16-Sep-2017 09:42 AM
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कलह, गुटबाजी, नेताओं का एक-दूसरे पर अविश्वास और हाईकमान में त्वरित और ठोस निर्णय लेने की कमी कांग्रेस पार्टी का हालिया परिचय है। केंद्रीय संगठन हो या राज्य संगठन पार्टी के नेता केवल कुर्सी के लिए लालायित नजर आ रहे हैं। प्रदेश में 2018 में विधानसभा चुनाव है। संगठन पूरी तरह बिखरा हुआ है, लेकिन नेताओं में मुख्यमंत्री बनने की होड़ मची हुई है। किसी का ध्यान संगठन को संगठित करने की ओर नहीं है। ऐसे में एक बार फिर बाजी भाजपा मार ले तो इसमें कोई हैरानी की बात नहीं है।
वर्तमान समय कांग्रेस संगठन को संगठित और मजबूत करने का है, लेकिन कांग्रेस के नेता अगले मुख्यमंत्री पर मंथन कर रहे हैं। पूर्व नेता प्रतिपक्ष रविन्द्र चौबे ने प्रदेश में जाति आधारित राजनीति से इंकार किया है उनका कहना है कि छत्तीसगढ़ में जाति आधारित राजनीति नहीं होती। रविन्द्र चौबे ने यह बयान उस वक्त दिया है जब कांग्रेस के अंदर से आदिवासी मुख्यमंत्री की मांग उठने लगी है। कांग्रेस विधायक रामदयाल उइके आदिवासी मुख्यमंत्री बनाए जाने की मांग कर रहे हैं। उइके की इस मांग के बाद मुख्यमंत्री पद के दावेदार नेताओं में खलबली मच गई है, जो पिछले कई सालों से सपना संजोए बैठे हैं। कांग्रेस पिछले 14 साल से सत्ता से दूर है, लेकिन अभी से मुख्यमंत्री पद की दावेदारी को लेकर बयानबाजी कांग्रेस के उन नेताओं की कोशिशों को एक बड़ा झटका है जो पिछले कई सालों से गुटबाजी दूर करने की कवायद करते हुए पार्टी को एकजुट करने में लगे हैं। उधर कांग्रेस के आदिवासी प्रकोष्ठ के प्रदेशाध्यक्ष शिशुपाल सौरी ने आंतरिक रूप से उइके की मांग का समर्थन किया है, उन्होंने कहा कि समाज के अंदर ऐसी मांग है और समाज के नेता ऐसा चाहते हैं कि प्रदेश में आदिवासी नेतृत्व ही बने। सामाजिक रूप से मैं उनके बयानों के साथ हूं, लेकिन राजनीतिक रूप से मैं उनके बयानों से सहमत नहीं हूं। राजनैतिक परिस्थितियां अलग होती है और सामाजिक परिस्थितियां अलग।
कांग्रेसी नेताओं के बीच मुख्यमंत्री की दावेदारी पर भाजपा को राहत मिलती नजर आ रही है, क्योंकि प्रदेश में भाजपा की मैदानी स्थिति संतोष जनक नहीं है, लेकिन कांग्रेसी नेताओं को आपस में उलझा देख भाजपा आलाकमान ने इसे और हवा देने का निर्देश पार्टी नेताओं को दिया है। उधर, छत्तीसगढ़ के प्रभारी पीएल पूनिया कहते हैं कि प्रदेश में भाजपा के कुशासन से लोग उब गए हैं। छत्तीसगढ़ में किसानों की हालत बेहद खराब है, रमन सिंह सरकार की नीतियां किसान विरोधी हैं, किसानों में असंतोष हैं, कांग्रेस हमेशा से किसानों के हितों के लिए संघर्ष करती आई है, छत्तीसगढ़ में हमारी कोशिश रहेगी कि हम किसानों और आम लोगों के मसले को उठाएं, इसके साथ भ्रष्टाचार के मसले पर भी हम रमन सिंह सरकार की कमियों को उजागर करेंगे। प्रदेश प्रभारी के तमाम दावों के बीच कांग्रेस आजकल भारी उधेड़बुन में है। यह स्थिति उस पार्टी की है, जिसका शासन एक वक्त करीब-करीब सभी सूबों में था। मगर निर्णय लेने की क्षमता का नितांत अभाव और करिश्माई नेतृत्व की कमी ने पार्टी का बंटाधार कर दिया। विधायकों और पार्टी नेताओं में जब तक नेतृत्व विश्वास नहीं जगाएगा तब तक पार्टी उस स्वर्णिम अतीत के पास भी नहीं पहुंच सकेगी।
आर्थिक रूप से चारों खाने चित्त हुई छत्तीसगढ़ कांग्रेस
छत्तीसगढ़ कांग्रेस बड़े आर्थिक संकट से गुजर रही है। इसके चलते पार्टी के सभी विंग के दफ्तरों में होने वाले खर्च पर बड़ी कटौती की गई है। यही नहीं आर्थिक संकट के चलते कांग्रेस का प्रदेश मुख्यालय भी आधा-अधूरा है। लगातार तीन बार बीजेपी से पटखनी खाने के बाद अब कांग्रेस भी आर्थिक रूप से चारों खाने चित्त हो गई है। प्रदेश के कांग्रेसी नेताओं ने शिकायत भी की है कि केंद्रीय कार्यालय दिल्ली से किसी भी तरह की आर्थिक मदद नहीं मिलने से ना तो वे प्रदेश कांग्रेस का मुख्यालय बना पा रहे हैं और ना ही भाजपा के खिलाफ किसी बड़े आंदोलन का शंखनाद। कार्यकर्ताओं के मुताबिक भाजपा के खिलाफ किसी भी तरह के आंदोलन के लिए उन्हें अपनी जेब ढीली करनी पड़ती है। वरना ना तो उनके कार्यकलापों को मीडिया में सुर्खियां मिलती हैं और ना ही जमीनी समर्थन। छत्तीसगढ़ में अगले साल यानी 2018 में विधानसभा चुनाव होने हैं। लिहाजा प्रदेश कांग्रेस कमिटी अपनी आर्थिक जड़ें मजबूत करने में जुटी हुई है। इसके लिए स्थानीय कांग्रेसी नेताओं से लेकर प्रदेश स्तरीय नेताओं को सक्रिय किया जा रहा है।
-रायपुर से टीपी सिंह के साथ संजय शुक्ला