16-Sep-2017 10:42 AM
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कालेधन पर अंकुश लगाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नोट बंदी का जो कदम उठाया था वह कारगर सिद्ध नहीं हुआ। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की रिपोर्ट जारी होने के बाद यह समझना मुश्किल हो गया है कि आखिर विमुद्रीकरण का मकसद क्या था! क्योंकि इसका जो घोषित उद्देश्य था यानी काला धन और जाली मुद्रा की समाप्ति, वे दोनों फरेब साबित हुए हैं। रिपोर्ट बता रही है कि 99 प्रतिशत मुद्रा वापस आ चुकी है। सिर्फ सोलह हजार करोड़ रुपए कीमत की मुद्रा वापस नहीं आई है। जिस मुल्क की आबादी सवा सौ करोड़ हो वहां इतनी राशि का न लौटना कोई बड़ी बात नहीं है। नेपाल और भूटान में भारतीय मुद्रा प्रचलन में है यानी वहां भी सोलह हजार करोड़ रुपए में से कुछ मुद्रा हो सकती है। सवाल है विमुद्रीकरण हुआ ही क्यों?
अगर विमुद्रीकरण का मकसद काला धन रोकना होता तो एक हजार की मुद्रा को खत्म करके दो हजार रुपए के नोट नहीं लाए जाते। काले धन वालों के लिए तो दो हजार रुपए का नोट और भी वरदान ही साबित हुआ। सरकार के मंसूबे अच्छे हों या बुरे, मगर अफसरशाही बचाव कर ही लेती है। सरकार की दिक्कत यह रही कि उसने राजनीतिकों से ज्यादा भरोसा नौकरशाही पर किया। न तो कालाधन बाहर आया और न ही जाली मुद्रा का पता चला। क्या भारत में जाली मुद्रा पुलिसिया मनगढ़ंत कहानी थी? ऐसी कई बातें हैं जो विमुद्रीकरण की सरकार की मंशा को शक के दायरे में ले आती हैं। अगर सरकार को हजार और पांच सौ के नोट खत्म ही करने थे तो उसे चरणबद्ध तरीके से यह काम करना चाहिए था। पहले हजार के नोट छापना बंद करती, फिर बाजार में चल रहे नोटों की वापसी की समय सीमा तय करती। इसी तरह पांच सौ के नोटों के साथ भी करना चाहिए था।
मगर बिना किसी तैयारी के 8 नवंबर, 2016 को अचानक विमुद्रीकरण का ऐलान हो गया। नतीजा यह रहा कि चार-छह घंटों के भीतर ही बाजार में लूट मच गई। सर्राफा बाजार से लेकर किराना, सब्जी-फल तक खरीदारी की होड़ लग गई। इस बीच जिसे जितना सफेद करना था कर लिया। फिर अचानक फरमान आया कि हर व्यक्ति अपने खाते में बिना लिखा-पढ़ी के ढाई लाख रुपए जमा करा सकता है। बैंकों में पहले तो जन-धन खातों में ढाई-ढाई लाख रुपए जमा कराए गए। फिर बैंक कर्मचारियों की मिलीभगत से उन खातों को खंगाला गया जिनको खुलवा कर खाता धारक ही भूल गए थे। उनमें पैसे जमा किए गए। पूरे नवंबर भर नोटों को बदलवाने की प्रक्रिया चली, उनमें ठेके पर लोग लगाए गए और चार-चार हजार रुपए फटाफट दो-दो हजार रुपए के नोटों में बदले गए।
क्या सरकार को पता नहीं था कि लोगबाग ऐसे खेल कर लेंगे या उनको खेल करने की पूरी छूट दी गई? जन-धन खाते लाने की योजना इसी सरकार की थी और तब बड़े तामझाम के साथ इसे प्रचारित किया गया था कि हर व्यक्ति के पास अपना खाता होगा। इन बैंक खातों का इससे बढिय़ा इस्तेमाल भला और क्या हो सकता था कि इन्हें कालेधन से भर दिया जाए! और लोगों ने यही किया। जिसके पास जितना भी बिना लिखा-पढ़ी का पैसा था, उसने अपने परिचितों में खोज-खोज कर ऐसे खाते निकाले और उनमें पैसे जमा किए, लेकिन जो आम लोग अपने घर पर हारी-बीमारी के लिए नकदी रखे थे, या वे उसे समय पर जमा नहीं कर सके या जमा करने गए तो व्यर्थ में ही हलकान हुए, जो लोग इस आपाधापी में मौत के शिकार हो गए, वे कोई कालाधन वाले नहीं थे और सोचिए कि उनके हिस्से क्या आया। देखा जाए तो विमुद्रीकरण का कोई औचित्य अभी तक सरकार साबित नहीं कर पाई। लगता है कि जैसे सब कुछ एक हड़बड़ी में किया गया हो। इसका नतीजा है कि केंद्र सरकार अपने बनाए चक्रव्यूह में उलझ कर रह गई है और उसे जवाब देते नहीं बन रहा है तो वह तरह-तरह के बहाने बना रही है।
नोटबंदी मोदी सरकार की ऐसी बड़ी भूल थी जिसकी भरपाई निकट भविष्य में मुश्किल है। व्यापार लगभग ठप है, उद्योग मृतपाय हैं। रोजगार का सृजन तो दूर, किसी का भी रोजगार सुरक्षित नहीं बचा है। चारों ओर छंटनी का बाजार गरम है। वेतन कम किए जा रहे हैं। कल्याणकारी सरकार का दायित्व होता है कि वह अपने हर नागरिक को रोजगार दे और उसके जान-माल की सुरक्षा की गारंटी ले। मगर यहां तो सब उलटा-पुलटा है। जब रोजगार नहीं होता तो लोग अपराध की तरफ भागेंगे ही। अपराध बढ़ रहा है और सकल घरेलू उत्पाद घट रहा है। इतने बड़े देश में जहां की ज्यादातर आबादी गांवों में बसती है और जिसमें बड़ी संख्या में लोग निरक्षर हैं, वहां क्रेडिट कार्ड या डेबिट कार्ड या इ-वॉलेट से काम नहीं चलाया जा सकता। वहां पर नकदी को बाजार में उतारना ही होगा, लेकिन सरकार ने इस दिशा में समुचित पहल नहीं की। अलबत्ता देश को हाई-फाई बनाने के चक्कर में उसे और गड्ढे में ढकेल दिया गया।
2019 के बाद फिर एक दांव
नोटबंदी भले ही कारगर सिद्ध नहीं हुई है, लेकिन कहा जा रहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हार मानने वाले नहीं हैं। देश को भ्रष्टाचार मुक्त बनाने के लिए वे अमेरिकी तर्ज पर बड़े नोटों यानी 2000 और 500 के नोटों का 2019 के बाद चलन बंद करने की तैयारी में हैं। जिस तरह अमेरिका में 100 बिलियन और 10 हजार डॉलर तक के नोट छापे गए, लेकिन अब ये नोट सर्कुलेशन में नहीं है। फेडरल रिजर्व बैंक ने 10 हजार अमेरिकी डॉलर के नोट को 2009 के बाद सर्कुलेशन से बाहर कर दिया। हालांकि, 10 हजार डॉलर के 366 नोट अभी भी मार्केट में मौजूद हैं, लेकिन वे चलन में नहीं है। इसी तरह प्रधानमंत्री मोदी भी चाहते हंै कि 2000 और 500 के नोट को सर्कुलेशन से बाहर रखा जाए। इनका प्रयोग केवल बैंकिंग व्यवस्था में होता रहे। इससे यह होगा कि कोई भी व्यक्ति इन बड़े नोटों के माध्यम से काला धन अपने पास नहीं रख पाएगा। इस व्यवस्था से प्लास्टिक करेंसी का चलन बढ़ेगा। किसी भी खरीदी या लेन-देन में लोग कार्ड का इस्तेमाल करेंगे। इससे भ्रष्टाचार पर लगाम लगने की संभावना है।
-माया राठी