30-May-2013 07:05 AM
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अस्सी-नब्बे के दशक में डकैतों पर फिल्में बनाना हमारे मेकर्स को कुछ ज्यादा ही पसंद था। इसी दौर में आई धर्मेंद्र और विनोद खन्ना की फिल्म मेरा गांव मेरा देश ने बॉक्स ऑफिस पर कामयाबी का

इतिहास रचा, तो सुनील दत की फिल्म मुझे जीने दो डकैत समस्या पर बनी बेहतरीन फिल्मों की लिस्ट में आज भी टॉप पर आती है। कुछ साल पहले जाने-माने प्रड्यूसर-डायरेक्टर और ऐक्टर शेखर कपूर की दस्यु सुंदरी फूलन देवी उर्फ बेंडिट क्वीन को देश-विदेश में दर्जनों अवॉर्ड दिला गई और फिल्म टिकट खिड़की पर सुपरहिट रही। बेंडिट क्वीन की कामयाबी के बाद इंडस्ट्री के किसी टॉप बैनर ने इस सब्जेक्ट पर काम नहीं किया। ऐसा नहीं कि इस बीच डकैतों से जुड़ी फिल्में न बनी हों, बल्कि इस समस्या पर बनी इन फिल्मों को कम बजट में नए मेकर ने बनाया जो ऐसे सब्जेक्ट के साथ न्याय नहीं कर पाए। इसी कड़ी में डायरेक्टर कृष्णा मिश्रा की बीहड़ शामिल होती है। फिल्म शुरू करने से पहले कृष्णा मिश्रा ने सब्जेक्ट पर अच्छी रिसर्च की, लेकिन सीमित बजट, कमजोर स्क्रिप्ट और अनुभवहीन नई स्टार कास्ट के साथ बनी यह फिल्म सी-क्लास सेंटरों पर चलने वाली ऐसी फिल्म बनकर रह गई जो सिर्फ फ्रंट क्लास, चालू मसालों, सेक्स, मार-धाड़ पसंद करने वाले दर्शकों की कसौटी पर ही कुछ खरा उतर सकती है। फिल्म में विक्रम मल्लाह (सुनील सावरा) और फूलन (दीपा सिंह) पर ऐसे कई बेहद हॉट लव मेकिंग सीन्स फिल्माए गए हैं, जिनकी स्क्रिप्ट में जरूरत ही नहीं थी। कहानी में सेक्स का तड़का लगाने के लिए इन सीन्स को कहानी का जबरन हिस्सा बनाया गया है।
कहानी: मध्यप्रदेश, राजस्थान, यूपी के बीच बहती चंबल नदी से सटे बीहड़ में छिपे डकैतों को जिंदा या मुर्दा पकडऩा इन तीनों राज्यों की पुलिस के लिए सबसे बड़ी चुनौती रही है। अगर आपने शेखर कपूर की बेडिंट क्वीन देखी है, तो इस फिल्म में ऐसे कई सवालों का जवाब आपको मिलेगा जो शेखर की फिल्म में नहीं था। विक्रम मल्लाह (सुनील सावरा) के साथ फूलन (दीपा सिंह) के नजदीकी रिश्तों, श्रीराम-लाला राम गैंग में नंबर टू पर रहे विक्रम मल्लाह द्वारा श्रीराम को मारकर गैंग का मुखिया बनने की साजिश रचना, श्रीराम के हाथों विक्रम का मारा जाना, श्रीराम की सहमति से फूलन द्वारा अलग गैंग बनाना, फूलन का डाकू सरगना मान सिंह (रियल डाकू मान सिंह) से विवाह रचाने से लेकर बीहड़ में 2005 तक आतंक की पहचान रहे निर्भय गुज्जर (विकास श्रीवास्तव) के खात्मे की इस कहानी में विक्रम मल्लाह का कुसुम नैन (अनामिका पांडे) को किसी भी सूरत में अपना बनाने की इकतरफा लव स्टोरी फिल्म में सेक्स का तड़का लगाती है।कभी चंबलघाटी में आतंक की पहचान रहे डाकू मान सिंह ने फिल्म में अपने किरदार को खुद निभाया है। फूलन के किरदार में दीपा सिंह ने जमकर सेक्सी सीन देने और शोर मचाने के अलावा और कुछ नहीं किया है। विक्रम मल्लाह और निर्भय गुज्जर फिल्म के अहम किरदार हैं, लेकिन इन किरदारों को निभा रहे सुनील सावरा और राजेश तिवारी इन भूमिकाओं पूरी तरह से अनफिट रहे। कुसुम नैन के किरदार में अनामिका पांडे ने जरूर कुछ सीन्स में प्रभावित किया है। डायरेक्टर कृष्णा मिश्रा ने करीब तीन दशक से ज्यादा अरसे तक बीहड़ों में राज करने वाले कई नामी डकैतों पर अच्छी रिसर्च तो की, लेकिन अपनी रिसर्च के साथ बतौर डायरेक्टर, स्क्रिप्ट राइटर न्याय नहीं कर पाए। हां, बीहड़ की रियल लोकेशन पर जाकर फिल्म शूट करने में कृष्ण ने अच्छी खासी मेहनत जरूर की है।
म्यूजिक: तीन संगीतकारों का नाम जुडऩे के बावजूद फिल्म में ऐसा कोई गाना नहीं जो आपको सिनेमा हॉल से बाहर आने के बाद भी याद रह सके।
क्यों देखें: अगर तीन दशक तक चंबल में राज करने वाले कुख्यात डाकू सरगनाओं के बारे में जानने के लिए दिलचस्पी है और डाकू सरगना मान सिंह को ऐक्टिंग करते देखना चाहते हैं, तो एक बार इस फिल्म को देखा जा सकता है।