18-Aug-2017 10:51 AM
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मप्र में राजस्व विभाग कभी भी सरकार की प्राथमिकता में नहीं रहा है। इस कारण प्रदेश में जमीनों का नक्शा गड़बड़़ाया हुआ है। जमीनों के दावों के विवाद से अदालतों में फाइलों का अंबार लगा हुआ है। सालों से सीमांकन अटके हुए हैं और किसान अदालतों में भटक रहे हैं, लेकिन अब चौदह साल बाद सरकार की तंद्रा टूटी है। यह तंद्रा अभी भी नहीं टूटती अगर किसान आंदोलन के दौरान मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के उपवास कार्यक्रम के दौरान प्रदेशभर से आए किसान उनको हकीकत से अवगत नहीं कराते। किसानों से हकीकत जानने के बाद शिव ने अपना तीसरा नेत्र खोला तो राज्य मंत्रालय से लेकर जिलों तक में हड़कम्प मच गया। आनन-फानन में अब पूरा प्रशासनिक महकमा जमीनों के नक्शे सुधारने, विवादों को निपटाने, सीमांकन करने आदि में जुट गया है। सरकार कलेक्टर से लेकर पटवारियों तक पर दबाव बना रही है कि सारे मामले तत्काल निपटाओं, लेकिन ऐसा हो पाएगा यह मुश्किल ही लगता है।
दरअसल मप्र में सरकार की मनोवृति रही है कि जब प्यास लगती है, तभी वह कुआं खोदती है। इस बार सरकार इसी तर्ज पर प्रदेश के राजस्व भू-अभिलेख को दुरुस्त करने में जुटी हुई है। इन दिनों मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और मुख्य सचिव बीपी सिंह का विशेष फोकस राजस्व विभाग पर है। ऐसे मेंं सवाल उठता है कि आखिर १४ साल बाद सरकार को राजस्व विभाग की सुध क्यों आई? बताया जाता है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, भाजपा संगठन को फीड बैक मिला है कि राजस्व विभाग के अधिकारियों की नाफरमानी के कारण किसानों की जमीनों का काम अटक गया है। बताया जाता है कि अगर समय रहते किसानों को खुश नहीं किया गया तो २०१८ में पार्टी पर संकट आ सकता है। फिर क्या था सरकार को अपनी जमीन खिसकती दिखी तो वह सजग हो गई। देर से ही सही लेकिन जिस सजगता से मुख्यमंत्री और मुख्य सचिव इस काम में जुटे हैं किसानों को उनकी जमीनों का विवाद हल होने की उम्मीद जगी है।
मशीनरी का सही उपयोग नहीं
प्रदेश में किसी भी सरकार ने राजस्व विभाग को प्राथमिकता में नहीं रखा। इस कारण प्रदेश में जमीनों का खेल मनमाने ढंग से चलता रहा। विभाग में जो भी अधिकारी आया उसने अपनी मनमर्जी की। इसी तरह जिलों में कलेक्टरों ने अपना खेल खेला। सरकार की निष्क्रियता के कारण मशीनरी का सही उपयोग नहीं हो सका। इस कारण किसानों से उनकी जमीनें भी हथिया ली गई। वरिष्ठ अधिकारियों की कारस्तानी को देखकर छोटे अफसर भी अपनी मनमानी करते रहे। आलम यह रहा कि धरातल/ग्रॉस रूट पर कभी काम ही नहीं हुआ। जब कभी भी जमीनों के हेर-फेर का मामला आया पटवारी, नायब तहसीलदार, तहसीलदार पर गाज गिरी। अगर मामला अधिक बिगड़ा तो एसडीएम पर जिम्मेदारी सौंपकर बलि का बकरा बना दिया गया। जबकि संभाग और जिलों में बैठे कमिश्नर और कलेक्टरों पर कोई आंच नहीं आई है। कमिश्नर और कलेक्टर फर्जी आंकड़े परोस कर सरकार को अंधेरे में रखे रहे।
लेकिन अब जब संघ, संगठन और सरकार स्तर पर रिपोर्ट आई है कि जमीनों का खेल सरकार पर भारी पड़ सकता है तो सरकार ने इन्हें दुरुस्त करने के लिए पूरा दम लगा दिया है। आज प्रदेश में हालात यह हैं कि राजस्व से संबंधित १.५० लाख मामले सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में चल रहे हैं वहीं २२ हजार कंटेम्ट लगे हुए हैं जिसमें सरकार को अदालत के कटघरे में खड़ा होना पड़ता है। ये मामले २५ वर्षों से अधिक समय से चल रहे हैं। इस दौरान लगभग हर जिले में एक-दो दर्जन कलेक्टर बदल गए, लेकिन किसी ने गंभीरता नहीं दिखाई। आलम यह रहा कि इस विभाग में विवादित मामलों की पेंचीदगी के कारण प्रमुख सचिव, सचिव या अन्य बड़े पदों पर अधिकारी आना ही नहीं चाहते।
सालों से दुरूस्त नहीं रिकार्ड
जमीनी विवादों के निपटारे के लिए भले ही राजस्व भू-अभिलेख के रिकार्ड में होने वाली विसंगित के सुधार के प्रावधान हों, लेकिन कुछ मामलों में नियमों की ही नहीं कानून की भी अनदेखी हो रही है। खासकर बरसों से बिगड़े जमीनों के नक्शे इसका उदाहरण बन गए हैं। जिनमें सुधार ही नहीं हो पा रहा है। पूरे प्रदेश में हालात यह हैं कि बिगड़े नक्शों से खेतों में झगड़े की जरीब पड़़ गई है। जिसे लेकर न केवल जमीनों पर बढ़ा दावों का विवाद कचहरी तक पहुंच गया है, बल्कि बिखरते परिवार और टूटते रिश्तों की भी यह बड़ी वजह बन गई है। बिगड़े रिकार्ड को सुधारने करीब ३० साल से विभाग ने गरज ही महसूस नहीं की है। कई जिलों में तो १०० साल से अधिक समय बीत गया बंदोबस्त ही नहीं हुआ।
सालों से रिकार्ड दुरुस्तीकरण की कार्रवाई नहीं होने से प्रदेश का लैंड रिकार्ड वर्ष-दर-वर्ष बिगड़ता जा रहा है। जिससे बटांक के क्रम बिगडऩे से जमीनों के सीमांकन में विवाद की स्थिति निर्मित हो गई है। अधिकांश मामलों के नक्शे में त्रुटि व खसरा क्रमांक में बटांक बिगडऩे की शिकायते हैं। आलम यह है कि राजस्व विभाग की नाफरमानी के कारण सरकारी जमीनों पर पसर रहा अतिक्रमण भी प्रशासन हटा नहीं पा रहा है।
दलाली के धंधे ने बिगाड़ा खेल
राजस्व विभाग में सारा खेल दलाली के धंधे के कारण बिगड़ा है। आलम यह है कि जब भी कोई किसान या आम आदमी अपनी जमीनों का विवाद लेकर विभाग के अफसरों के पास पहुंचता है तो उसमें दलाली का खेल शुरू हो जाता है। समीक्षा और औचक निरीक्षण के बाद यह बात सामने आई है कि राजस्व न्यायालयों से जुड़े अफसर और दलालों के गठजोड़ के चलते मामलों में अनावश्यक देरी हो रही है। कुछ जिलों के कलेक्टर भी दलालों की कथित सांठगांठ में शामिल हैं। इसे लेकर गुप्तचर विभाग से जानकारी जुटाई जा रही है। यही कारण है कि राजस्व न्यायालयों में काम कर रहे अफसरों की कार्यप्रणाली से मुख्यमंत्री और मुख्य सचिव बेहद नाराज है। पहले मुख्यमंत्री ने कलेक्टरों को चेताया कि राजस्व मामलों में लापरवाही मिली तो उलटा टांग दूंगा। इसके बाद मुख्य सचिव बीपी सिंह ने राजस्व विभाग की संभागवार समीक्षा की कमान संभाली है। कमान संभालते ही उन्होंने अफसरों को राजस्व न्यायालयों का सिस्टम सुधारने के लिए दो माह का अल्टीमेटम दे दिया। मुख्य सचिव के निरीक्षणों में ढेरों खामिया उजागर हो रही हैं। कहीं एसडीएम कार्यालय और तहसीलदार कार्यालय एक ही भवन में है, लेकिन पिछले पांच साल से रिकार्ड तहसील से एसडीएम कार्यालय नहीं पहुंच पा रहा है। आरसीएमएस सिस्टम बनाए जाने के बावजूद अफसर उसको फालो नहीं कर रहे है। एक-एक कोर्ट में सैकड़ो ऐसे मामले निकले जो इस सिस्टम में दर्ज नहीं किए जा रहे है। डायवर्जन के मामलों में मनमर्जी चल रही है। किसी का डायवर्जन तत्काल तो किसी का सालों से नहीं हो पा रहा है। आठ और दस सालों में भी राजस्व मामलों की सुनवाई कर अफसर अंतिम निर्णय नहीं ले पा रहे है। कहीं लोक सेवा केन्द्रों के आवेदन समय से कोर्ट तक नहीं पहुंच रहे है। नामांतरण के प्रकरणों में अनावश्यक देरी हो रही है। तहसील कोर्ट में अविवादित नामांतरण एक माह में और विवादित नामांतरण के प्रकरण तीन-तीन महीने में भी नहीं पूरे हो पा रहे है। राजस्व कोर्ट में समय पर फैसले नहीं हो पाने के कारण आवेदक सीएम हेल्पलाइन में शिकायतें कर रहे है।
पहली बार कलेक्टर निशाने पर
अभी तक राजस्व मामलों में जानबूझकर लेटलतीफी करते हुए मामलों को अनावश्यक लटकाने के कारण पटवारी, तहसीलदार, नायब तहसीलदार और कभी-कभी एसडीएम पर गाज गिरती थी, लेकिन पहली बार कलेक्टर निशाने पर हैं। दरअसल कलेक्टर और कमिश्नर के पास जिलों और संभाग में राजस्व मामलों को निपटाने की जिम्मेदारी होती है, लेकिन ये सभी पूरी जिम्मेदारी कनिष्ठ अधिकारियों पर डाल देते हैं। इसलिए इस बार मुख्यमंत्री और मुख्य सचिव ने व्यवस्था को दुरुस्त करने के लिए कमिश्नर और कलेक्टर पर दबाव बनाया है। यही कारण है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा राजस्व मामलों के निराकरण में लापरवाही पर कलेक्टरों को उल्टा टांगने को कहा गया है।
मुख्यमंत्री और मुख्य सचिव के कठोर रुख को देखते हुए अब सभी अधिकारी सहमें हुए हैं। इनका डर राज्य प्रशासनिक सेवा तथा कनिष्ठ प्रशासनिक सेवा के अफसरों में भी देखने को मिल रहा है। सीएम के डर से राजस्व विभाग के अधिकारी लंबित मामलों को निपटाने में जुट गए हैं। हालांकि मुख्यमंत्री और मुख्य सचिव ने डिप्टी कलेक्टरों और तहसीलदारों की मुश्कें कसने के लिए अभियान छेड़ रखा है पर इन दोनों ही संवर्ग के अफसरों की लापरवाही व अमले की कमी ने सरकार की कोशिशों पर पानी फेर रखा है। राजस्व विभाग से संबंधित काम भी यही अफसर करते हैं।
राजस्व कोर्ट में पेंडिंग केस
राजस्व विभाग की कमजोरियों को दुरुस्त करने की मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की सख्ती के बीच चौंकाने वाले खुलासे हो रहे हैं। खासतौर पर रेवेन्यू कोर्ट में की जाने वाली मनमानी में आईएएस अफसरों से लेकर तहसीलदारों तक के भ्रष्टाचार और उनके फैसले न देने की नीति से आमजन की परेशानी का सामने आई है। रीवा संभाग के अपर कमिश्नर कोर्ट में साठ साल से पेंडिंग केस सामने आया है तो इंदौर में ४२ साल से केस दर्ज होने के बाद भी उसका फैसला नहीं देने की लापरवाही सामने आई है। अपर संभागायुक्त के कोर्ट में सुनवाई आईएएस अधिकारियों द्वारा की जाती है जो दूसरे अधिकारियों के लिए मिसाल बनते हैं पर ये खुद ही लापरवाह हैं। राजस्व विभाग द्वारा तैयार कराए गए आरसीएमएस में पांच साल से पुराने साढ़े १८ हजार केस भी सामने आए हैं।
सीएम शिवराज सिंह चौहान तथा राजस्व विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों की जानकारी में ऐसे मामले आ चुके हैं पर अभी भी सुनवाई के नाम पर ऐसे मामलों का निराकरण नहीं हो पाया है। सबसे पुराने जिस केस का खुलासा हुआ है, उसमें रीवा अपर संभागायुक्त की अदालत में दर्ज आवेदन क्रमांक ०१आर ००२-एपीपी-९६ शामिल है जो ५ अप्रैल १९५७ को रजिस्टर्ड किया गया था और साठ सालों से अधिक समय से सुनवाई के नाम पर पेंडिंग है। अफसरों का ही कहना है कि इसके वास्तविक पक्षकार जिंदा हैं या नहीं पर केस दर्ज है। इसलिए कोर्ट की प्रक्रिया चलती रहेगी। इसी कोर्ट में १९७४-७५ से लेकर २००० के बीच हजारों केस पंजीकृत हैं जिनका निराकरण होना बाकी है। इसी तरह इंदौर अपर कमिश्नर की कोर्ट में २७ जनवरी १९७५ को दर्ज हुआ था जिसका फैसला अभी तक नहीं हुआ है। भोपाल के अपर संभागायुक्त के न्यायालय में २२ और शहडोल के अपर संभागायुक्त के कोर्ट में ३५ साल पुराने राजस्व केस पेंडिंग हैं जो १४ सितम्बर १९९४ और १७ अक्टूबर १९८१ को पंजीकृत हुए हैं। ग्वालियर और जबलपुर संभाग में एसडीएम कोर्ट में ३३ साल पुराने केस पेंडिंग हैं। उज्जैन में अपर कलेक्टर कोर्ट में ३१ तथा होशंगाबाद संभाग में बैतूल एसडीएम कोर्ट में ३३ साल पुराने केस चल रहे हैं। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की फटकार और मुख्य सचिव की समीक्षा बैठक, मानीटरिंग का अच्छा असर राजस्व विभाग में देखने में आया है। कभी सीएम हेल्पलाइन में आने वाली शिकायतों में अव्वल रहने वाला राजस्व विभाग शिकायतों में लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग, पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग, नगरीय प्रशासन विभाग से नीचे आ गया है। शिकायतों के निराकरण में भी तेजी आ गई है। सौ दिनों से अधिक समय से लंबित शिकायतों का प्रतिशत पूरे प्रदेश में घटकर ६.२१ प्रतिशत पर आ गया है। १४ साल बाद सरकार की यह सक्रियता रंग लाती दिख रही है लेकिन यह सक्रियता कब तक चलेगी यह भी गौर करने वाली बात है।
८ आईएएस ने संभाली राजस्व विभाग की कमान
दो महीने पहले प्रदेश में भड़के किसान आंदोलन के बाद सरकार किसानों के राजस्व संबंधी लंबित मामलों के निराकरण को लेकर गंभीर हो गई है। यही कारण है कि अभी तक लूपलाइन समझे जाने वाले राजस्व विभाग में अफसरों की बड़ी संख्या में तैनाती की है। जिसमें प्रमुख सचिव अरुण कुमार पाण्डे, २ सचिव, प्रमुख राजस्व आयुक्त, आयुक्त भू-अभिलेख एवं बंदोबस्त समेत ८ आईएएस अफसर हैं। खास बात यह है कि अभी तक राजस्व विभाग में पदस्थापना को अफसर लूपलाइन पोस्टिंग मानते थे, लेकिन अब मुख्यमंत्री सचिवालय से जुड़े अफसरों को राजस्व में भेजा गया है। राज्य शासन ने मुख्यमंत्री के सचिव हरिरंजन राव को राजस्व सचिव का अतिरिक्त प्रभार दिया गया है। जबकि पी नरहरि पहले से ही सचिव पदस्थ हैं। इसके पीछे की वजह यह बताई जा रही है कि शासन स्तर पर भी राजस्व से जुड़े हजारों प्रकरण लंबित हैं। ऐसे में इनके निराकरण के लिए मंत्रालय में अफसरों की संख्या बढ़ाई गई है। इसके अलावा अपर सचिव राजेन्द्र सिंह, उप सचिव उर्मिला शुक्ला भी राजस्व विभाग में पदस्थ हैं। मंत्रालय से बाहर प्रमुख राजस्व आयुक्त का दायित्व रजनीश श्रीवास्तव को सौंपा गया था। आयुक्त भू-अभिलेख एवं बंदोबस्त के पद पर एमके अग्रवाल पदस्थ हैं। एक महीने पहले तक इन दोनों महत्वपूर्ण पदों का प्रभार राजस्व मंडल के सदस्य सुहैल अली के पास था। प्रमुख राजस्व कार्यालय में सहायक राजस्व राजेश कौल पदस्थ है। ये सभी भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी हैं। जबकि राज्य प्रशासनिक सेवा के अधिकारी भारती ऑगेराय भी उप सचिव हैं। इसी तरह शासन स्तर पर अवर सचिव एवं कार्यालय प्रभारियों की संख्या में बढ़ोत्तरी हुई है।
राहत के लिए ५५०० सौ करोड़ का पैकेज
किसान आंदोलन के बाद किसानों के जख्मों पर मरहम लगाने के लिए सरकार ने राजस्व विभाग को कस दिया है। साथ ही मैदानी अफसरों पर भी नकेल लगा दी है। इसके साथ ही सरकार किसानों को खुश करने के लिए ५५०० सौ करोड़ रुपए की एक योजना करवा रही है। बताया जाता है कि आगामी विधानसभा चुनाव को देखते हुए सरकार ने यह तैयारी की है। कृषि विभाग के प्रमुख सचिव राजेश राजौरा इस योजना पर काम कर रहे हैं। जानकारी के अनुसार किसानों को राहत देने वाली इस योजना की घोषणा सितम्बर-अक्टूबर माह में विधानसभा का विशेष सत्र बुलाकर की जाएगी। इस बार सरकार किसानों को लेकर कितनी संवेदनशील है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि लंबे समय से विभाग में पदस्थ प्रमुख सचिव राजेश राजौरा को नहीं बदला गया है। इस बार हुई बड़ी प्रशासनिक सर्जरी में सरकार ने कई विभागों में लंबे समय से जमे प्रमुख सचिव और सचिव को बदल दिया, लेकिन कृषि विभाग के प्रमुख सचिव राजेश राजौरा को इसलिए नहीं बदला कि वे किसानों को खुश करने वाली इस योजना को अमलीजामा पहना सकें।
वहीं राजस्व विभाग के प्रमुख सचिव अरुण कुमार पाण्डे चाहकर भी अपना तबादला नहीं करा सके। दरअसल विभाग में अधिकारियों की लापरवाही के कारण वे राजस्व विभाग से हटकर किसी अन्य विभाग में जाना चाहते थे, लेकिन उनका तबादला अटक गया। पाण्डे का कार्यकाल और एक साल का बचा है। वे अगले साल रिटायर होंगे। इसलिए वे इस विभाग से जाना चाहते थे, लेकिन अब ऐसा लगता है कि उनका एक साल का कार्यकाल इसी विभाग में बीतेगा।
आरसीएमएस सिस्टम करेगा समस्या निदान
मध्यप्रदेश के विभिन्न राजस्व कोर्ट में लंबित मामलों का निपटारा रेवेन्यू केसेस मैनेजमेंट सिस्टम (आरसीएमएस) से होगा। राजस्व कोर्ट में लंबित मामलों के कारण हर दिन हजारों की संख्या में लोग जिलों, तहसीलों के राजस्व कोर्ट में सुनवाई के लिए पहुंचते हैं। उनका पैसा व समय दोनों बर्बाद होता है। अब ऐसे लोगों को आरसीएमएस सिस्टम से राहत मिलेगी। इस सिस्टम के तहत राजस्व विभाग के अफसरों ने सभी जिलों के राजस्व न्यायालयों मसलन तहसीलदार, डिप्टी कलेक्टर व कलेक्टर के न्यायालयों से पेंडिंग मामलों की स्थिति, उनका पूरा रिकार्ड मंगवा कर उसे सबसे पहले कंप्यूटर पर अपलोड कराया है। इसके बाद इसका परीक्षण किया गया। यह एक ऐसा सिस्टम है, जिसके जरिए कोई भी व्यक्ति घर बैठे अपने मामलों में सुनवाई की तारीख व विभिन्न तरह के अपडेट को अपने स्वयं के या फिर साइबर कैफे पर जाकर देख सकता है। इस सिस्टम में मानिटरिंग की जबरदस्त व्यवस्था की गई है। यानी कोई चाह कर भी किसी की फाइल को न तो अटका सकता है और न ही इस मामले में कुछ कर सकता है।
नकारात्मक छवि बदलने की कवायद
सरकार ने राजस्व विभाग की नकारात्मक छवि को बदलने पर जोर दिया है। सरकार के निर्देशानुसार हर राजस्व अधिकारी को यह सुनिश्चित करना होगा कि विभाग से जुड़े आम जनता के काम सुगमता से और तय समय पर हों। जनता को उनके काम के लिए अनावश्यक रूप से भटकना न पड़े। दरअसल सरकार को देर से ही सही, लेकिन अब जाकर राजस्व विभाग की अहमियत समझ में आई है। राजस्व विभाग के अधीन आयुक्त भू-अभिलेख एवं बंदोबस्त, नियमित भू-प्रबंधन, भू अभिलेख, कृषि सांख्यिकी तथा भू-सुधार कार्यो के लिये विभागाध्यक्ष हैं। विभागाध्यक्ष होने के नाते प्रत्येक योजना के कार्य की समीक्षा आवश्यक निर्देशन कानूनी मामलों में मार्गदर्शन देते हुए सुनियोजित तथा सफलतापूर्वक कार्यक्रमों को चलाना आयुक्त भू-अभिलेख का प्रमुख कार्य है। आयुक्त भू-अभिलेख की सहायता के लिये संयुक्त आयुक्त भू-अभिलेख एवं बंदोबस्त का पद स्वीकृत है। संयुक्त आयुक्त भू-अभिलेख कार्यालय प्रमुख हैं। आयुक्त भू-अभिलेख एवं बंदोबस्त, का मुख्यालय ग्वालियर में है। संभाग स्तर पर क्षेत्रीय उपायुक्त भू-अभिलेख के कार्यालय हैं। जिले में विभाग का अमला कलेक्टर की देखरेख एवं नियंत्रण में कार्य करता है। इन सबके बावजूद विभाग की छवि नकारात्मक बनी हुई है। सरकार इस नकारात्मक छवि को हर हाल में बदलना चाहती है। इसलिए उसने अब अपना सारा ध्यान इस ओर लगा दिया है।
पांच साल के सर्वाधिक पेंडिंग केस
संभागवार पांच साल से अधिक समय के पेंडिंग राजस्व अदालत के प्रकरणों की जो स्थिति सामने आई है, उसके मुताबिक रीवा संभाग में ६२९९ और इंदौर संभाग में ११९६ केस शामिल हैं। उज्जैन संभाग में १२७०, ग्वालियर में १६६९, चंबल में ८६५, जबलपुर में १४८५, भोपाल में १५२४, शहडोल में २१६५, सागर में २६७३ तथा होशंगाबाद संभाग में ४०१ केस अपर कमिश्नर से नायब तहसीलदार तक की राजस्व अदालत में पेंडिंग हैं। पेंडिंग प्रकरणों में नामांतरण, सीमांकन, बंटवारा, डायवर्सन, साल्वेंसी के अलावा अन्य तरह के केस शामिल हैं। पांच साल के पेंडिंग प्रकरण वाले टाप फाइव जिलों में रीवा में २४८१, सीधी में १७६२, शहडोल में १२७५, छतरपुर में १२१३ तथा सतना में १०६२ प्रकरण हैं।