16-Sep-2017 09:53 AM
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मानसून हुआ बेईमान...नदी-नाले, बांध-तालाब-नहरों की सूखने लगी जान...पहले फसल सूखी, अब खेतों में पडऩे लगी दरार...नल-जल योजनाओं का काम हुआ तमाम... गांव होने लगे वीरान... किसान के हलक में आई जान... सरकार होने लगी परेशान... कैसे होगा इस बड़ी समस्या का समाधान? आज यह सवाल मप्र की साढ़े सात करोड़ आबादी को सता रहा है। वह इसलिए कि आजादी के 70 साल बाद भी हम मानसून के भरोसे हैं।
मप्र में भाजपा सरकार पिछले 13 सालों से विकास के बड़े-बड़े दावे कर रही है। सरकार का दावा है कि उसने सिंचाई, पेयजल और कृषि के क्षेत्र में प्रदेश को आत्मनिर्भर बना दिया है। लेकिन करीब 7 साल बाद मध्यप्रदेश से मानसून क्या रूठा की सरकार के दावों की पोल खुल गई। इस बार अल्प वर्षा के कारण प्रदेश के 33 जिलों में सूखे की आहट सुनाई दे रही है। इससे किसानों के साथ-साथ सरकार के माथे पर चिंता की लकीरें खिंच चुकी हैं। आने वाला समय शासन-प्रशासन और आमजन के लिए परेशानी भरा है। अल्पवर्षा के कारण प्रदेश में सूख के हालात निर्मित होता देख मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने 12 सितम्बर को किसान कल्याण एवं कृषि विकास विभाग, जलसंसाधन विभाग, पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग, सहकारिता विभाग, लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग, पशुपालन विभाग और नगरीय प्रशासन एवं विकास विभाग के अधिकारियों के साथ आकस्मिक कार्ययोजना पर विचार विमर्श किया। मुख्यमंत्री ने अधिकारियों को निर्देशित किया कि वे प्रदेश में सूखे की स्थिति का जायजा लेकर कार्ययोजना बनाएं। मुख्यमंत्री का निर्देश मिलते ही विभाग अपने कार्य में जुट गए हैं, लेकिन जानकारों का कहना है कि मप्र में अल्पवर्षा के कारण सूखे का जो संकट गहरा रहा है उससे निजात मिलना मुश्किल है। क्योंकि अभी सरकारी विभाग सूखे की स्थिति का सर्वे करेंगे, फिर रिपोर्ट बनेंगी, फिर कार्ययोजना सरकार के पास जाएगी फिर उसका क्रियान्वयन होगा। तब तक हालात और बिगड़ चुके होंगे।
मौसम विभाग के अनुसार, जबलपुर, बालाघाट, छिंदवाड़ा, सिवनी, मंडला, डिंडौरी, नरसिंहपुर, सागर, दमोह, टीकमगढ़, छतरपुर, सीधी, शहडोल, अनूपपुर, उमरिया, देवास, शाजापुर, मुरैना, श्योपुर, भिंड, शिवपुरी, गुना, अशोकनगर, दतिया, भोपाल, सीहोर, रायसेन, विदिशा, हरदा, बैतूल और ग्वालियर आदि जिलों में अल्प वर्षा के कारण सूखे की स्थिति निर्मित हुई है।
सिंचाई के लिए नहीं मिलेगा पानी
प्रदेश में सूखे के हालात बनता देख जल संसाधन विभाग ने तालाबों और नहरों से सिंचाई के लिए पानी लेने पर रोक लगाने को कहा है। विभाग ने सभी जिलों के कलेक्टर और संभाग आयुक्तों को पत्र जारी करते हुए कहा है कि जल उपभोक्ता संस्थाओं की बैठकें करके पानी को लेकर प्लान बनाएं। जल संसाधन विभाग का निर्देश है कि जल स्त्रोतों में पहले पीने का पानी आरक्षित करें, इसके बाद ही सिंचाई के लिए पानी दें। यह भी कहा गया है कि प्रदेश के सभी स्टाप डेम और बेराज बंद कर दिए जाएं ताकि पानी संग्रहित हो और इस पानी से किसानों को सिंचाई की सुविधा मिल सके। अवर्षा की स्थिति बनने से सबसे ज्यादा संकट ग्वालियर और चंबल संभागों में हैं। राज्य सरकार ने ग्वालियर में पेयजल की व्यवस्था करने 20 करोड़ रुपये का प्रावधान किया है। इस राशि से पानी परिवहन किया जाएगा। गुना, शिवपुरी, श्योपुर, भिंड और मुरैना सहित बुंदेलखंड इलाके में सूखे की आहट है। अशोकनगर शहर की प्यास बुझाने वाला अमाही जलाशय में मात्र 10 फीट पानी है। इस जलाशय से लोगों को 5 माह का पानी मिल पाएगा। लिहाजा जल संसाधन विभाग ने अमाही जलाशय से खेती को दिए जाने वाले पानी पर प्रतिबंध लगा दिया है।
कलेक्टरों ने लगाई स्रोतों पर रोक
पेयजल संकट की संभावना के चलते ग्वालियर-चंबल संभाग के शिवपुरी, श्योपुर, मुरैना एवं भिंड जिला प्रशासन ने सार्वजनिक जल स्रोतों से पानी के दोहन पर रोक लगा दी है। इसी तरह अन्य जिलों में भी जल स्रोतों की स्थिति पर मंथन चल रहा है। कम बारिश के आंकड़ों को देखते हुए सरकार भी ये मान चुकी है कि आने वाले दिनों में हालात चिंताजनक हो सकते हैं। कृषि मंत्री गौरी शंकर बिसेन का कहना है कि किसानों के हित में शॉर्ट और लॉन्ग टर्म योजनाओं पर काम किया जा रहा है।
प्रदेश में सरकार द्वारा दावा किया गया है कि जल संसाधन विभाग द्वारा विगत पांच वर्ष में सिंचाई क्षमता 23 लाख 23 हजार से बढ़ाकर 30 लाख हेक्टेयर की गई है। पिछले वर्ष स्वीकृत 159 सिंचाई परियोजनाओं से करीब सवा दो लाख हेक्टेयर क्षेत्र में अतिरिक्त सिंचाई क्षमता निर्मित होगी। जिन क्षेत्रों में पारम्परिक माध्यमों से सिंचाई सुविधा उपलब्ध कराना संभव नहीं था वहां भी पर ड्राप मोर क्राप कार्यक्रम से 8 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई सुविधा उपलब्ध कराने के उद्देश्य से 30 सूक्ष्म सिंचाई परियोजना की स्वीकृति दी जा चुकी है। इस वर्ष सिंध द्वितीय चरण, भानपुरा नहर एवं बरियारपुर, 8 मध्यम एवं 105 लघु सिंचाई परियोजनाओं को पूर्ण कर सिंचाई क्षमता में पौने दो लाख हेक्टेयर क्षेत्र की बढ़ोत्तरी का लक्ष्य है लेकिन सूखे की आहट के साथ सिंचाई की समस्या भी खड़ी हो गई है।
62 फीसदी हिस्सा चपेट में
प्रदेश में मानसून जमकर नहीं बरसने से मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं। पूरे प्रदेश का 62 प्रतिशत हिस्सा कम बारिश की चपेट में है। प्रदेश में मानसूनी बादलों ने औसत से भी 25 प्रतिशत कम पानी बरसाया है। अब तक 830 मिमी बारिश होनी चाहिए थी, लेकिन 621 मिमी पानी ही बरसा है। 32 जिले ऐसे हैं, जहां बारिश 80 प्रतिशत से कम हुई है। 19 जिलों में भी हालात बहुत अच्छे नहीं हैं, क्योंकि यहां भी बारिश औसत से कम ही है। पूरे अगस्त में औसत से 52-55 प्रतिशत कम पानी बरसा है। 30 सितंबर तक बारिश का मौसम माना जाता है। ऐसे में भरपाई मुश्किल नजर आ रही है। अधिकांश जिलों को औसत से 65-70 प्रतिशत बारिश पर ही संतोष करना पड़ेगा। इसका प्रभाव यह होगा कि आगामी सीजन की फसल के लिए सिंचाई और पेयजल का संकट आ सकता है। मौसम वैज्ञानिकों की मानें तो अगस्त में मानसून का पैटर्न गड़बड़ाने से यह स्थिति बनी है। बारिश का आंकड़ा इंच में जरूर कहीं-कहीं पूर्ति बता रहा है, लेकिन बारिश इस तरह नहीं हुई कि स्थानीय जल स्रोतों में पानी लबालब हो सके।
आंकड़े कर रहे अलर्ट
प्रदेश की जीवनधारा नर्मदा नदी का जल स्तर भी सामान्य है। 51 जिलों में 32 ऐसे हैं, जिनमें औसत से 25 से 44 फीसदी कम पानी गिरा है। 19 जिले सामान्य की श्रेणी में, शेष 20 फीसदी या इससे कम की श्रेणी में है। कम बारिश के कारण बने सूखे के हालात बन रहे हैं। प्रमुख तालाब और डेम खाली हैं। कई जिलों में पानी की किल्लत बरकरार है। कम बारिश से सोयाबीन और धान की फसलें प्रभावित हुईं हैं। साथ ही पीने के पानी की किल्लत बढऩे के आसार बढ़ गए हैं। सरकार ने सूखा प्रभावित इलाकों में शार्ट टर्म प्लान बनाने के निर्देश दिए हैं। इसके अलावा जल की बर्बादी रोकने के निर्देश भी दिए हैं।
दरअसल सरकार मामले की गंभीरता को समझ तो रही है, लेकिन हालात के आगे बेबस है। बारिश नहीं होने की वजह से न केवल पानी का संकट गहराता जा रहा है बल्कि नदियों में पानी नहीं होने के कारण बिजली उत्पादन भी बुरी तरह से प्रभावित हुआ है। एक तरफ जहां खेतों में फसलों का हाल देखकर किसान बेहाल है तो वहीं दूसरी तरफ सरकार सूखे से निपटने की कार्ययोजना बनाने पर जुट गई है। इन सबके बीच आपदा पीडि़त किसानों की मौजूदा हालत कई सवाल भी खड़े कर रही है। सवाल ये कि पहले की आपदाओं से निपटने में नाकाम सरकार कैसे पहुंचाएंगे किसानों तक राहत।
कैसे होगी रबी की सिंचाई
प्रदेश से मानसून विदा होने की स्थिति में आ गया है, लेकिन बांधों का मौजूदा जलस्तर राज्य में भयाभय सूखे और पेयजल संकट के संकेत दे रहा है। प्रदेश के 19 प्रमुखों बांधों में से 4 बांधों को छोड़ दिया जाए तो कोई भी बांध 40 फीसदी से ज्यादा नहीं भरा है। यही स्थिति मध्यम एवं छोटे बांधों की है। ऐसे में 40 लाख हेक्टेयर में सिंचाई का दावा करने वाला जल संसाधन विभाग इस बार रबी फसलों के लिए एक बार से ज्यादा पानी देने की स्थिति में नहीं है। खरीफ फसलें सूखनें लगी हैं और धान के लिए पानी की मांग आने लगी है। सरकार हर बार की तरह भगवान पर ठीकरा फोडऩे की तैयारी में है। पेयजल संकट की संभावना के चलते कलेक्टरों ने जल स्रोतों पर रोक लगा दी है।
जल संसाधन विभाग के अनुसार पिछले साल सभी बांध औसतन 98 फीसदी भरे थे। लेकिन इस बार औसतन 40 फीसदी भरे हैं। पिछले साल 19 बड़े, 85 मध्यम एवं 4800 छोटे बांधों से 28.90 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई की गई थी, लेकिन इस बार विभाग 7 लाख हेक्टेयर क्षेत्र से सिर्फ एक बार से ज्यादा पानी देने की स्थिति में नहीं है। जल संसाधन विभाग के प्रमुख अभियंता राजीव कुमार सुकलीकर कहते हैं कि बांधों की स्थिति चिंताजनक है। विभाग चुनिंदा बांधों से ही सिंचाई के लिए सिर्फ एक पानी देने की स्थिति में है। कई बांधों से पीने का पानी दिया जाता है। उसको भी ध्यान में रखना है।
कांप रहा किसानों का कजेला
चंद दिन की रिमझिम के बाद मौसम के बदले तेवर ने किसानों को बेचैन कर दिया है। सूखती फसल देखकर किसान मायूस हो रहे हैं। यह सोचकर उनका कलेजा कांपा जा रहा है कि उनकी फसल का क्या होगा। किसान ही नहीं मौसम के रुख को देखकर अधिकारियों के माथे पर भी बल पडऩे लगा है। मौसम की तल्खी के चलते किसानों की फसल मुरझाने लगी है। धान हो या फिर उड़द, मूंग व सोयाबीन की फसल। एक पखवाड़े पहले तक लहलहा रहे खेतों में दरारें पडऩे लगी हैं।
दांव पर एक तिहाई फसल
बारिश नहीं होने के चलते करीब एक तिहाई फसल दांव पर लग गई है। कृषि अधिकारी खुद इस बात को स्वीकार कर रहे हैं कि हालात बहुत खराब है। प्रदेश में सरकार भले ही सिंचाई के संधासनों और विस्तार के लाख दावे करे लेकिन, बारिश ही इन फसलों की सिंचाई का एक मात्र साधन है। इन फसलों में ज्यादातर सोयाबीन, मूंग, उड़द, तिल व अरहर जैसी फसल शामिल है। मौसम की बेरुखी का असर धान पर भी है।
फिलहाल सूखे के संकेत नजर आ रहे हैं। लेकिन इससे होने वाले नुकसान को लेकर प्रशासनिक और सामाजिक स्तर पर किसी भी तरह की तैयारियां शुरू नहीं हुई हैं। कांग्रेस और किसान संगठन करीब आधा दर्जन ज्ञापन प्रशासन को सौंपकर प्रदेश को सूखाग्रस्त घोषित करने की मांग कर चुके हैं। जानकारों का कहना है कि सूखे के दूरगामी परिणाम काफी भयावह रहेंगे। इससे खेती-किसानी, अर्थव्यवस्था, लोगों की दिनचर्या और कानून व्यवस्था सभी पर गंभीर खतरा आ सकता है।
ऐसे बिगड़ेंगे हालात
अवर्षा की वजह से भूजल स्तर में तेजी से गिरावट आएगी, इससे हालात बिगड़ेंगे। पशुधन को हरा चारा न मिलने से दूध के भाव बढ़ेंगे। इसका सीधा असर उपभोक्ताओं की जेब पर पड़ेगा। देशी मवेशियों को चारे-पानी की कमी का खतरा झेलना पड़ेगा। फल-सब्जियों की पैदावार भी घटेगी, रबी सीजन में इनकी रोपाई न होने से आलू, प्याज एवं मौसमी सब्जियों का उत्पादन घटेगा। मांग और आपूर्ति में असंतुलन से महंगाई बढऩा तय है। इसी तरह चना, तुअर, मूंग समेत सभी दलहन फसलें बिगडऩे से दालों के भाव में इजाफा होगा। कृषि क्षेत्र में घाटा एवं फसलें बिगडऩें से दिहाड़ी मजदूरों के रोजगार पर भी संकट आएगा, इससे श्रमिक वर्ग पलायन को मजबूर होगा। सूखे के कारण अपराधों में भी तेजी से बढ़ोतरी होगी। दतिया के उप संचालक कृषि एसके शर्मा ने किसानों को सलाह दी है कि वह खरीफ फसलों की कटाई के बाद आगामी रबी सीजन में कम पानी चाहने वाली फसलों मटर, चना, मसूर, सरसों, अलसी का चयन करें।
किसान खुद उखाड़ रहे हैं सूखी फसल
मानसून इस साल शुरू से ही बेरुखा भरा रहा। आषाढ़, सावन भादौ सूखा गया। भादौ में ना के बराबर बारिश हुई। चारों दिशाओं में फसल खराब होने की कगार पर है। नुकसान का आंकलन कर किसान खुद अपने हाथों फसल पर ट्रैक्टर चला रहे हैं। 15 सितंबर तक बारिश नहीं हुई तो प्रभावित क्षेत्रों में खराब फसलों का सर्वे शुरू होगा। अभी सोयाबीन, तुअर, धान कुपोषित, सब्जियों में अफलन और इल्ली की शिकायत है। फसल और सब्जियों के खराब होनेे से आवक पर असर पड़ेगा। इससे महंगाई बढऩे के आसार बढ़ गए हैं। मौसम के कारण सब्जियां खेत में ही पौधों सहित सूखने लगी हंै। पानी की कमी से जमीन सूखी है। जलस्तर भी गिरा है। हालांकि कुछ स्थानों पर धान की सामान्य स्थित देखने को मिली है, लेकिन इसका कारण यह है कि किसानों के पास पंप से धान को पानी देने की व्यवस्था थी। होशंगाबाद जिले में भू-जल स्तर 21.0525 मीटर तक पहुंच गया है। बारिश की कमी के कारण भू-जल स्तर नीचे गिरेगा। शहर में भू-जल स्तर 15.90 मीटर पर है। इससे इस बात का अनुमान लगाया जा सकता है। खेतों में जमीन को डेढ़ से दो फीट तक जमीन सूखी मिल रही है। पथरौटा के किसान साहब लाल मेहतो ने कर्ज लेकर बोई 18 एकड़ सोयाबीन की खड़ी फसल पर ट्रैक्टर चला दिया। मेहतो पुष्प-फल-सब्जी संभागीय प्रदर्शनी वर्ष 1995 में विजेता रह चुके हैं। अल्पवर्षा के कारण स्थिति बिगडऩे से उन्होंने यह कदम उठाया।
घटा फसल का रकबा, उत्पादन भी होगा कम
कमजोर मानसून की वजह से प्रदेश की प्रमुख फसलों में शामिल सोयाबीन, मूंग, उड़द और धान की फसलें प्रभावित हुई हैं। इस मामले मेें ग्वालियर, चंबल और सागर संभाग में सर्वाधिक खराब हालात हैं। सामान्य से कम वर्षा और मौसम में नमी नहीं होने से फसलें जिस तरह प्रभावित हो रही हैं, उससे उत्पादन 20 से 25 प्रतिशत तक कम होने का अनुमान लगाया जा रहा है। माना जा रहा है कि खरीफ की फसल तो फिर भी हो जाएगी, लेकिन रबी सीजन में मुसीबत खड़ी हो सकती है, क्योंकि न तो नदियों में पानी है और न ही जलाशय भरे हैं। सरकारी आंकड़ों की माने तो कमजोर मानसून की वजह से सोयाबीन का क्षेत्र 5 लाख हेक्टेयर, मूंगफली का 50 हजार और धान का रकबा ढाई लाख हेक्टेयर घट गया है। उड़द ही एक मात्र ऐसी फसल है, जिसका रकबा सवा छह लाख हेक्टेयर बढ़ा है। पूर्व कृषि संचालक और विशेषज्ञ डॉ. जीएस कौशल की माने तो बुंंदेलखंड में जो मूंग और उड़द बोई गई थी, उसमें बड़ा नुकसान हुआ है। सोयाबीन सहित अन्य फसलों में येलो मोजेक, इल्ली और माहू जैसी बीमारी लग गई है। निमाड़ क्षेत्र में अफलन (पौधे में फली न लगना) की शिकायत है। इसका असर उत्पादन पर पड़ेगा। भारतीय किसान संघ के क्षेत्रीय संगठन महामंत्री शिवकांत दीक्षित का कहना है कि कम वर्षा का असर किसान, बाजार और आम आदमी पर पड़ेगा। जब मांग की पूर्ति नहीं होगी तो तेल और दालें महंगी हो जाएंगी।
पानी को लेकर मचेगा हाहाकार
अर्थव्यवस्था से इतर सामान्य जनजीवन पर भी जलसंकट गहरा असर डालेगा। प्रदेश के शहर और गांवों में भू-जलस्तर तेजी से घट रहा है। किसानों के खेतों में लगे बोरवेल का गला भी सूख रहा है। सूखे की वजह से बूंद-बूंद पानी को लेकर तनाव और विवाद के हालात निर्मित हो सकते हैं। कई शहरों में वॉटर लिफ्टिंग की नौबत बन सकती है, इससे जनजीवन पर भी विपरीत असर पड़ेगा। लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग की ताजा रिपोर्ट बताती है कि ग्रामीण क्षेत्रों में 20 हजार हैंडपंप सूखे पड़े हैं। ये हालात बारिश के मौसम के हैं। आमतौर पर इस मौसम में भू-जल स्तर बढऩे से पेयजल स्रोत रिचार्ज होते हैं। बारिश का मौसम खत्म होने को है, लेकिन प्रदेश में पेयजल की स्थिति नहीं सुधरी। पंप खराब, लाइन क्षतिग्रस्त होने, पंचायत द्वारा संचालित न करने, ढांचा खराब हो जाने, ट्रांसफार्मर जलने, केबल चोरी होने और वोल्टेज की कमी से 2074 नलजल योजनाएं बंद पड़ी हैं। ऐसे में प्रदेश में पानी को लेकर हाहाकार मचने की पूरी संभावना है।
सूखा घोषित होने से पहले फसल, बांध का आंकलन
प्रदेश के 33 जिलों में इस साल बारिश औसत से भी कम हुई है। जिला प्रशासन जिले को सूखाग्रस्त मानकर प्रस्ताव शासन को मंजूरी के लिए भेज चुका है, लेकिन किसी भी जिले को सूखाग्रस्त मानने की प्रक्रिया काफी जटिल और लंबी है। इसमें कई क्षेत्रों में होने वाले असर का आंकलन किया जा रहा है। जब तक सभी क्षेत्र प्रभावित नहीं होते हैं, तब तक जिले को सूखाग्रस्त घोषित नहीं किया जा सकता है। प्रशासन मान कर चल रहा है कि कम बारिश से बांध, तालाब, कुआं, बोरवेल में पानी नहीं रहेगा। इन हालातों में फसलों को सबसे ज्यादा नुकसान उठाना पड़ रहा है और आने वाली फसलों के लिए भी सिंचाई का पानी नहीं मिलेगा। शासन भी सिर्फ जिला प्रशासन के पत्र पर कार्यवाही नहीं करता है। राजस्व और कृषि विभाग की रिपोर्ट मिलने पर ही शासन यह मानता है कि जिले में सूखा है।
इन बातों से तय होगा सूखा
सबसे पहले सालाना औसत बारिश के आंकड़े और इस साल अब तक हो चुकी बारिश का मिलान होगा। यदि आज ही के दिन तक की बारिश से बहुत ज्यादा कम बारिश हुई है तो इस डाटा को सबसे पहले देखा जाएगा। बांधों, तालाबों में कितना पानी का भराव है। रहवासी, कामर्शियल, सिंचाई के लिए पर्याप्त नहीं हुआ तो ही सूखे की श्रेणी तय होगी। बांध से बिजली बनाने कितने पानी की जरूरत होगी और कितना उपलब्ध होगा। सभी तरह की फसलों के उत्पादन में कितना असर पड़ रहा है। ये डाटा तैयार होगा। अगली फसल के लिए नहरों से सिंचाई के लिए कितना पानी बचेगा। ये डाटा बनेगा। पशुओं के लिए फसलों के चारे की व्यवस्था को भी देखा जाएगा। बारिश कम होने से भू-जल स्तर पर कितना प्रभाव हुआ, ये जानकारी भी जुटाई जाएगी। राजस्व विभाग अपने नियमों और कृषि विभाग अपने नियमों की रिपोर्ट बनाएगा। सभी क्षेत्रों में होने वाले प्रभाव की रिपोर्ट तैयार की जाती है। जिसे शासन स्तर पर भेजा जाएगा। शासन ही तय करेगा कि जिले को सूखा घोषित किया जाना चाहिए या नहीं।