मानदेय और किराए की आड़ में करोड़ों का घपला
16-Sep-2017 10:10 AM 1234914
मप्र में स्वास्थ्य विभाग के बाद महिला एवं बाल विकास विभाग अपने घपले-घोटालों के लिए कुख्यात है। पिछले साल हुए पोषण आहार घोटाले को अभी लोग भूले भी नहीं है की आंगनबाड़ी सहायिकाओं के मानदेय और आंगवाडिय़ों के किराए में बड़े घोटाले का पर्दाफाश हुआ है। फिलहाल इस घोटाले की जद में भोपाल है लेकिन संभावना जताई जा रही है कि पूरे प्रदेश में यह घोटाला हुआ होगा। आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं के मानदेय घोटाले में अकेले भोपाल जिले में एक साल में करीब 10 करोड़ रुपए की हेरफेर मुमकिन है। जानकारी के अनुसार भोपाल जिले की विभिन्न परियोजनाओं में आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं तथा सहायिकाओं को दिए जाने वाले मानदेय के अनाधिकृत एवं अनियमित आहरण का यह प्रकरण वित्तीय वर्ष- 2015-16 एवं 2016-17 का बताया जाता है। शिकायत मिलने के बाद महिला एवं बाल विकास मंत्री अर्चना चिटनिस ने इस मामले की तीन बार उच्च स्तरीय जांच कराई। किन्तु जांच में अनियमितता नहीं होना प्रतिवेदित किया गया। किन्तु इस प्रतिवेदन से संतुष्ट नहीं होकर चिटनिस ने पुन: संयुक्त संचालक भोपाल से जांच कराने के निर्देश जारी किए। अपर संचालक राजपाल कौर और वित्त सलाहकार राजकुमार त्रिपाठी की अगुवाई में एक जांच समिति का गठन कर पूरे प्रकरण की पड़ताल के निर्देश दिये थे। जांच समिति ने पाया कि, वर्ष 2014 से यह फर्जीबाड़ा लगातार चल रहा था, नियमानुसार, मानदेय मद में आयुक्त, आईसीडीएस के निर्देशानुसार भुगतान जिला कार्यालयों द्वारा तो किया जा रहा था, लेकिन समानांतर रूप से हासिल मद में परियोजना कार्यालयों द्वारा आहरण की कार्यवाही करते हुए राशि फर्जी खातों में जमा कराई जा रही थी। यह गोलमाल अगस्त 2016 तक जारी रहने के प्रारंभिक प्रमाण मिले हैं। सहायिकाओं के मानदेय और आंगबाडिय़ों के किराए में हुए घोटाले की परते खुलने के बाद 13 अधिकारी और कर्मचारियों को निलंबित कर दिया गया है। दरअसल, परियोजना स्तर से आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं व सहायिकाओं का मानदेय दिए जाने के अधिकार छीन लिए गए थे। इसके बावजूद भोपाल की आठ परियोजनाओं में ढाई साल से प्रतिमाह मानदेय निकाला जाता रहा है। इस कार्य में सीडीपीओ की भूमिका अहम रहती थी, क्योंकि उनके बिना हस्ताक्षर के राशि का आवंटित राशि का उपयोग होना संभव नहीं है। 2014 से 2016 के बीच बैरसिया 1 व 2 में 80 लाख, गोविंदपुरा 29 लाख रुपए, बरखेड़ी 40 लाख, चांदबड़ 64 लाख, मोतिया पार्क 14 लाख, बाणगंगा 2 लाख, फंदा परियोजना में 40 लाख रुपए निकाले गए है। जिसके चलते महिला एवं बाल विकास मंत्री अर्चना चिटनिस ने प्रारंभिक जांच के आधार पर 13 लोगों को (8 सीडीपीओ व 5 बाबुओं) को निलंबित कर दिया गया है। इसमें परियोजना अधिकारी बबीता मेहरा, अर्चना भटनागर, मीना मिंज, कृष्णा बैरागी, सुमेघा त्रिपाठी, कीर्ति अग्रवाल, श्याम कुमार व राहुल संधीर के साथ-साथ पांच बाबुओं दिलीप जेठानी, राजकुमार लोकवानी, बीके चौधरी, बीना भदौरिया, व बंधारी हंै। निलंबित राहुल संधीर तब एकीकृत बाल विकास (आईसीडीएस) में परियोजना अधिकारी थे। चार महीने पहले ही वे महिला सशक्तिकरण अधिकारी बने। वे जिन रामगोपाल यादव की जगह आए, वे भी सस्पेंड किए गए थे। जिले में 1850 आंगनबाड़ी कार्यकर्ता हैं। पोषण आहार घोटाले के बाद मानदेय घोटाले के सामने आने से महिला बाल विकास विभाग में हड़कंप है। सूत्रों का कहना है कि अगर प्रदेश के बाकी जिलों में इसकी जांच हुई तो घोटाले का आकार काफी हो सकता है। संचालनालय ने सभी जिला महिला एवं बाल विकास अफसरों को बजट का बारीकी से परीक्षण करने के निर्देश दिए हैं। रुटीन और ग्लोबल बजट से कहां-कहां राशि खर्च की गई। इसे भी बारीकी से देखने को कहा है। ऐसे करते थे गड़बड़ी आरोपी बहुत ही शातिराना तरीके से रुटीन बजट से कार्यकर्ता और सहायिकाओं को मानदेय का भुगतान करते थे। जबकि आंगनबाड़ी भवनों के किराए के नाम पर ग्लोबल बजट से प्रदेशभर में फैले अपने परिचितों के बैंक खातों में राशि ट्रांसफर कर देते थे। इन परिचितों में आरोपियों के रिश्तेदार और परिजन भी शामिल हैं। दोनों बजट की राशि का समानांतर मिलान न होने के कारण मामला पकड़ में नहीं आ रहा था। उल्लेखनीय है कि राजपत्रित अफसरों को जरूरत के हिसाब से तय हेड में ग्लोबल बजट खर्च करने की छूट है। गड़बड़ी तीसरी जांच में पकड़ में आई। मामले की भनक लगने पर विभाग के संयुक्त संचालक, वित्त अधिकारी, वित्त विभाग और महालेखाकार कार्यालय के ऑडिटर और कलेक्टर से जांच कराई गई। सभी ने इस जानकारी को गलत बताया और आरोपी अफसर भी आत्मविश्वास से भरे थे, लेकिन जब संचालनालय के वरिष्ठ अफसरों ने कोषालय से पुराना रिकॉर्ड निकलवाया, तो एक-एक कर गड़बड़ी की परतें खुलने लगीं। - विकास दुबे
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