18-Aug-2017 10:29 AM
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प्रदेश के अति पिछड़े इलाके बुंदेलखंड में केंद्रीय मंत्री उमाभारती के ड्रीम प्रोजेक्ट केन-बेतवा लिंक परियोजना पर संकट के बादल लगातार मडरा रहे हैं। इसकी बड़ी वजह है उसकी राह में आने वाले कई रोड़े हैं। परियोजना में ऐसी शर्ते जोड़ दी गई हैं जिन्हें पूरा करने में राज्य सरकार कोई रुचि नहीं दिखा रही है। इन शर्तों मेंं नौरादेही और दुर्गावती सेंचुरी को टाइगर रिजर्व क्षेत्र घोषित करने के साथ ही 6000 हेक्टेयर गैर वन भूमि की मांग शामिल है। केन्द्र में यूपीए सरकार के दौरान 19 अप्रैल को 2011 का तत्कालीन वन एवं पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने इस परियोजना के लिए एनओसी देने से इंकार कर दिया था क्योंकि वे इसके दायरे में आ रहे पन्ना टाइगर नेशनल रिजर्व पार्क के प्रभावित होने के खतरे को भांप चुके थे।
परियोजना के क्रियान्वयन के लिए पन्ना टाइगर रिजर्व के स्थान पर नौरादेही सेंचुरी और दुर्गावती सेंचुरी को टाइगर रिजर्व घोषित करने की शर्त रखी गई है। टाइगर रिजर्व बनाने के पक्ष में राज्य सरकार नहीं है इसकी मुख्य वजह यह है कि टाइगर रिजर्व घोषित किए जाने के बाद गैर वानिकी कार्य प्रतिबंधित कर दिए जाते हैं। नौरादेही सेंचुरी पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री गोपाल भार्गव के विस क्षेत्र रेहली में स्थित है। इसे टाइगर रिजर्व घोषित करने के पश्चात उसके दो किमी के एरिया में गैर वानिकी कार्य प्रतिबंधित कर दिए जाएंगे। इससे स्थानीय निवासियों के लिए परेशानी बढ़ेगी। वैसे भी नौरादेही सेंचुरी के फील्ड स्टाफ और गांव वालों के बीच आए दिन विवाद होते रहते हैं। केंद्र सरकार परियोजना से सटे पांच गांवों का विस्थापन करना चाहती है जबकि मप्र सरकार 27 गांवों का विस्थापन चाहती है। परियोजना के लिए 6 हजार हेक्टेयर गैर वन भूमि उपलब्ध कराए जाने की मांग रखी गई है। इतनी गैर वन भूमि सरकार के पास उपलब्ध नहीं है। डाउन स्ट्रीम के केन घडिय़ाल अभ्यारण्य जमीदोज हो जाएगा साथ ही सैंकड़ों वन्य प्राणियों पर संकट के बादल छा जाएंगे।
केन-बेतवा लिंक परियोजना से पन्ना जिले के किसी भी भू-भाग को कोई लाभ नहीं दिया जा रहा है, जबकि 427 किमी लंबी केन नदी का अधिकांश भाग जो केन को विशाल बनाता है, जल आपूर्ति वाला ये क्षेत्र पन्ना जिले में ही स्थित है। केन नदी से प्रति वर्ष अरबों रू. की रेत निकलती है, जो इस परियोजना के मूर्तरूप लेने पर खत्म हो जाएगी, जिससे पन्ना जिले को भारी भरकम राजस्व की हानि होगी। चूंकि पन्ना टाइगर रिजर्व के स्थापित होने में पन्नावासियों ने अत्यधिक बलिदान दिया है और अब जब पन्ना टाइगर रिजर्व बाघों से आबाद हुआ और यहां पर्यटन के विकास की संभावनाएं बढ़ीं तो टाइगर रिजर्व को ही उजाडऩे की साजिश रच दी गई जो इस जिले के साथ घोर अन्याय है।
पन्ना जिले में पेयजल की आपूर्ति बोर, कुंओं व तालाबों के जरिए होती है। इन जल स्रोतों में अत्यधिक कैल्शियम होने के कारण पन्ना की 90 फीसदी जनता उदर रोगों से पीडि़त है। यदि केन नदी का पानी जिस पर पन्नावासियों का पहला हक है, वो पेयजल के लिए उपलब्ध हो जाए तो पन्नावासियों को उदर रोगों से निजात मिल सकती है। मालूम हो कि केन प्रदेश ही नहीं देश की भी इकलौती ऐसी नदी है जो पूरी तरह प्रदूषण से मुक्त है और इसका पानी स्वच्छ और प्राकृतिक लवणों से युक्त है। ऐसे में अगर इस परियोजना का लाभ पन्ना वासियों को भी मिलना चाहिए। अब देखना यह है कि यह योजना आकार ले पाती है या कागजों में सिमट जाएगी।
केन-बेतवा लिंक परियोजना का जोरदार विरोध
केन नदी के नैसर्गिक प्रवाह को तहस-नहस कर पर्यटन पर आधारित एक मात्र आजीविका को बचाने की खातिर लोग सड़क पर उतरे हैं। पन्ना टाइगर रिजर्व के बड़े हिस्से को डुबाने वाली केन-बेतवा लिंक परियोजना के विरोध में अब पन्ना जिले के लोग सड़क पर उतर आए हैं। सैकड़ों की संख्या में लोगों ने हाथों में तख्तियां लेकर इस विनाशकारी परियोजना का विरोध किया। पन्ना शहर की सड़कों में घंटों ये नारा गूंजता रहा, मर जाएंगे और मिट जाएंगे पर केन नदी को बचाएंगे। इस प्रदर्शन की सबसे अहम बात ये रही कि पन्ना राजघराने की राजमाता दिलहर कुमारी ने स्वयं हाथ में तख्ती लेकर विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व किया।
प्रस्तावित ढोढऩ बांध चूंकि पन्ना टाइगर रिजर्व के कोर एरिया में आता है जो बाघों का प्रिय विचरण व रहवास स्थल है। इसी जगह पर अति दुर्लभ लंबी चोंच वाले गिद्ध भी रहते हैं। पार्क का ये अति महत्वपूर्ण हिस्सा डूब जाएगा। बांध निर्माण के बाद पार्क का बफर एरिया निश्चित ही कोर एरिया में परिवर्तित होगा। जिसके परिणाम स्वरूप पन्नावासियों को फिर विस्थापन का दंश झेलना पड़ेगा। पन्ना टाइगर रिजर्व के कड़े नियमों व बफर क्षेत्र के कारण पन्ना जिले के लोगों को मौजूदा समय अनेकों मुसीबतें झेलनी पड़ती हैं।
-धर्मेन्द्र सिंह कथूरिया