घोटाले की शराब
16-Sep-2017 10:05 AM 1234907
मप्र के सबसे कमाऊ विभागों में से एक आबकारी विभाग भी है, लेकिन विभाग के कुछ अधिकारियों-कर्मचारियों के साथ मिलकर शराब कारोबारी सरकार को हर साल करोड़ों की चपत लगाते आ रहे हैं। इंदौर में शराब ठेकेदारों द्वारा बैंकों में भरे जाने वाले चालानों में हेरफेर के जरिए सरकारी खजाने को करीब 41.40 करोड़ रुपए की चपत लगाने का मामला सामने आया तो विभाग के साथ ही सरकार के भी तार हिल गए। शराब ठेकेदारों द्वारा की जा रही जालसाजी में आबकारी विभाग और वित्त एवं कोष विभाग के अधिकारियों की बड़ी लापरवाही सामने आयी है कि शासकीय कोषालय में जमा होने वाले बैंक चालानों का कभी वेरिफिकेशन करने की कोशिश ही नहीं की गई। नियम यह है कि हर विभाग को ट्रेजरी में उनके मद में हर महीने जमा होने वाले चालान का मिलान करना चाहिए, लेकिन ऐसा नहीं किया गया। इसी का नतीजा था कि तीन साल में सरकार को करोड़ों की चपत देकर शराब ठेके हासिल किए जाते रहे। आबकारी विभाग में वर्ष 2015-16, 2016-17 और 2017-18 के लिए हुए ठेकों में 40 करोड़ से अधिक का जो घपला आ रहा है, इसके पीछे यही लापरवाही है। इंदौर में शराब कारोबारियों के फर्जी चालान घोटाले के मामले में प्रदेश के वित्त एवं वाणिज्यिक कर मंत्री जयंत मलैया ने सख्त कदम उठाते हुए इंदौर जिले में पदस्थ आबकारी अमले को एक साथ बदल डाला है। जिले के सबसे बड़े अफसर आबकारी उपायुक्त विनोद रघुवंशी सहित तीन साल से ज्यादा अवधि से तैनात बीस से ज्यादा आबकारी अफसरों का एक झटके में दूसरे जिलों में तबादला कर डाला है। जिले से सहायक आबकारी आयुक्त संजीव दुबे सहित छह अफसरों और बाबुओं को निलंबित कर दिया है। पुलिस की जांच में आबकारी अफसरों की गंभीर लापरवाही सामने आ रही है, जिसके आधार पर अफसरों पर आगे और कड़ी कार्रवाई हो सकती है। मामले की जांच कर रही एसआईटी के प्रभारी एएसपी संपत उपाध्याय के मुताबिक, कई शराब ठेकेदारों ने कारोबार चलाने का जिम्मा राजू दशवंत व अंश त्रिवेदी को सौंप दिया था। नियमानुसार बैंक में आबकारी विभाग के खाते में राशि जमा करने के बाद चालान की एक कॉपी विभाग को देना होती है, जिसके आधार पर वेयर हाउस से शराब मिलती थी। जांच में पता चला, फर्जीवाड़े वाले सभी चालान राजू दशवंत के हाथ से ही लिखे हैं। नियमानुसार बैंक से चालान की एक कॉपी ट्रेजरी को भी भेजी जाती थी, आबकारी व ट्रेजरी से जुड़े लोगों को हर माह चालान की समीक्षा करना चाहिए। एक साल से दोनों विभागों ने किसी तरह की समीक्षा ही नहीं की। आबकारी विभाग के अधिकारियों की शराब ठेकेदारों पर मेहरबानी का नया मामला सामने आया है। इंदौर में सहायक आबकारी अधिकारी रहे जिला आबकारी अधिकारी आरपी दुबे और गिरीश प्रताप सिंह सिकरवार ने आला अधिकारियों की अनुमति के बिना ही शराब ठेकेदारों की बैंक गारंटी रिलीज कर दी थी। यह सीधे-सीधे ठेकेदारों को लाभ पहुंचाने की नीयत से किया गया। बताया जाता है कि फर्जी बैंक चालान से ठेके लेने के मामले की जांच रिपोर्ट में यह बात भी उजागर हुई है। आबकारी आयुक्त अरुण कोचर ने कलेक्टर निशांत वरवड़े और नवनियुक्त सहायक आयुक्त आबकारी नरेश कुमार चौबे को मामले की जांच कर रिपोर्ट देने को कहा है। अभी इस फजीवाड़े की जांच चल ही रही है कि आबकारी विभाग में एक नया घोटाला सामने आ गया है। ईओडब्ल्यू के पुलिस अधीक्षक स्तर के एक अधिकारी ने बताया कि इस इकाई ने इंदौर संभाग के चार जिलों में शराब ठेकों को फिर से नीलाम करने के लगभग 34 करोड़ रुपए के कथित घोटाले को लेकर की गई शिकायत पर जांच शुरू कर दी है। शिकायत में आरोप लगाया है कि संभाग के खरगोन, झाबुआ, खंडवा और बड़वानी जिलों में देशी और विदेशी शराब की दुकानों के ठेकेदारों ने अपने ठेके आबकारी विभाग को सरेंडर कर दिए। पुन: नीलामी में इन ठेकों को पुराने ठेकेदारों के रिश्तेदारों और परिचितों को ही बेहद कम मूल्य पर आवंटित कर दिए गए। अब इस मामले में भी जांच शुरू हो गई है। ऐसे लगाई जाती थी सरकार को चपत अभी तक की पड़ताल में यह तथ्य सामने आया है कि चालान जमा कराने वाले शराब ठेकेदारों के कारिंदों की बदनीयती के चलते यह फर्जीवाड़ा हुआ है। इसके साथ ही चालान जमा कराने वाले बैंक कर्मियों की गलती भी सामने आई है, क्योंकि चालान फार्म में रकम अंकित करने का जो काम बैंक अफसरों को करना होता है, वह काम ठेकेदार के कारिंदे कर रहे थे। वो बैंक और कोषालय भेजे जाने वाले चालान फार्म में तो वास्तविक रकम(दस हजार) ही अंकित करते थे, लेकिन आबकारी के शराब डिपो में जमा कराए जाने वाले चालान फार्म के रकम वाले कालम की शुरुआत में जानबूझकर थोड़ी जगह छोड़ देते थे। आबकारी डिपो में चालान जमा कराते वक्त वह दस हजार के पहले पांच लाख या दस लाख अंकित कर देते थे। इससे आबकारी डिपो को लगता था कि ठेकेदार ने दस हजार नहीं बल्कि ज्यादा रकम दर्ज कराई है। - विशाल गर्ग
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