16-Sep-2017 09:25 AM
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मप्र में रेत के अवैध उत्खनन को रोकने में सरकार की गंभीरता आम आदमी को फायदा देती नहीं दिख रही है। सरकार ने उत्खनन रोकने के लिए नई नीति भले ही बना दी है, मगर इसमें बिचौलियों और रेत का अवैध भंडारण करने वालों पर कार्रवाई के लिए प्रस्ताव नहीं है। साथ ही ट्रांसपोर्टेशन चार्ज इतना अधिक किया गया है कि अब पांच हजार रुपए की रेत ढुलाई में दस हजार रुपए लगेंगे और कमोवेश उतनी ही कीमत में लोगों को रेत मिलेगी जितने में अभी मिल रही है। गौरतलब है कि सीएम शिवराज सिंह चौहान ने मई में घोषणा की थी कि राज्य सरकार द्वारा बनाई जाने वाली नई रेत नीति में स्थानीय लोगों को रोजगार दिया जाएगा और स्वसहायता समूहों के माध्यम से नदियों से खनन कराया जाएगा पर खनिज साधन विभाग द्वारा जारी रेत नीति के फाइनल प्रारूप में इसका उल्लेख नहीं है। सरकार नर्मदा नदी को छोड़कर बाकी नदियों से मशीनों से खनन कराएगी। इस प्रारूप में रेत कारोबार में बिचौलियों पर अंकुश के लिए भी सख्त प्रावधान का अभाव है। प्रस्ताव में कहा गया है कि खनन के बाद रेत को परिवहन कर डिपो तक लाया जाएगा जिसका खर्च काफी अधिक होगा है।
जानकारी के अनुसार प्रदेश में 3 करोड़ घनमीटर रेत की जरूरत है, लेकिन उपलब्धता 2.68 घनमीटर ही है। प्रदेश में 2532 चिह्नित रेत खदाने हैं जिनमें से 956 की नीलामी हुई है। इनमें से 445 खदाने ही संचालित है। नर्मदा में सबसे ज्यादा 160 खदाने हंै वहीं 103 सिंध और 70 तवा व 890 दूसरी नदियों में हैं। नई रेत नीति में कहा गया है कि 9.6 टन क्षमता वाल 6 चक्का ट्रक में प्रति किमी 5.21 रुपए परिवहन खर्च आएगा। इसी तरह 16 टन वाले 10 चक्का डंपर में 4.27 रुपए तथा 20 टन वाले 12 पहिए के डंपर में प्रति किमी परिवहन खर्च 3.85 रुपए आएगा। होशंगाबाद से भोपाल तक आने जाने की औसत दूरी 100 किमी के मान से 2000 किमी होगी। इस पर 6 चक्का वाले डंपर में 10 टन रेत का ट्रांसपोर्टेशन खर्च करीब साढ़े नौ हजार रुपए होगा। डंपर में भरी रेत की रायल्टी और हार्वेस्टिंग और डिपो का औसत खर्च पांच हजार रुपए होगा। यानी पांच हजार की रेत की ढुलाई साढ़े 9 हजार रुपए जोड़कर साढ़े 13 हजार रुपए तक पहुंच जाएगी इसके बाद जब डिपो से रेत संबंधित खरीदार के पास जाएगी तो बुकिंग करने वाला ठेकेदार उसकी अतिरिक्त कीमत वसूल करेगा। डिपो से कोई भी व्यक्ति कितनी मात्रा तक रेत खरीद व भंडारित कर सकेगा। इसका नतीजा यह होगा कि जिन इलाकों में रेत कारोबारी एक्टिव हैं, वे अपने मनमाफिक रेत की कीमत आने पर एक दिन में बिकने वाली पूरी रेत खरीद सकेंगे। इसका भंडारण कर वे रेत बेच सकेंगे। यह रेत सरकार द्वारा तय की जाने वाली रेत की कीमत से जुड़ी नहीं होगी। रेत भंडारित करने वाला ठेकेदार अपनी मर्जी से दाम तय कर रेत की बिक्री कर सकेगा। ऐसे में रेत की कालाबाजारी की स्थिति बन सकेगी क्योंकि खदानों से सौ से दो सौ किमी दूर तो रेत के डिपो बनाए नहीं जाएंगे। सरकार जीपीएस और सीसीटीवी लगाने की बात कह रही है पर ये कब तक प्रभावी होंगे, इसकी समय सीमा तय नहीं है। खनिज विभाग के सचिव मनोहर दुबे का कहना है कि नई रेत नीति के तहत परिवहन और वितरण व्यवस्था करने में करीब 2 माह का समय लगेगा।
रेत का खनन और परिवहन अलग-अलग एजेंसियों के हाथ
नई नीति में रेत का खनन और परिवहन अलग-अलग एजेंसियों के हाथ में होगा। खदान ठेकेदार पूर्व निर्धारित डिपो पर रेत लाकर देगा। उसे बेचने का काम सरकारी एजेंसी या पंचायत जैसे स्थानीय निकाय करेंगे। खनिज विभाग में रेत परिवहन की दर 42.67 रूपए प्रति घनमीटर/प्रति किलोमीटर तय की है। वही रॉयल्टी और रेत खनन और डिपो संचालन पर होने वाला खर्च फिलहाल 500 रुपए प्रति घनमीटर है। दूसरे खर्च घटाकर रॉयल्टी में कमी 2500 रु. तक लाने का विचार है। यदि यह संभव हुआ तो रेत के भाव और भी कम (45 रुपए प्रति घनफीट से भी नीचे) हो जाएंगे। स्थानीय स्तर पर रेत परिवहन के लिए जिला प्रशासन इच्छुक लोगों को एक ऑनलाइन प्लेटफॉर्म उपलब्ध कराएगा। नई रेत नीति की खास बात यह है कि भोपाल, इंदौर, ग्वालियर और जबलपुर में परिवहन के लिए एक कंपनी बनाने का प्रस्ताव है। रेत की बिक्री ऑनलाइन पोर्टल के जरिए होगी। स्थानीय खरीददार परिवहन परमिट (टीपी) खुद जारी कर सकेंगे। नदियों में मशीनों से खुदाई नहीं कर सकेंगे। खनिज विभाग में पंजीकृत वाहनों से ही रेत परिवहन हो सकेगा।
- धर्मेन्द्र सिंह कथूरिया