19-Aug-2017 06:53 AM
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राजस्थान में मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे का यह कार्यकाल निरंतर उतार-चढ़ाव भरा रहा है। जब भी मुख्यमंत्री घिरती नजर आती हैं। कांग्रेस को सत्ता में वापसी की उम्मीद जग जाती है। एक बार ऐसी स्थिति बनी थी, लेकिन भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने महारानी की पीठ थपथपाकर उनके विरोधियों के साथ ही कांग्रेसियों की बोलती बंद कर दी है। शाह तीन दिन तक संगठन के हर स्तर की बैठकों में पार्टी की नब्ज टटोल गये। यों वे पिछले कई हफ्तों से देशभर का भ्रमण कर रहे हैं। मकसद भाजपा को संजीवनी देकर और ताकतवर बनाना है।
जयपुर दौरा पार्टी के लिए कुछ अलग अहमियत वाला रहा। भाजपा को यहां फिर सत्ता में लाना नेतृत्व के लिए चुनौती है। अभी तक तो यहां यही परंपरा चली आ रही है कि सूबे के मतदाता हर बार बदलाव कर डालते हैं। पर जो सत्ता में बैठकर मलाई खा रहे हैं, वे इस हकीकत से मुंह ही मोड़ते हैं। कभी स्वीकार नहीं करते कि दोबारा सत्ता में नहीं आ पाएंगे। जबकि ऐसे नेताओं की भी कमी नहीं जो हकीकत से मुंह नहीं मोड़ते। शाह ने अपने दौरे से पहले ही संगठन का फीडबैक ले रखा था। इस तथ्य से नावाकिफ नहीं थे कि सूबे में संगठन और सरकार की जैसी हालत है, उसके रहते जनता तो दूर पार्टी के अपने लोग भी खुश नहीं। सत्ता में वापसी सरकार के कामकाज के बूते नहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता और अमित शाह की चुनावी रणनीति के बूते ही संभव है। इसलिए नेताओं की जमकर क्लास लगाई।
बेबाकी से कह गए कि जो सत्ता का मजा ले रहे हैं वे संगठन का काम करने के दायित्व से बच नहीं सकते। अपने अध्यक्ष के दौरे की विस्तृत रिपोर्ट अब उनके दो महासचिव भूपेंद्र यादव और अनिल जैन कर रहे हैं। यादव तो खुद भी राजस्थान के ही ठहरे। पर अपने तरीके से जानकारियां जैन ने भी कम नहीं जुटाईं। साधु-संतों की बैठक से पहले सूबे के खास मंदिरों के महंतों को शाह से रूबरू कराने में जैन की भी भूमिका अहम रही। इसके अलावा प्रभारी संगठन मंत्री वी सतीश अलग सक्रिय दिखे। इस दौरे का एक खास पहलू वसुंधरा राजे का चौकस रहना दिखा। अपने अध्यक्ष के साथ वे साए की तरह नजर आईं। अमित शाह ने कुछ खास लोगों को अब दिल्ली तलब किया है। इनमें सभी पार्टी से जुड़े नहीं हैं। पर संघ की विचारधारा से नाता रखने वाले ये लोग मौजूदा सरकार की कार्यशैली से खुश नहीं। लगता है कि अमित शाह राजस्थान के बारे में रणनीति बुनते वक्त ऐसे तटस्थ लोगों की राय को अहमियत दे सकते हैं। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के राजस्थान दौरे के बाद से मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे का आत्मविश्वास बढ़ा है। राजे के खिलाफ आवाज बुलंद कर रहे पार्टी नेताओं को शाह के दौरे से जहां एक ओर निराशा हाथ लगी है। तो दूसरी ओर राजे दोबारा से मजबूत होकर उभरी हैं।
राजस्थान में राजे की कुर्सी बरकरार रहने के बाद भाजपा आलाकमान यूपी प्रभारी ओम माथुर की नई भूमिका तय कर सकता है। संगठन से हटाकर उन्हें पीएम मोदी के अगले मंत्रीमंडल विस्तार में मंत्री बनाया जा सकता है। माथुर को पीएम मोदी का बेहद करीबी माना जाता है। उधर आने वाले दिनों में कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष सचिन पायलट की मुश्किलें बढऩे के आसार हैं। जानकारी बताते हैं कि अमित शाह संगठन को सचिन पायलट से किसी भी कीमत पर निपटने के निर्देश दे गए हैं।
बढ़ सकता है अशोक गहलोत का कद
राजस्थान की राजनीति में अशोक गहलोत का दबदबा एक बार फिर से बढ़ सकता है। गुजरात राज्यसभा चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी अहमद पटेल की जीत के बाद से कांग्रेस आलाकमान के सामने गहलोत की पकड़ मजबूत होने की संभावना है। आपको बता दें कि अशोक गहलोत गुजरात के प्रभारी व कांग्रेस के महासचिव हैं। गुजरात राज्यसभा चुनाव में अहमद पटेल की जीत के बाद से अशोक गहलोत के समर्थक खुश हैं। सोशल मीडिया में भी अशोक गहलोत के समर्थक जीत का श्रेय गहलोत के सिर पर बांध रहे हैं। अहमद पटेल की जीत के बाद अशोक गहलोत ने उन्हें बधाई देते हुए ट्वीट भी किया था। ट्वीट का जवाब देते हुए अहमद पटेल ने अशोक गहलोत को कड़ी मेहनत के लिए धन्यवाद दिया था। गुजरात का प्रभारी और पार्टी महासचिव होने के नाते ये राज्यसभा चुनाव गहलोत के लिए किसी चुनौती से कम नहीं था। गुजरात में इस साल विधानसभा के चुनाव होने हैं और ये जीत कार्यकर्ताओं के लिए नया उत्साह भरेगी। गुजरात विधानसभा के चुनाव गहलोत के लिए एक कड़ी परीक्षा के समान होगा। वहीं, राजस्थान में भी 2018 में चुनाव होने हैं। राजनीतिक जानकारों के अनुसार माना जा रहा है कि इस जीत का असर राजस्थान में कांग्रेस की राजनीति पर भी पडऩा तय माना जा रहा है।
-जयपुर से आर.के. बिन्नानी