मुस्लिम महिलाओं को पूराÓ हक
31-Aug-2017 08:17 AM 1234961
तीन तलाक पर सुप्रीम कोर्ट ने अपना ऐतिहासिक फैसला सुना दिया है। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत में मुस्लिम महिलाओं ने इतने लंबे समय बाद तीन तलाक के मसले पर अपने हक की लड़ाई जीत ली है। अब मुस्लिम महिलाओं को 1400 साल पुरानी कुप्रथा से निजात मिलेगी। आपको जानकर ताज्जुब होगा कि भारत से पहले दुनिया के 22 ऐसे देश हैं जहां तीन तलाक पूरी तरह बैन है। अच्छी बात यह है कि इस सूची में पाकिस्तान, बांग्लादेश, सीरिया सहित कई मुस्लिम देश भी हैं। प्रेरणा लेने वाली बात यह है कि कई देशों में तो मुस्लिम जजों की खंडपीठ ने महिलाओं का दर्द समझा और उनकी याचिका को स्वीकारते हुए तीन तलाक को बैन कर दिया। अब भारत के सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए तीन तलाक पर अगले छह महीने तक के लिए रोक लगा दी है। संसद जब तक इस पर कानून नहीं लाती तब तक ट्रिपल तलाक पर रोक रहेगी। कोर्ट ने केंद्र सरकार को संसद में इसे लेकर कानून बनाने के लिए कहा है। इससे पूर्व 11 से 18 मई तक रोजाना सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रखते हुए 22 अगस्त का दिन मुकर्रर किया था। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने जो सवाल उठाए वे तीन तलाक की क्रूरता को दर्शाते हैं। कोर्ट ने कहा कि मुस्लिम समुदाय में शादी तोडऩे के लिए यह सबसे खराब तरीका है। ये गैर-जरूरी है। कोर्ट ने सवाल किया कि क्या जो धर्म के मुताबिक ही घिनौना है वह कानून के तहत वैध ठहराया जा सकता है? सुनवाई के दौरान यह भी कहा गया कि कैसे कोई पापी प्रथा आस्था का विषय हो सकती है, जो ईश्वर की नजर में पाप, वो शरीयत में कैसे? पाक कुरान में पहले से प्रक्रिया फिर तीन तलाक क्यों? तीन तलाक अगर कुरान में नहीं है तो कहां से आया? दूसरे देशों ने कानून बनाकर इसे खत्म क्यों किया? समुदाय इस पर क्यों कुछ नहीं कर रहा? क्या कोई प्रथा संवैधानिक अधिकारों से बढ़ कर हो सकती है? केंद्र सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार क्यों कर रहा है? निश्चित रूप से तीन तलाक की त्रासदी से सुप्रीम कोर्ट भी आहत है। आहत वाली बात भी है। आज के दौर में तीन तलाक ऐसा मजाक बन गया है कि कोई फोन पर, कोई वाट्सअप पर तो कोई मेल पर तलाक, तलाक, तलाक बोल देता है और एक महिला की जिंदगी नारकीय हो जाती है। ज्ञातव्य है कि मार्च, 2016 में उतराखंड की शायरा बानो नामक महिला ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करके तीन तलाक, हलाला निकाह और बहू-विवाह की व्यवस्था को असंवैधानिक घोषित किए जाने की मांग की थी। बानो ने मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) एप्लीकेशन कानून 1937 की धारा 2 की संवैधानिकता को चुनौती दी है। कोर्ट में दाखिल याचिका में शायरा ने कहा है कि मुस्लिम महिलाओं के हाथ बंधे होते हैं और उन पर तलाक की तलवार लटकती रहती है। वहीं पति के पास निर्विवाद रूप से अधिकार होते हैं। यह भेदभाव और असमानता एकतरफा तीन बार तलाक के तौर पर सामने आती है। तीन तलाक के मुद्दे को लेकर काफी सालों से बहस होती आ रही है। केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने मुस्लिम महिलाओं को इस त्रासदी से मुक्ति दिलाने का वीणा उठाया और सुप्रीम कोर्ट से इस पर बैन लगाने की मांगी की। उल्लेखनीय है कि तीन तलाक खत्म करने का ऐतिहासिक घोषणा करने वाला सबसे पहला देश मिस्र है। जिसने 1929 में कानून-25 के जरिए घोषणा की गई थी कि तलाक को तीन बार कहने पर भी उसे एक ही माना जाएगा और इसे वापस लिया जा सकता है। मिस्र ने 1929 में इस विचार को कानूनी मान्यता दी थी, लेकिन इस कानून में एक बात जो गौर करने वाली है वो ये हैं कि लगातार तीन तूहरा (जब बीवी का मासिक चक्र न चल रहा हो) के दौरान तलाक कहने से तलाक अंतिम माना जाएगा। बहुत से मुस्लिम बहुल देशों में सीधे या अप्रत्यक्ष तौर पर तीन तलाक की प्रथा को खत्म किया जा चुका है। इन देशों में पाकिस्तान, बांग्लादेश, ईरान, तुर्की, ट्यूनीशिया, अल्जीरिया और मलेशिया जैसे देश शामिल हैं। इससे एक चीज साफ हो जाती है कि ये प्रथा अब सिर्फ भारत और दुनियाभर के सिर्फ सुन्नी मुसलमानों में बची हुई है। दरअसल, अपनी सहूलियत के लिए पुरुषों ने इस प्रथा की शुरुआत की है। यह प्रथा महिलाओं के मान-सम्मान के खिलाफ है। यह दुखद है कि 21वीं सदी के हिंदुस्तान में इस तरह की महिला विरोधी प्रथा कायम है। इससे मुस्लिम महिलाएं अपने आप को असुरक्षित महसूस करती हैं, इसलिए इसे खत्म करना जरूरी है। समाज के सामूहिक विकास के लिए महिला समानता होना अनिवार्य है। कोर्ट के निर्णय के बाद आधी मुस्लिम आबादी को अब केंद्र सरकार तीन तलाक से मुक्ति का वह तोहफा दे सकती है जिसकी उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में घोषणा की थी। -ज्योत्सना अनूप यादव
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