16-Sep-2017 11:12 AM
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ज्यादा समय नहीं हुआ जब इलाहाबाद हाइकोर्ट ने एक याचिका पर फैसला दिया था कि नेताओं, नौकरशाहों और जजों के बच्चे राजकीय यानी सरकारी स्कूलों में पढ़ें। इसके बाद सरकारी शिक्षा व्यवस्था की दशा और दिशा पर काफी बहस हुई थी। आमतौर पर सरकारी/राजकीय स्कूल के नाम से जेहन में ऐसी तस्वीर उभरती है जिसमें खराब इंफ्रास्ट्रक्चर यानी खस्ताहाल इमारत या इमारत विहीन जगह, टूटा फर्नीचर या नीचे टाट पट्टी पर बैठे बच्चे, ऊंघते से न पढ़ाने की इच्छा वाले या हाजिरी लगा कर गायब हो जाने वाले टीचर और बेहद खराब परिणामों वाले स्कूल होते हैं।
आजादी के बाद शिक्षा और चिकित्सा को विशेष तौर पर सार्वजनिक क्षेत्र में रखे जाने पर जोर दिया गया था। इसका उद्देश्य था कि गरीब जनता को कम से कम खर्च में उचित सुविधाएं मिल सकें, लेकिन बाद के दौर में लालफीताशाही और लापरवाही ने दोनों ही क्षेत्रों की हालत बदतर कर दी। रिपोर्ट दिखाती है कि कैसे सरकारी स्कूल में पांचवीं का बच्चा दूसरी कक्षा की किताब भी नहीं पढ़ पाता। यहीं कारण है कि समय-समय पर सरकारी स्कूलों की दशा सुधारे जाने की आवाज उठती रही है। विभिन्न राज्यों ने कदम भी उठाए हैं जैसे शिक्षकों की वेतनवृद्धि को छात्रों के परिणामों से जोडऩा या बायोमैट्रिक हाजिरी की व्यवस्था, लेकिन राजस्थान सरकार ने दूसरा ही तरीका ढूंढ़ा है।
वसुंधरा राजे सरकार ने राजकीय स्कूलों को निजी क्षेत्र में देने का फैसला कर लिया है। इसके लिए बाकायदा स्कूली शिक्षा में पीपीपी नीति-2017 का मसौदा तैयार किया गया है। कैबिनेट ने इसकी मंजूरी भी दे दी है। पहले चरण में राज्य की 300 स्कूलों को निजी भागीदारों को सौंपा जाएगा। निजी भागीदार सरकारी स्कूलों की जमीन, इमारत और अन्य सुविधाओं का इस्तेमाल करेगा, लेकिन उसे स्टाफ की व्यवस्था खुद करनी होगी। इन स्कूलों में लगे शिक्षकों को दूसरे सरकारी स्कूलों में समायोजित कर दिया जाएगा। पंचायती राज मंत्री राजेंद्र सिंह राठौड़ का कहना है कि सरकारी स्कूलों को निजी क्षेत्र में देने के बावजूद छात्रों को दी जाने वाली सुविधाओं में कोई कमी नहीं होगी। हालांकि अभी ये साफ नहीं किया गया है कि निजी भागीदार फीस बढ़ाकर अपना मुनाफा निकालेगा या उसे सब्सिडी दी जाएगी।
राठौड़ का कहना है कि स्कूली शिक्षा में पीपीपी नीति लागू करने से सरकारी स्कूलों की दशा सुधारने में सहायता मिलेगी। श्रम मंत्री जसवंत यादव का भी कहना है कि वही स्कूल निजी भागीदारी में दिए जाएंगे जहां संचालन में दिक्कतें आ रही हैं। यादव का कहना है कि इससे सरकार का खर्च घटेगा।
हालांकि जानकार लोग राजे सरकार की मंशा पर सवाल उठा रहे हैं। विरोध के सुर खुद भाजपा से भी उठने लगे हैं। विधायक ज्ञानदेव आहूजा ने कहा है कि ऐसे समय में जब राजस्थान में सरकारी स्कूलों के छात्रों ने मेरिट में प्राइवेट स्कूलों को पछाड़ा है, 30 प्रतिशत एडमिशन बढ़े हैं और केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावडेकर तक इसकी तारीफ कर चुके हैं। तब सरकारी स्कूलों को निजी क्षेत्र में देने का फैसला सही नहीं लगता है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट ने आरोप लगाया कि पीपीपी के नाम पर यह पूरी शिक्षा व्यवस्था को अपने चहेतों के हाथों सौंपने की नीति है। सरकार ने यह नहीं बताया है कि उसने किससे और किन शर्तों पर समझौता किया है। पायलट के मुताबिक शिक्षा और चिकित्सा जैसी बुनियादी और संवैधानिक जिम्मेदारियों से राज्य को मुंह नहीं मोडऩा चाहिए। कुछ महीनों पहले ही राजे सरकार ने छात्रों की कम संख्या और कम दूरी पर ज्यादा स्कूल होने के नाम पर सरकारी स्कूलों के समायोजन की योजना लागू की थी। कांग्रेस का आरोप है कि इस योजना के तहत करीब 19 हजार छोटे स्कूलों को बंद कर दिया गया।
घोटाले की आशंका जता रहे हैं लोग
लेकिन कई लोग निजी क्षेत्र की दक्षता और मैक्सीमम गवर्नेंस की आड़ में किसी बड़े घपले की आशंका से इनकार नहीं कर रहे हैं। गांवों और शहरों में सरकारी स्कूलों के पास करोड़ों करोड़ की जमीनें हैं। सरकारी स्वास्थ्य केंद्रों और रोड वेज बस अड्डों के पास भी कुल मिलाकर करोड़ों-अरबों की संपत्तियां हैं। विपक्ष का आरोप है कि इसी संपत्ति से अपने चहेतों को फायदा पहुंचाने के लिए ही इन तीनों क्षेत्रों में पीपीपी का सहारा लिया जा रहा है। एक ही समय में दो परस्पर विरोधी बातें भी समझ से परे हैं। राजस्थान की भाजपा सरकार, सरकारी स्कूलों को प्राइवेट हाथों में देने का यह कदम ऐसे समय में उठा रही है जब दिल्ली की आप सरकार प्राइवेट स्कूलों के शोषण को रोकने के लिए उन्हें सरकारी क्षेत्र में लेने का मन बना रही है। कुछ भी हो, एक बात तो तय है कि निजी क्षेत्र नुकसान वाले सौदों में हाथ नहीं डालता। वह खर्च की भरपाई और मुनाफे के लिए फीस बढ़ाएगा। ऐसे में देखने वाली बात ये है कि उस गरीब जनता का कल्याण कैसे होगा जो कम खर्च वाले सरकारी स्कूलों, सरकारी अस्पतालों और सरकारी बसों के सहारे जीती है।
-जयपुर से आर.के. बिन्नानी