जमीन की फांस
18-Aug-2017 10:35 AM 1235003
छत्तीसगढ़ में भारतीय जनता पार्टी की रमन सिंह सरकार से जुड़ा एक खुलासा इन दिनों सुर्खियों में है। मामला राज्य के वरिष्ठ मंत्री बृजमोहन अग्रवाल और उनकी पत्नी सरिता अग्रवाल से जुड़ा है। आरोप है कि जनहित में दान की गई एक जमीन सरिता अग्रवाल ने एक रिजॉर्ट के लिए कौडिय़ों के भाव खरीद ली। आरोपों के कटघरे में बृजमोहन अग्रवाल भी हैं। राज्य के कृषि, जल संसाधन और धार्मिक न्यास मंत्री अग्रवाल की पत्नी महासमुंद जिले के सिरपुर में वन विभाग की 4.12 हेक्टेयर सरकारी जमीन श्याम वाटिकाÓ के नाम से रिजॉर्ट विकसित कर रही हैं। इस प्रोजेक्ट में उनके पुत्र अभिषेक और दो कंपनियां- आदित्य सृजहÓ और पुरबासा वाणिज्यÓ भी शामिल हैं। कंपनी रजिस्ट्रार के हिसाब से अभिषेक दोनों कंपनियों के निदेशकों में शामिल हैं। जबकि आदित्य सृजनÓ में उनकी मां भी निदेशक हैं। आरोप के अनुसार सरिता के नाम पर यह जमीन गलत तरीके से औने-पौने दाम पर खरीदी गई है। रायपुर दक्षिण विधानसभा सीट से 1990 से विधायक अग्रवाल ने 2013 के चुनाव के वक्त इस जमीन के बारे में जानकारी सार्वजनिक की थी। चुनाव आयोग को दिए शपथ पत्र में उन्होंने बताया कि इस जमीन की मालिक उनकी पत्नी हैं। इसके दो साल बाद यानी 2015 में किसान मजदूर संघ के नेता ललित चंद्रनाहू ने यह मसला उठाया। उन्होंने महासमुंद के तत्कालीन कलेक्टर उमेश कुमार अग्रवाल और रायपुर के आयुक्त अशोक अग्रवाल को पत्र लिखकर सरिता के मालिकाना हक वाली जमीन की स्थिति पर संदेह जताते हुए इसकी जांच की मांग की। जिस जमीन को बृजमोहन अग्रवाल ने अपनी पत्नी की बताया और जिसकी स्थिति पर चंद्रनाहू ने सवाल उठाया उसके छल-बल में उलझने की कहानी मार्च 1994 से शुरू हुई। यह जमीन मूल रूप से सिरपुर के नजदीकी झलकी गांव के किसान विष्णुराम साहू की थी। उन्होंने दो मार्च 1994 को पांच अन्य किसानों के साथ मिलकर अपनी जमीन जनहित में विकास कार्यों के लिए अविभाजित मध्य प्रदेश की सरकार को दानपट्टेÓ में दी थी। शुरू में इस जमीन का मालिकाना हक राज्य के जलसंसाधन विभाग को मिला लेकिन दो माह बाद ही यह वन विभाग को सौंप दी गई। केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने मई 1994 में जमीन हस्तांतरण की प्राथमिक अनुमति दी थी। इस अनुमति के आधार पर ही वन विभाग ने इसे अपना मान लिया। 2003 में करीब 22.90 लाख रुपए खर्च कर उसने इस पर वनीकरण भी करा दिया जबकि सरकारी लापरवाही की वजह से राजस्व रिकॉर्ड में यह दर्ज ही नहीं हुआ कि यह जमीन वन विभाग को हस्तांतरित की जा चुकी है। यानी इतने साल बाद भी राजस्व रिकॉर्ड में यही दर्ज था कि जमीन के मालिक विष्णुराम साहू हैं जिन्होंने दानपट्टे पर जमीन सरकार के जलसंसाधन विभाग को दे रखी है। इस बीच साल 2000 में मध्य प्रदेश का विभाजन हो चुका था। इसके तीन साल बाद यानी 2003 में नए-नवेले छत्तीसगढ़ में रमन सिंह के नेतृत्व में भाजपा की सरकार बनी थी। इस सरकार में बृजमोहन अग्रवाल गृह, जेल, संस्कृति और पर्यटन जैसे विभागों के मंत्री बने। अग्रवाल की अपनी वेबसाइट के मुताबिक उन्हें 2006 में वन विभाग का अतिरिक्त प्रभार दिया गया। यानी वह विभाग वास्तव में जिसका कब्जा विष्णुराम साहू की जमीन पर था, और राजस्व रिकॉर्ड के हिसाब से नहीं भी था क्योंकि जमीन हस्तांरित किए जाने की जानकारी इसमें दर्ज नहीं थी। 2008 में चुनाव जीतकर रमन सिंह सरकार फिर सत्ता में लौटी। उसके एक साल बाद यानी 12 सितंबर 2009 को अग्रवाल की पत्नी ने यही जमीन सीधे विष्णुराम साहू से सिर्फ 5,30,600 रुपए में खरीद ली। इसी बीच पर्यटन मंत्रालय, जिसको शुरू से अब तक अग्रवाल ही संभाल रहे थे, उन्होंने इस जमीन के इर्द-गिर्द लगते पूरे इलाके को संभावित पर्यटन केंद्र के तौर पर चिन्हित कर दिया। इसके बाद सरिता अग्रवाल, उनके पुत्र अभिषेक और उनसे जुड़ी कंपनियों ने इस पर रिजॉर्ट विकसित करने की योजना पर काम शुरू कर दिया। अब यह मामला भाजपा के गले की फांस बन गया हैं। मैंने कोई गलती नहीं की उधर अग्रवाल का कहना है कि हमने हर काम नियमों के मुताबिक किया। जिस जमीन की बात की जा रही है उसे मेरी पत्नी और बेटे ने खरीदा है। वह जिस किसान के नाम पर थी उसी से खरीदी गई है। मुझे नहीं लगता कि इसमें कोई गलती हुई है और अगर कोई गलती है भी तो बेचने वाले की तरफ से है। अन्यथा कोई मसला ही नहीं है। मैं सिर्फ दो लाइन में अपनी बात कहना चाहता हूं कि सभी नियमों का पालन करते हुए जिस किसान के नाम पर जमीन थी उसी से इसे खरीदा गया। रजिस्ट्री कराई गई। उसे पूरा भुगतान किया गया। इस जमीन का जिक्र मैंने चुनाव घोषणा पत्र में भी किया है। मैं या मेरे परिवार का कोई सदस्य किसी तरह की अनियमितता में शामिल नहीं है। -रायपुर से टीपी सिंह के साथ संजय शुक्ला
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