहते वहां की किसी विधानसभा सीट को खाली कराया जा सकता था। विधायक मथुरा प्रसाद पाल के निधन से रिक्त हुई सिकंदरा विधानसभा सीट से वह मैदान में उतर सकते हैं, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। एमएलसी बनने की राह चुनी। कुछ लोगों का कहना है कि उन्होंने ऐसा इसलिए किया, क्योंकि परिस्थितियां पहले जैसी नहीं हैं। यही नहीं इन पांचों को सदन में पहुंचाने के लिए भाजपा ने जिस तरह बसपा और सपा में तोड़-फोड़ की वह भी सवाल जनता के मन में उठ रहा है कि आखिर भाजपा को यह राह क्यों पकडऩी पड़ी। -अक्स ब्यूरो
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