जदयू में वर्चस्व की जंग
16-Sep-2017 09:35 AM 1234879
बिहार में महागठबंधन से अलग होकर जेडीयू के भाजपा के साथ चले जाने के बाद से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और शरद यादव की लड़ाई अब पार्टी पर दावे तक पहुंच ही गई है। एक ओर जहां जेडीयू ने उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू से मिलकर उनकी राज्यसभा की सदस्यता रद्द करने की मांग की, तो शरद यादव का खेमा पार्टी पर दावा जताने के लिए चुनाव आयोग के पास पहुंचा। इसके अलावा शरद यादव सितंबर के अंतिम सप्ताह में चार-दिवसीय दौरा कर जनता से सीधे संवाद करने जा रहे हैं। 25 सितंबर से शुरू हो रही इस यात्रा में शरद यादव के सभी कार्यक्रम संवाद यात्रा के अंतर्गत ही आयोजित किए जाएंगे। उधर, जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) का कहना है कि शरद यादव की इस यात्रा का कोई अर्थ नहीं रह गया है। नीतीश और शरद के बीच की यह लड़ाई बिल्कुल वैसी ही है, जैसी उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव और उनके बेटे तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के बीच समाजवादी पार्टी में वर्चस्व को लेकर छिड़ी थी। वैसे, जेडीयू की बात करें, तो अब तक के दावों और समर्थन को देखकर कहा जा सकता है कि नीतीश कुमार का पलड़ा भारी है। जेडीयू ने बीते साल ही पार्टी की राष्ट्रीय परिषद में शामिल सदस्यों की सूची चुनाव आयोग को दी है, जिसमें कुल 193 सदस्य हैं। यह सूची राजगीर सम्मेलन के समय जारी की गई थी और इसी सम्मेलन में शरद यादव के प्रस्ताव के बाद पार्टी ने नीतीश कुमार को अध्यक्ष बनाया था। राष्ट्रीय परिषद की सूची पर जेडीयू महासचिव जावेद रजा के हस्ताक्षर हैं और अब वह शरद यादव के साथ खड़े हैं, लेकिन कुल सदस्यों में से ज्यादातर नीतीश कुमार के साथ खड़े दिखाई दे रहे हैं। यह नई सूची जेडीयू के दूसरे महासचिव केसी त्यागी की ओर से चुनाव आयोग की दी गई है। केसी त्यागी, नीतीश कुमार के समर्थन में खड़े हैं, जबकि करीब 30-40 सदस्य केरल के सांसद वीरेंद्र कुमार के साथ हैं, जो जेडीयू से अलग हो चुके हैं। चुनाव आयोग किसी भी पार्टी में वर्चस्व को लेकर सबसे पहले यही देखता है कि पार्टी सदस्य, पदाधिकारी, सांसद और विधायक किसके साथ ज्यादा संख्या में खड़े हैं। वहीं, जेडीयू के अपने संविधान के मुताबिक भी कोई सदस्य दो बार से ज्यादा पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष नहीं रह सकता है, जबकि शरद यादव लगातार तीन बार अध्यक्ष रह चुके हैं। इसके अलावा यह भी किसी से छिपा नहीं है कि भाजपा के साथ जाने के फैसले पर पार्टी के ज्यादातर विधायकों का समर्थन है। शरद खेमे के नेता अरुण श्रीवास्तव ने कहा है कि सांसद व विधायक भले ही नीतीश के साथ हों, लेकिन अधिकांश पदाधिकारी राज्य इकाईयां व कार्यकर्ता शरद यादव के साथ हैं। कोई भी पार्टी सांसदों व विधायकों से नहीं बल्कि कार्यकर्ताओं से बनती है। उन्होंने शरद यादव की सदस्यता खारिज करने की मांग पर कहा कि शरद यादव कुर्सी से चिपकने वाले नेताओं में नहीं रहे हैं। असल में शरद यादव के समर्थकों का कहना कि साल 1999 में नीतीश कुमार और जार्ज फर्नाडिस ने अपने राजनैतिक फायदे के लिए अपनी समता पार्टी का विलय शरद यादव की जेडीयू में किया था। इसलिए शरद यादव के समर्थकों का यह भी कहना है कि शरद यादव ही जेडीयू के असली उतराधिकारी हैं। अगर किसी को जेडीयू से बाहर जाना है, तो नीतीश कुमार और उनके समर्थकों को जाना चाहिए। शरद यादव को जेडीयू से बाहर किए जाने के बाद उनकी और नीतीश कुमार की लड़ाई का अखाड़ा चुनाव आयोग ही होगा। 17 को शरद यादव खेमे ने बुलाई कार्यकारिणी बैठक दो फाड़ होने की कगार पर पहुंचे जनता दल (यूनाइटेड) में नीतीश कुमार और शरद यादव के खेमों के बीच असली पार्टी होने व चुनाव चिह्न के दावों कों लेकर जंग तेज हो गई है। खुद को असली जदयू बताते हुए शरद यादव धड़े ने 17 सितंबर को दिल्ली में पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक बुलाई है। दूसरी तरफ नीतीश खेमे ने चुनाव आयोग में जाकर खुद को असली जदयू बताते हुए मौजूदा पार्टी चुनाव चिह्न उसी को आवंटित करने की मांग की है। इससे पहले 25 अगस्त शरद यादव खेमे ने चुनाव आयोग में जाकर खुद को असली जदयू बताया व चुनाव चिह्न पर दावा ठोका था। - विनोद बक्सरी
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