16-Sep-2017 09:39 AM
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एक तरफ मप्र सरकार का दावा है कि 2018 के अंत तक प्रदेश में 20,000 मेगावाट बिजली उत्पादित होने लगेगा, वहीं दूसरी तरफ कोयले की कमी के कारण बिजली उत्पादन प्रभावित हो रहा है। आलम यह है की कई थर्मल पावर प्लांट बंद हैं। साथ ही कम बारिश हाने के कारण डेम भी खाली पड़े है जिससे ज्यादातर हाइडल पावर प्लांट भी बंद हैं। ऐसे में आगामी दिनों में प्रदेश पर ब्लैक आउट का खतरा मंडरा रहा है। हालांकि अभी महंगी बिजली खरीद कर सरकार स्थिति को संभाले हुए है।
कोयला उत्पादन करने में मध्यप्रदेश का देश में पांचवा स्थान है। देश के कोयला उत्पादन का 28 प्रतिशत प्रदेश की धरती से हर साल राष्ट्र को उपलब्ध कराया जाता है। यह मात्रा लगभग 75 मिलियन टन है, लेकिन प्रदेश के बिजली प्लांटों के लिए 17 मिलियन टन कोयला भी प्रदेश को केंद्र सरकार नहीं दे रही है। प्रदेश में बिजली उत्पादन का मुख्य स्रोत कोयला ही है। बिजली प्लांटों के लिए कोयला केंद्र सरकार उपलब्ध कराती है। कोल इंडिया लिमिटेड यह मात्रा तय करती है। प्रदेश के बिजली प्लांटों के लिए केंद्र सरकार ने लगभग 17 मिलियन टन कोयला आपूर्ति का कोटा तय किया है, लेकिन पिछले चार सालों से प्रदेश को लगभग 13-14 मिलियन टन कोयला ही मिल रहा है, लेकिन वर्तमान में प्रदेश के थर्मल पावर प्लांटों को जरूरत का 50 फीसदी ही कोयला मिलने से संकट दिन-ब-दिन गहरा रहा है। संजय गांधी पावर प्लांट की हालात सबसे ज्यादा नाजुक है। यहां कोयले का स्टॉक खत्म हो चुका है। रोजाना सप्लाई हो रहे कोयले से ही इकाईयां चल रही हैं। यहां जिस दिन कोयले की सप्लाई नहीं होगी उसी दिन प्लांट में बिजली बनना बंद होना तय है। बिजली की जरूरत के वक्त कोयले पर ही आस थी लेकिन इसकी कमी ने सरकार का पूरा बिजली मैनेजमेंट ही फेल कर दिया।
मप्र पावर जेनरेटिंग कंपनी को 3200 मेगावाट बिजली पैदा करने के लिए तकरीबन 56 हजार मीट्रिक टन कोयले की जरूरत है। मौजूदा वक्त में 2200 मेगावाट बिजली पैदा हो रही है। इसके लिए करीब 46 हजार मीट्रिक टन कोयला मिलना चाहिए, लेकिन मिल पा रहा है सिर्फ 25 हजार मीट्रिक टन। संजय गांधी पावर प्लांट से 900 मेगावाट बिजली पैदा होती है। जिसमें करीब 15 हजार टन हर दिन कोयला लगता है, लेकिन यहां 48 घंटे से ज्यादा का स्टॉक नहीं जमा हो पा रहा। अमरकंटक पावर प्लांट- 2900 टन रोजाना कोयले की खपत। रोजाना इतना ही कोयला पहुंच पा रहा है। श्री सिंगाजी पावर प्लांट-660 मेगावाट की एक यूनिट ही चल रही है। इसमें 1.5 लाख टन कोयले की खपत। 80 हजार टन कोयला ही मिल पा रहा है। सारणी पावर प्लांट- 9 हजार टन हर दिन कोयले की खपत। यहां करीब 7-8 दिन का कोयला बचा है।
नवंबर से रबी सीजन में बिजली की डिमांड बढ़ जाएगी। दिवाली के बाद ही किसान सिंचाई के लिए बिजली लेंगे। प्रदेश में डिमांड 12 हजार मेगावाट के पार पहुंचने का अनुमान है। ऐसे वक्त में बिजली उपलब्ध कराना चुनौती से कम नहीं होगा। मप्र पावर जेनरेटिंग कंपनी के एमडी एपी भैरवे कहते हैं कि कोयले की कमी पावर प्लांट में बनी हुई है। डिमांड भी बढ़ी है। ज्यादातर यूनिट ओवरहॉलिंग में होती है। हमारे पास थोड़ा ही स्टॉक कोयले का बचा है। इन हालातों को देखते हुए ऊर्जा मंत्री पारस जैन ने कोयला आपूर्ति को लेकर केंद्र सरकार से अतिरिक्त डिमांड की है।
दाम बढ़ाने की तैयारी
इधर, अप्रैल 2018 में बिजली कंपनी दाम बढ़ाकर जनता को बड़ा झटका देने के लिए जमीन तैयार करने में जुट गई है। मौजूदा नुकसान के आंकलन में भले ही वक्त लगे, लेकिन तीन साल पुराने घाटे की भरपाई कंपनी बिजली के दाम बढ़ाकर करना चाहती है। डिमांड भी दो-चार सौ करोड़ नहीं बल्कि पूरे 14 हजार करोड़ की। कंपनी एक माह में यह प्रस्ताव आयोग के पास भेजेगी। आयोग की मंजूरी मिली तो बिजली कंपनी दाम बढ़ाकर इसे जनता से वसूलेगी। 2016 में मप्र पॉवर मैनेजमेंट कंपनी ने ट्रू-अप पिटीशन के जरिए करीब 9 हजार करोड़ रुपए की मांग मप्र विद्युत नियामक आयोग से की थी। कंपनी ने दावा किया कि उसे साल 2013-14 में बिजली बेचने से नुकसान हुआ। जिसकी भरपाई होनी चाहिए। कंपनी की याचिका पर दावे-आपत्ति भी लगी। आयोग की ओर से उस पर कोई फैसला नहीं जारी हुआ। 9 हजार करोड़ रुपये के नुकसान पर फैसला आने से पहले ही कंपनी ने 2015 के नुकसान के आंकलन का हिसाब-किताब तैयार कर लिया है। ये भी तकरीबन 5 हजार करोड़ रुपए है।
- सिद्धार्थ पांडे