02-Oct-2017 11:00 AM
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अशोक चौधरी को बिहार कांग्रेस अध्यक्ष पद से हटाए जाने को लेकर राजनीतिक गलियारों में कई तरह की चर्चाएं हो रही हैं। अशोक चौधरी की छुट्टी के पीछे जो सबसे बड़ा कारण सामने आया है वो है हाल के दिनों में राजद सुप्रीमो लालू यादव से अशोक चौधरी की बढ़ी दूरी। महागठबंधन टूटने के बाद अशोक चौधरी एकाएक नीतीश कुमार के काफी करीब हो गये और लालू से दूरी बना ली। बताया जा रहा है कि लालू ने भी अशोक चौधरी की शिकायत सोनिया गांधी से की थी।
दरअसल लालू यादव अशोक चौधरी और नीतीश की बढ़ती नजदीकियों से परेशान चल रहे थे। जिसकी शिकायत उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और उपाध्यक्ष राहुल गांधी से की थी। ये बात भी सामने आई है कि कांग्रेस नेता सीपी जोशी भी अशोक चौछरी से नाराज चल रहे थे। खबर ये भी है कि महागठबंधन से नीतीश कुमार के बाहर निकलने के बाद अशोक चौधरी आरजेडी के साथ खड़े दिखना नहीं चाहते थे, लेकिन बिहार में कांग्रेस आलाकमान का मूड लालू यादव के साथ बने रहने का है। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने पिछले माह 20 से अधिक विधायकों से मुलाकात कर पार्टी के कामकाज के बारे में उनकी अलग-अलग राय जानी थी। पार्टी सूत्रों के अनुसार राहुल ने कांग्रेस विधायकों को बुलाकर इसलिए बातचीत की थी ताकि पार्टी की राज्य इकाई में विभाजन को टाला जा सके। उस बातचीत में अशोक विरोधी विधायकों ने अध्यक्ष के नेतृत्व पर गंभीर सवाल खड़े किया था।
बिहार में कांग्रेस की राजनीति को करीब से जानने वालों का कहना है कि जिस तरह से अशोक चौधरी ने मीडिया के सामने राहुल गांधी पर वार किया है, उससे साफ लगता है कि अशोक चौधरी कांग्रेस में दलितों के प्रताडि़त होने वाला कार्ड खेल सकते हैं। हटाए जाने के बाद अशोक चौधरी मीडिया की सुर्खियां बने रहेंगे और पार्टी को अंदर ही अंदर काफी नुकसान पहुंचाने का प्रयास कर सकते हैं। अशोक चौधरी के संपर्क में रहने वाले बिहार के 27 विधायकों में से 18 से ज्यादा विधायक समर्थन में हैं, इसलिए अशोक चौधरी बिहार प्रदेश कांग्रेस को बड़ा झटका भी दे सकते हैं।
महागठबंधन से सत्ता में भागीदारी मिली पार्टी के नेताओं को बहुत रास आयी थी, लेकिन अचानक सत्ता से हट जाने के बाद कांग्रेस के कई विधायक यह बर्दाश्त नहीं कर पा रहे हैं। बताया जा रहा है कि सदानंद सिंह गुट के कुछ विधायक और अशोक चौधरी गुट के विधायक लगातार जदयू के संपर्क में बने हुए हैं। बहुत जल्द ही पार्टी में उथल-पुथल मच सकती है। लालू अपने तरीके से कांग्रेस को हांकते हैं, यह बात स्थानीय नेताओं को पता है, वह चाहते हैं कि जदयू में मिल जाने से उनका भविष्य और राजनीतिक कैरियर दोनों संवर जायेगा।
पार्टी ने 2015 के विधानसभा चुनाव में 41 सीटों पर चुनाव लड़ा और 27 पर जीत मिली थी। पार्टी के कई नेता मंत्री भी बने थे। कांग्रेसी अरसे बाद सत्ता सुख का भोग कर रहे थे। अचानक जदयू के भाजपा के साथ चले जाने से इनके सत्ता सुख का सपना चकनाचूर हो चुका है। नीतीश कुमार के एहसान तले दबे ऐसे 10 विधायक लगातार जदयू के संपर्क में बने हुए हैं, वह कभी भी पार्टी से अलग रास्ता अपना सकते हैं। उनकी बातों को कांग्रेस का प्रदेश नेतृत्व भी नहीं समझ रहा है। महागठबंधन टूटने के बाद से इस बात को लेकर चर्चा हो रही है कि कांग्रेस के विधायक जदयू का दामन थाम सकते हैं। पार्टी नेतृत्व काफी देर कर चुका है।
टूट की कगार पर खड़ी कांग्रेस
बिहार में कांग्रेस टूट की कगार पर पहुंच गई है। बिहार में महागठबंधन के टूटने के बाद से ही कांग्रेस में घमासान मचा हुआ है। महागठबंधन टूटने के बाद बिहार में कांग्रेस सत्ता से अलग हुई और पार्टी में टूट की अफवाहें जोर पकडऩे लगीं हैं। पार्टी का एक गुट लगातार आरोप लगा रहा था कि पार्टी के ही कुछ वरिष्ठ नेता पार्टी को तोडऩे की कोशिश कर रहे हैं। इस कोशिश को पंख लगा है अशोक चौधरी को हटाए जाने से। उधर, अशोक चौधरी के तेवर से यह साफ जाहिर हो रहा है कि वह कांग्रेस में दलितों के प्रताडि़त होने वाला कार्ड खेल सकते हैं। अशोक चौधरी ऊपर से भले यह कहते रहें कि वह राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राहुल गांधी से मिलकर सारी समस्याओं और अपने ऊपर हुए अत्याचार से अवगत करायेंगे, लेकिन वह पार्टी को अंदर ही अंदर काफी नुकसान पहुंचाने का प्रयास करेंगे। वैसे भी अध्यक्ष पद से हटाये जाने के बाद अशोक चौधरी के सामने बिहार की सियासत में संभावनाओं की कमी नहीं है। उन्हें बिहार की बाकी पार्टियों की ओर से ऑफर मिल रहा है, वह जहां चाहें जा सकते हैं।
-विनोद बक्सरी