18-Aug-2017 10:25 AM
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छठी बार बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेने से पहले और गठबंधन सरकार से इस्तीफा देने के बाद नीतीश कुमार ने सार्वजनिक तौर पर कहा था कि लोकतंत्र लोक-लाज से चलता है। यानी लोकतंत्र में राजनैतिक शूचिता और पारदर्शिता आवश्यक है। इसके साथ ही यह भी कहा गया कि नीतीश कुमार का सुशासन बेदाग रहा है। लिहाजा, दागी लोगों का उसमें कोई स्थान नहीं होना चाहिए। लेकिन उनकी सरकार में 76 फीसदी मंत्री दागदार हंै।
जानकारों का कहना है कि नीतीश कुमार ने सिर्फ राजनीतिक फायदे के लिए गठबंधन तोड़ा है क्योंकि उनकी नई सरकार में नया कुछ भी नहीं है, जिससे कहा जा सके कि उन्होंने राजनीतिक पारदर्शिता, शूचिता और सुशासन
की बेदाग छवि गढ़ी है। नीतीश की नई
सरकार पर परिवारवाद को बढ़ावा देने, दागियों को मंत्री बनाने, अवसरवाद को हवा देने, जनादेश का अपमान करने और सोशल इंजीनियरिंग को ध्वस्त करने के आरोप लग रहे हैं, जबकि नीतीश हमेशा से इन सबों का विरोध करते रहे हैं।
नीतीश कुमार की सबसे ज्यादा आलोचना परिवारवाद को बढ़ावा देने के लिए हो रही है। उन्होंने लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) अध्यक्ष रामविलास पासवान के छोटे भाई पशुपति कुमार पारस को मंत्रिमंडल में जगह दी है जबकि पारस किसी भी सदन के सदस्य नहीं हैं। हालांकि, लोजपा कोटे से किसे मंत्री बनाना है या किसे नहीं, यह लोजपा का आंतरिक विषय है लेकिन मुख्यमंत्री का यह विशेषाधिकार भी है कि वो किसे अपनी टीम में रखना चाहते हैं और किसे नहीं। सीएम चाहते तो पारस के नाम को रिजेक्ट कर सकते थे लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया, जबकि रालोसपा कोटे से सुझाए गए नाम को उन्होंने रिजेक्ट कर दिया था।
नीतीश कुमार ने जिस सबसे बड़े आरोप के चलते गठबंधन सरकार तोड़ी और भाजपा के साथ मिलकर सरकार बनाई, वह है दागी होना। तेजस्वी यादव को आपराधिक मामलों में दागी बताकर नीतीश ने इस्तीफा दे दिया जबकि उनके नए मंत्रिमंडल में करीब दर्जन भर मंत्री ऐसे हैं जो किसी ना किसी मामले में दागी हैं। खुद सीएम नीतीश पर मर्डर का केस है और पटना हाईकोर्ट से उन्होंने उस पर स्टे ले रखा है। नीतीश के नए उप मुख्यमंत्री और लालू परिवार पर सबसे ज्यादा आरोप लगाने वाले सुशील कुमार मोदी भी बेदाग नहीं हैं। 2012 के एमएलसी चुनावों के दौरान सौंपे हलफनामे में मोदी ने खुद उल्लेख किया है कि उन पर भागलपुर के नौगछिया कोर्ट में आईपीसी की धारा 500, 501, 502 (मानहानि), 504 (शांति भंग) और 120 बी (आपराधिक साजिश) के तहत केस दर्ज हैं। एडीआर की रिपोर्ट के मुताबिक नीतीश कुमार की नई कैबिनेट के 29 में से 22 मंत्री यानी 76 फीसदी मंत्री आपराधिक मामलों में आरोपी हैं। ये संख्या महागठबंधन में दागी मंत्रियों से ज्यादा है। गौरतलब है कि, नीतीश कुमार की लालू यादव के साथ महागठबंधन वाली कैबिनेट में 19 मंत्री यानी 68 फीसदी मंत्री ही आरोपी थे। नीतीश कुमार की इस नई कैबिनेट के 22 दागी मंत्रियों में से 9 मंत्रियों ने अपने खिलाफ गंभीर आपराधिक मामलों का जिक्र किया है। इतना ही नहीं जेडीयू से नीतीश कैबिनेट के दो मंत्रियों के खिलाफ हत्या की कोशिश में धारा 307 के तहत मामले दर्ज हैं। नीतीश सरकार के कई मंत्रियों के खिलाफ डकैती, चोरी, धोखाधड़ी और महिलाओं के खिलाफ हिंसा जैसे गंभीर मामले दर्ज हैं।
सोशल इंजनीयरिंग की रस्म अदायगी
नीतीश जिस सोशल इंजनीयरिंग का पहरुआ बने थे, अब उसकी सिर्फ रस्म अदायगी कर रहे हैं। उन्होंने नई सरकार में सिर्फ एक महिला और एक मुस्लिम को मंत्री बनाया है, जबकि पिछली सरकारों में ऐसा नहीं था। सामाजिक सद्भाव का ख्याल रखते हुए नीतीश कई मुस्लिम चेहरों को तरजीह देते रहे हैं लेकिन इस बार उन्होंने सिर्फ रस्मअदायगी की है। जातीय समीकरणों को साधने में भी नीतीश ने कई जातियों को प्रतिनिधित्व नहीं दिया है। किसी भी कायस्थ को मंत्री नहीं बनाया गया है। उनकी सरकार के स्वरूप में दलित-महादलित अभी भी बहुत पीछे हैं।
- विनोद बक्सरी