16-Sep-2017 11:16 AM
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अब कोई दिन नहीं गुजरता जिस दिन देश के किसी भाग में सड़क हादसा न हो। पिछले साल औसतन एक घंटे में पचपन सड़क दुर्घटनाएं हुईं जिनमें सत्रह लोगों की मौत हुई। यह जानकारी पिछले दिनों जारी एक सरकारी रिपोर्ट में सामने आई है। हालांकि कुल मिलाकर सड़क हादसों में 4.1 प्रतिशत की गिरावट आई है लेकिन मृत्यु-दर में 3.2 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। सड़कों पर औसतन रोजाना चार सौ लोग मारे जाते हैं। भारत में पिछले साल कुल 4,80,652 सड़क दुर्घटनाएं हुईं, जिनमें 1,50,785 लोगों की जान गई और 4,94,624 लोग गंभीर रूप से घायल हो गए। इसका खुलासा भारत में सड़क हादसे-2016Ó नामक रिपोर्ट में हुआ है।
हादसों के शिकार लोगों में 46.3 प्रतिशत लोग युवा थे और उनकी उम्र 18-35 साल के बीच थी। इस रिपोर्ट में बताया गया है कि कुल सड़क हादसों में शिकार होने वाले लोगों में 83.3 प्रतिशत अठारह से साठ साल की उम्र के बीच के थे। पुलिस के आंकड़ों पर आधारित रिपोर्ट के मुताबिक, सड़क हादसों के पीछे सबसे प्रमुख वजह चालकों की लापरवाही है। इस रिपोर्ट में बताया गया है कि छियासी प्रतिशत हादसे तेरह राज्यों में हुए। ये राज्य हैं तमिलनाडु, मध्यप्रदेश, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, गुजरात, तेलंगाना, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल, हरियाणा, केरल, राजस्थान और महाराष्ट्र।
रिपोर्ट के अनुसार मप्र में सड़क हादसे तेजी से बढ़ रहे हैं। देश में प्रदेश का नंबर दूसरा है। 2016 में 57853 लोग सड़क हादसे का शिकार हुए। ये साल 2015 से 2058 ज्यादा था। प्रदेश में सबसे ज्यादा हादसे लापरवाहीपूर्वक वाहन को ओवरटेक करने से हुए। केन्द्रीय सड़क परिवहन मंत्रालय की रिपोर्ट में साल 2016 में हुई सड़क दुर्घटना के आंकड़े जारी हुए हैं। खराब मौसम की वजह से मप्र में बहुत कम हादसे हुए। हादसों की वजह खराब सड़क और ट्रैफिक नियमों की अनदेखी रही। यही वजह है प्रदेश में कुल सड़क हादसों में 44,433 में मौसम साफ था। कोहरे की वजह से सिर्फ 1307 सड़क हादसे हुए। मप्र में ओवरटेक करने की वजह से सबसे ज्यादा लोग दुर्घटना में घायल हुए। हालांकि सबसे ज्यादा 4589 दुर्घटना की मूल वजह कुछ और थी। दूसरे नंबर पर ओवरटेक की वजह से ज्यादा हादसे हुए। लेकिन इसमें सबसे ज्यादा घायल ओवरटेक करने से ही हुए। मोबाइल पर बात करने की वजह से प्रदेश में 129 दुर्घटना हुई। इसमें 43 मौत हुई।
मप्र में खराब सड़कों की वजह से सबसे ज्यादा 993 हादसे हुए। इसमें 171 मौत हुई। कमजोर रोशनी की वजह से 542 हादसे हुए। 484 हादसों में सड़क की खराब इंजीनियरिंग वजह बनी। प्रदेश में 2016 की रिपोर्ट में 5 साल से कम मॉडल के वाहनों से 26749 हादसे हुए। इसमें 4792 मौत हुई। जबकि घायल 28238 हुए। नये वाहन से मप्र में सबसे ज्यादा। मप्र में भारी वाहन-डम्पर से सबसे ज्यादा सड़क हादसे हुए। इसमें 1831 लोगों की मौत हुई। वहीं वाहनों की सामने से टक्कर ज्यादा हुई। सीधी टक्कर के 14450 मामलों में 2777 मौत हुई। जबकि घायल 14868 हुए। हेलमेट नहीं पहनने की वजह से 345 मौत हुई। इन्होंने वाहन चलाते वक्त हेलमेट नहीं पहना था। वहीं सीट बेल्ट नहीं बांधने की वजह से 206 मौत मप्र में हुई।
इंदौर में सबसे अधिक मौत
हादसों में मौत में उप्र अव्वल, मप्र 6वें नंबर पर- 2016 में 9646 मौत 2015 की तुलना में 332 मौत अधिक। रिपोर्ट के अनुसार मप्र की व्यवसायिक राजधानी इंदौर में सड़क दुर्घटना में सबसे ज्यादा मौत होती है। इंदौर में 5143 हादसों में 431 मौत हुई। वहीं जबलपुर में 2016 में 3256 हादसे हुए इसमें 352 लोगों की मौतें हुईं। ग्वालियर में 1993 हादसे में 244 मौत हुई। मप्र में 15102 दुर्घटना में वाहन चलाने वाले की उम्र 25-35 के बीच थी। 2325 हादसों में 18 साल से कम उम्र वाले ड्राइवर थे। सड़क दुर्घटना में घायल होने में मप्र दूसरे नंबर में- 2016 में 57853 लोग घायल हुए। ये 2015 की तुलना में 2058 ज्यादा है। टॉप पांच सिटी में चैन्नई अव्वल। मप्र के इंदौर ने मुबंई और कोलकाता को पीछे छोड़ दिया। इंदौर चौथे नंबर में यहां 5143 सड़क हादसे हुए। मप्र के भीतर ग्रामीण क्षेत्र में सड़क दुर्घटना शहरी इलाकों से कम हुई। मौत के मामले में आंकड़ा ग्रामीण क्षेत्रों का ज्यादा है। शहरों में 28978 दुर्घटना में 3541 मौत और ग्रामीण में 24994 में 6105 मौतें हुईं। 2016 में दुर्घटना के वक्त 44822 लाइसेंसधारी थे। 6068 के पास लर्निग लाइसेंस था। वहीं 3082 हादसों में वाहन चालक के पास लाइसेंस ही नहीं था। 7568 हादसे वाहनों की ओवरलोडिंग की वजह से हुए। इसमें 1059 मौत हुई।
-श्याम सिंह सिकरवार