19-Aug-2017 07:13 AM
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उत्तर प्रदेश की जनता ने जिस जानदार-शानदार तरीके से भारतीय जनता पार्टी को विधानसभा चुनाव में बहुमत दिलाया था, उससे भाजपा और खासकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के ऊपर अपेक्षाओं का बोझ बढ़ गया था। मोदी पर इसलिये क्योंकि उन्हीं के फेस को आगे करके भाजपा ने चुनाव लड़ा था। मोदी ने चुनाव प्रचार के दौरान प्रदेश की बिगड़ी कानून व्यवस्था और किसानों की बदहाली को बड़ा मुद्दा बनाया था। भाजपा जब चुनाव जीती तो तेजतर्रार योगी आदित्यनाथ को इस आशय के साथ सीएम की कुर्सी पर बैठाया गया कि वह जनता की कसौटी पर खरे उतरेंगे। पांच माह का समय होने को है, मगर आज यही दो समस्याएं योगी सरकार और भाजपा आलाकमान के लिये परेशानी का सबब बनी हुई हैं। दिल्ली से लेकर लखनऊ तक में पार्टी नेताओं/प्रवक्ताओं को जनता और मीडिया के तीखे सवालों का जवाब देना पड़ रहा है।
योगी सरकार की पहली कैबिनेट बैठक में छोटे-मझोले किसानों का कर्ज माफ करने की मंजूरी दे दी गई थी, लेकिन तकनीकी कारणों से ऐसा हो नहीं पाया। इसको लेकर किसानों में तो नाराजगी स्वभाविक है, विपक्ष भी लगातार किसानों का कर्ज नहीं माफ हो पाने के मुद्दे को खाद-पानी देने का काम कर रहा है। किसान कर्ज माफी को लेकर योगी सरकार के प्रति आशंकित हैं तो बिगड़ी कानून व्यवस्था के चलते आमजन भयभीत है। प्रदेश की चरमराई कानून व्यवस्था ने विपक्ष को बैठे-बैठाये योगी सरकार पर हमलावर होने का मौका दे दिया है। कल तक भाजपा वाले जिस अखिलेश सरकार को बिगड़ी कानून व्यवस्था को लेकर घेरा करती थी और इसे चुनाव का सबसे बड़ा मुद्दा बना दिया था, आज उसी वजह से योगी सरकार को बार-बार शर्मिंदा होना पड़ रहा है। बात यहीं तक सीमित नहीं है अब तो योगी सरकार के कई फैसलों पर अदालत भी उंगली उठाने लगी है।
सीएम योगी पूरी ईमानदारी और मेहनत से काम कर रहे हैं और सबको यही उम्मीद है कि देर-सवेर योगी की मेहनत रंग लायेगी। परंतु इसके लिये योगी जी को सरकारी मशीनरी के पेंच और टाइट करने होंगे। अभी तक तो यहीं नजर आ रहा है कि जिनके हाथों में कानून व्यवस्था दुरूस्त करने की जिम्मेदारी है, वह यूपी में आये बदलाव को देख नहीं पा रहे हैं और पुराने तौर-तरीकों पर ही चल रहे हैं।
कुछ पुलिस के अधिकारी तो योगी राज में भी अखिलेश के प्रति वफादार नजर आ रहे हैं, जिसकी वजह से भी कानून व्यवस्था में सुधार देखने को नहीं मिल रहा है। बात यहीं तक सीमित नहीं है। चर्चा तो यह भी है कि योगी सरकार को बदनाम करने के लिये विरोधी दलों द्वारा भी पडय़ंत्र रचा जा रहा है। कई जगह आपराधिक वारदातों में विरोधी दलों के नेताओं की लिप्तता भी देखी जा रही है। सहारनपुर की हिंसा को इसका प्रत्यक्ष प्रमाण कहा जा सकता है। सहारनपुर में मायावती से लेकर राहुल गांधी तक ने जिस तरह माहौल खराब करने की कोशिश की उसे जनता समझती है। एक और बात विरोधी दल और पूर्ववर्ती सरकारों के वफादार सरकारी कर्मचारी तो योगी की राह में रोड़े फंसा ही रहे हैं, योगी के अपने भी इस मामले में पीछे नहीं हैं। भगवाधारियों द्वारा आगरा में पुलिस थानों पर हमला, मेरठ में एसएसपी के आवास में घुस कर गुंडागर्दी, लखनऊ में भाजपा नेता द्वारा एक होमगाई की पिटाई। गोरखपुर में एक आईपीएस महिला पुलिस अधिकारी के साथ बीजेपी विधायक राधा मोहन दास का अभद्र व्यवहार सत्तारूढ़ दल के नेताओं की गुंडागर्दी की बानगी भर है। असल में योगी के लिये विपक्षी ही नहीं उनकी पार्टी के नेता और कार्यकर्ता भी मुश्किलें खड़ी कर रहे हैं। लब्बोलुआब यह है कि योगी सरकार को दोधारी तलवार पर चलते हुए यूपी को पटरी में लाने के लिये लम्बी मशक्कत करनी होगी। केवल घोषणाओं से काम नहीं चलने वाला, सरकार को काम भी करना होगा।
केवल घोषणाओं में व्यस्त है सरकार
योगी सरकार लगातार घोषणाएं कर रही है। कुछ फैसलों पर योगी सरकार की वाहवाही हुई, तो कुछ को लेकर विवादों ने जन्म लिया। चाहे वह कानून-व्यवस्था, अवैध बूचडख़ाने बंद करना खनन माफियाओं पर लगाम या किसानों की कर्जमाफी। योगी सरकार के इन निर्णयों के साथ विवाद भी जुड़ता गया। सीएम योगी ने पहले पहल महत्वपूर्ण पदों पर बैठे अखिलेश राज के अधिकारियों से ही काम चलाने का प्रयास किया था, लेकिन इन अधिकारियों की वफादारी नहीं बदली तो प्रदेश की कानून व्यवस्था पर नकेल कसने के लिए बड़े पैमाने पर आईएएस और आईपीएस अफसरों का तबादला किया गया। यह और बात है कि अभी जमीनी हकीकत में कोई बड़ा बदलाव नहीं दिख रहा है। योगी सरकार लगातार साहसिक फैसले लेती जा रही है। किसानों को चीनी मिल मालिकों से बकाया दिलाया। किसानों की फसल खरीद हो रही है।
-मधु आलोक निगम