16-Sep-2017 11:06 AM
1234887
बेस लाइन से टेनिस बॉल को लॉबिंग कर नेट के उस पार पहुंचाने वाले विश्वस्तरीय टेनिस खिलाड़ी की तरह, ऐसा लगता है कि भारत ने भी दक्षता से चीन के साथ रिश्तों में फिर से संतुलन साध लिया है। भारत के लिए श्यामेन ब्रिक्स शिखर सम्मेलन का घोषणापत्र कुछ दिन पहले तक चीन के आक्रामक व्यवहार से पूरी तरह अलग है। ऐसा लगता है कि भारत के सुरक्षा मैनेजरों की सूझ-बूझ भरी कूटनीति फलदायी रही है। यह इतनी सफल रही कि चीन को अपना सबसे भरोसेमंद और विश्वसनीय साथी मानने वाले पाकिस्तान ने घोषणापत्र को खारिज कर दिया। जबकि यह घोषणापत्र चीन की अध्यक्षता में स्वीकार किया गया। खुद पाकिस्तान के रक्षा मंत्री खुर्रम दस्तगीर ने इसे अस्वीकार किया।
श्यामेन घोषणापत्र में पाकिस्तान स्थित लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद को आतंकी संगठन माना गया है। दोनों गुट भारत को निशाना बनाने के लिए कुख्यात हैं। इसके अलावा, विगत दिनों हुए भारत-चीन द्विपक्षीय शिखर सम्मेलन में सीमा पर शांति बनाए रखने पर सहमति बनी। तय हुआ कि दोनों देशों के सुरक्षा और रक्षा प्रमुख इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए संपर्क में रहेंगे। दोनों देशों की सेनाओं के बीच पिछले लगभग तीन महीने से डोकलाम को लेकर तनाव चल रहा था। इस दौरान चीन के उकसावों भरे बयानों से यह पूरी तरह अलग है। यह संभव है कि विवाद के दौरान चीन भारत की प्रतिक्रिया, दिलेरी और आक्रामक बयानों के सामने टिके रहने की क्षमता की परख कर रहा हो। चीन की सेना युद्ध और मजा चखाने की स्पष्ट चेतावनी लगातार दे रही थी।
श्यामेन घोषणापत्र गोवा में हुए पिछले शिखर सम्मेलन के बाद आए बड़े बदलाव को दर्शाता है। उस सम्मेलन में चीन और रूस ने आतंकवाद को प्रमुख मुद्दा बनाने की भारत की कोशिशों पर ठंडी प्रतिक्रिया दी थी। यह भारतीय पक्ष के लिए बहुत बड़ा झटका था। भारत के सुरक्षा प्रतिष्ठान ने पिछले कुछ महीनों में अपना रूख सावधानी से तय किया और उसे सराहनीय तरीके से लागू किया। विशेष रूप से, अरुणाचल प्रदेश में तवांग या बलूचिस्तान और गिलगित के स्वतंत्रता सेनानियों का कोई जिक्र नहीं किया गया है।
ज्ञातव्य है कि पिछले साल स्वतंत्रता दिवस के भाषण में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सार्वजनिक रूप से बलूचिस्तान और गिलगित में स्वतंत्रता आंदोलन को समर्थन देने का एलान किया था। इससे चीन के कान खड़े हो गए थे। ऐसा होना स्वाभाविक था क्योंकि बेल्ट और रोड परियोजना और चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा वाला हिस्सा इन दोनों क्षेत्रों से होकर गुजरता है। इसके बाद भारत को लेकर चीन का रूख अचानक बहुत बदल गया। अब चीन नरम पड़ा है, लेकिन अभी भी भारत को सतर्क रहने की जरूरत है।
भारत की कूटनीति कितनी सफल
एक बड़ा सवाल अब भी बना हुआ है। सवाल यह है कि पाकिस्तान को लेकर चीन और रूस के दोस्ताना व्यवहार को भोथरा करने में भारत किस हद तक सफल हुआ है। पिछले दिनों अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अफगानिस्तान और एशिया-प्रशांत क्षेत्र में भारत से गठजोड़ की घोषणा की थी। इसके बाद परिस्थितियां बहुत हद तक बदल गई हैं। दुनिया भर में ग्रेट पावर रिलेशन तेजी से बदल रहा है। इसलिए यह सवाल लाजिमी है कि क्या उत्तर कोरिया पर मौजूदा फोकस ने चीन और रूस को श्यामेन में रूख बदलने पर मजबूर किया है। रूस और चीन दोनों उत्तर कोरिया का समर्थन करते हैं। राष्ट्रपति ट्रंप के अप्रत्याशित स्वभाव से मामला पहले ही नाजुक दौर में पहुंच चुका है। हालांकि पश्चिम एशिया में इस्लामिक स्टेट (आईएस) के आतंकवादी पीछे हटने को मजूबर हैं, फिर भी कई आतंकी संगठन दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में अब भी बड़ा खतरा बने हुए हैं। इन सब अनिश्चितताओं के बीच, यह बात तय है कि चीन वैश्विक मामलों में प्रमुख शक्ति बनना चाहता है। सबसे बड़ा सवाल यह है कि भारत की चिंताएं और आकांक्षाएं इसमें कैसे फिट बैठेगी?
-अवधेश कुमार