16-Sep-2017 10:19 AM
1234775
एक पुरानी कहावत है-लोहा लोहे को काटता है। कुछ इसी तर्ज पर मध्यप्रदेश कांग्रेस सत्ता में वापसी के लिए भाजपा को जवाब देने की तैयारी कर रही है। यानी जिस तरह यात्रा की राजनीति करके मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने प्रदेश में भाजपा की साख मजबूत की है अब उसी तर्ज पर कांग्रेस के दो दिग्गज यात्रा पर निकलने की तैयारी कर रहे हैं।
ये हैं पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह और नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह। दिग्विजय सिंह मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की नमामि देवी नर्मदे यात्रा की तर्ज पर नर्मदा परिक्रमा पर निकलने की तैयारी कर रहे हैं। अब वह छह महीने के लिए नर्मदा नदी की यात्रा करेंगे। वहीं अजय सिंह प्रदेशभर में परिवर्तन यात्रा निकालने की तैयारी में है। जानकार बताते हैं कि कांग्रेस में दिन पर दिन गिरती अपनी साख को बचाने के लिए दिग्विजय सिंह नर्मदा की परिक्रमा करने जा रहे हैं। हालांकि वह कहते हैं कि अपने गुरू के निर्देश पर वह ऐसा करने जा रहे हैं। उनका यह भी कहना है कि इस यात्रा का किंचित मात्र भी राजनीतिक निहितार्थ नहीं है, लेकिन जो शख्स बरसों-बरस से राजनीति ही ओढ़ता और बिछाता आया हो, उसकी यह बात आसानी से हजम नहीं होती। संभव है कि नर्मदा की यात्रा कर दिग्विजय अपनी छवि में बदलाव की कोशिश कर रहे हों। दिग्विजय मध्यप्रदेश में एक हजार किलोमीटर से ज्यादा का सफर तय करने वाली इस नदी के किनारों से मुखातिब होंगे। महाराष्ट्र की सीमा से बहती इसी नदी के साथ चलेंगे। फिर गुजरात में उनका आगमन होगा। तीनों राज्य फिलहाल भाजपा के पास हैं। मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह चौहान, महाराष्ट्र में देवेंद्र फड़णवीस और गुजरात में विजय रूपाणी। इन तीन मुख्यमंत्रियों के राज्य में नर्मदा किनारे बसी जनता के बीच पहुंचने से क्या दिग्विजय को पॉलिटिकल माइलेजÓ नहीं मिलेगा? क्या इस छमाही में नर्मदा का सेवक तथा गुरू का आज्ञाकारी शिष्य दिखने वाले दिग्विजय को नर्मदा के पूजकों के बीच एक नयी पहचान हासिल होगी? इसका जवाब तो यात्रा के बाद ही मिलेगा।
उधर, आगामी दशहरा पर्व के बाद नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह के नेतृत्व में कांग्रेस एक बार फिर परिवर्तन यात्रा निकालेगी। अजय सिंह का कहना है कि इस बार शुरू होने वाली यात्रा बीच में नहीं रोकी जाएगी। इस बार यात्रा शुरू होगी, जो समाप्त होने तक चलती रहेगी। गौरतलब है कि सिंह पिछली बार जब नेता प्रतिपक्ष थे, तब ओरछा से प्रदेश में परिवर्तन यात्रा शुरू की थी। उनकी यह यात्रा महज कुछ दिनों में कांग्रेस पार्टी के बड़े नेताओं के विरोध के कारण आलाकमान ने रद्द कर दी थी, लेकिन इस बार सिंह आश्वस्त दिखाई दे रहे हैं।
कांग्रेस में अंदरूनी तौर पर दोनों यात्राओं की तैयारी चल रही है। वहीं भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार सिंह चौहान कहते हैं कि कांग्रेस कितना भी प्रयास कर ले इस प्रदेश की जनता उसे सत्ता में वापस नहीं लाना चाहती है। दिग्विजय सिंह के 10 साल के कुशासन का दंश अभी भी जनता भुगत रही है। उधर कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष अरुण यादव का कहना है कि मध्यप्रदेश में भाजपा को सबक सिखाने के लिए कांग्रेस का हर नेता जनता के साथ खड़ा है। अब प्रदेश से भाजपा को भगाने की बारी आ गई है। वह कहते हैं कि इस बार हम ही सरकार बनाएंगे।
कहां खड़ी है कांग्रेस
मध्यप्रदेश में भाजपा बीते 14 साल से सत्ता पर काबिज है। इस दौरान यहां उसने अपनी गहरी पैठ बना ली है। उधर लम्बे समय तक सत्ता की धुरी रही कांग्रेस वहीं के वहीं कदमताल करती हुई नजर आ रही है, ना तो उसने अपनी लगातार हार से कोई सबक सीखा है और न ही कभी-कभार मिली जीत से कार्यकर्ताओं में उत्साह है। कह सकते हैं कि कांग्रेस का जनता से जुड़ाव लगातार कमजोर हुआ है। कांग्रेस अपने इतिहास के सबसे बुरे दौर से गुजर रही है। अगले साल कर्नाटक, मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। इन चारों राज्यों में कांग्रेस एक ताकत है और उसका मुकाबला यहां सीधे तौर पर भाजपा से है। यहां क्षेत्रीय पार्टियां नहीं हैं, अगर हैं भी तो उनकी स्थिति कमजोर है। मध्यप्रदेश की बात करें तो ऐसा लगता है कि कांग्रेस हाईकमान की प्राथमिकताओं से यह प्रदेश गायब हो गया है, तभी तो दिग्विजय सिंह के बाद यहां असमंजस और संशय की स्थिति बनी है। यहां से करीब आधा दर्जन क्षत्रप अपनी ढपली अपना राग बजाते हुए नजर आ रहे हैं। किसी को पता नहीं कि किसके नेतृत्व में चुनाव लड़ा जाएगा। कार्यकर्ता दिशाहीन हैं और नेता अपनी-अपनी गोटियां फिट करने में मशगूल हैं।
-भोपाल से अरविंद नारद