31-Aug-2017 09:18 AM
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देश में आध्यात्म की आड़ में लोगों को साधकर कई बाबा अपना धंधा चला रहे हैं। आज देश में बाबाओं के धर्म का धंधा खरबों रुपए का है। शोहरत और संपत्ति आने के बाद बाबा आध्यात्म की राह भटककर पथभ्रष्ट हो जाते हैं। ऐसे ही डेरा सच्चा सौदा के प्रमुख गुरमीत राम रहीम पर रेप का आरोप, आसाराम और उनके बेटे नारायण साईं पर रेप का आरोप तो नित्यानंद स्वामी पर भी यौन शोषण के आरोप आध्यात्म और धर्म को शर्मसार करने के लिये काफी हैं, लेकिन ये विडंबना है कि इसके बावजूद भक्तों की अंधआस्था इनके खिलाफ होने वाली कार्रवाई पर हिंसक हो जाती है।
डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत राम रहीम को साध्वी से रेप मामले में दोषी करार दिए जाने के बाद उसके समर्थक रूपी गुंडे पंजाब और हरियाणा में कहर बरपाने लगे। तीन दर्जन से अधिक लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया। पत्रकारों से लेकर पुलिस तक पर राम रहीम के समर्थकों ने लाठी-डंडों के साथ पत्थर से वार किए। वहीं आरोप लगते रहे कि राज्य सरकार के आदेश के बाद भी हाईकोर्ट ने एक्शन लेने में तत्परता नहीं दिखाई। ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि आखिर क्या वजह है कि गुरमीत राम रहीम और उसके समर्थकों की हिम्मत इतनी कैसे बढ़ गई? दुनिया भर में लाखों समर्थकों का दावा करने वाले डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत राम रहीम सलाखों के पीछे हैं। बड़े-बड़े आरोपों को धन-बल के दम पर कुचलने वाले राम रहीम और उनके समर्थकों को इसकी तनिक भी संभावना नहीं थी कि बाबा को जेल हो जाएगी। आपको जानकर ताज्जुब होगा कि रेप पीडि़ता साध्वी की तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को भेजी गई एक गुमनाम चि_ी की वजह से राम रहीम की करतूत दुनिया की नजरों में आई। उसी चि_ी के आधार पर हाईकोर्ट ने स्वत: संज्ञान लिया और राम रहीम के खिलाफ सीबीआई जांच कराई।
15 साल तक इस केस को कोर्ट में लडऩा कोई आसान बात नहीं है। इस दौरान साध्वी को जान से मार देने की धमकी दी जा रही थी लेकिन इस सब की परवाह न करते हुए इस साध्वी ने केस लड़ा और राम रहीम को जेल पहुंचाने में कामयाब रही। सिर्फ साध्वी नहीं उस पत्रकार के परिवार की मेहनत भी रंग लाई है जो 15 सालों से बाबा के खिलाफ केस लड़ रहा है। दरअसल, जब बड़े से बड़े अखबार बाबा के खिलाफ लिखने के लिए डरते थे तब सिरसा के लोकल अखबार पूरा सच के पत्रकार रामचंद्र छत्रपति ने बाबा के खिलाफ साध्वी के द्वारा लिखे गए खत को अपने अखबार के पहले पन्ने पर जगह दी थी, लेकिन कुछ महीनों के अंदर राम चंद्र को गोली मारी गई। पत्रकार का परिवार मदद के लिए भटकता रहा, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। फिर हाई कोर्ट में अपील के बाद इस केस को सीबीआई को हस्तांतरित कर दिया गया।
दस साल तक इस केस के बारे में छानबीन करने के बाद 2014 में सीबीआई ने अपनी रिपोर्ट कोर्ट को सौंपी थी। सबसे अच्छी बात यह है कि सीबीआई किसी के दवाब में नहीं आई और सही रिपोर्ट कोर्ट में पेश की। हाई कोर्ट की भी जितनी तारीफ की जाए कम है। अगर हाई कोर्ट ने इस केस की छानबीन के लिए ऑर्डर नहीं दिया होता तो यह केस किसी दूसरे केस की तरह फाइल में दब कर रह जाता। अंधभक्तों को इस घटनाक्रम से सबक लेने की जरूरत है।
प्रत्याशियों की हार-जीत तय करता है राम रहीम
रो-रोकर बाबा जज के सामने गिड़-गिड़ा रहे थे पर इस जघन्य अपराधी को जज ने 20 साल की सजा सुना दी। सूत्र बताते हैं कि राम रहीम कहीं अंदर ही अंदर अपनी दूसरी सेना तैयार कर रहा है। इंटेलीजेंस रिपोर्ट में डेरा में देश द्रोही गतिविधियां चल रही थीं। अब आगे देखना है कि बाबा राम रहीम के तथाकथित आश्रम में क्या-क्या गतिविधियां चल रही थी उस पर सरकार की तेड़ी नजर है। बाबा को ताकतवर बनाने में राजनेताओं का भी हाथ है। हरियाणा और पंजाब में पिछले दो दशक की राजनीति पर गौर करने पर पता चलता है कि गुरमीत राम रहीम ने अपने समर्थकों के बल पर राजनीति में सीधी दखल दे रहा था। पंजाब के मालवा क्षेत्र में राम रहीम के समर्थकों की संख्या बल इतनी अधिक है कि उसी से हार-जीत तय होती है। आलम यह है कि इस इलाके में विभिन्न दलों के प्रत्याशियों के चुनाव में भी राम रहीम के डेरा की चलती है। पंजाब विधानसभा में 117 सीटें हैं, जिसमें से 35 मालवा और इसके आस-पास के इलाकों की हैं। जानकार कहते हैं कि इन 35 सीटों पर डेरा सच्चा सौदा के अनुयायी निर्णायक भूमिका में होते हैं। डेरा प्रमुख के एक इशारे पर अनुयायी किसी खास उम्मीदवार को ज्यादातर वोट मिल जाते हैं। साल 2017 के पंजाब विधानसभा चुनाव पर गौर करें तो विभिन्न दलों के 44 उम्मीदवार गुरमीत राम रहीम से मिलने पहुंचे थे और उससे समर्थन की गुजारिश की थी। गुरमीत राम रहीम पंजाब और हरियाणा में साल 2002 से लेकर हालिया चुनाव तक अलग-अलग पार्टियों को सपोर्ट करता रहा है। यूं कहें कि राम रहीम राजनीति हवा को भांपकर डेरा के समर्थन का ऐलान करता है।
- विशाल गर्ग