31-Aug-2017 09:16 AM
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सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार सरदार सरोवर बांध के डूब प्रभावित क्षेत्र में आने वाले 192 गांवों के लोगों के पुनर्वास हो जाने का दावा किया है, लेकिन हकीकत यह है कि आज भी लोग पुनर्वास केंद्रों में नहीं पहुंचे हैं।अधिकारियों का कहना है कि ज्यादातर लोग अपने घर छोड़कर सरकार द्वारा तय पुनर्वास स्थलों पर मिले प्लॉट पर रहने गए नहीं, इसलिए वहां बाकी सुविधाएं भी आधी-अधूरी फैली हुई हैं। अफसरों की दलील है कि बसने आते तो इन स्थलों का विकास भी धीरे-धीरे होता रहता। ज्ञातव्य है कि सरकार ने पुनर्वास के काम पर 15 सौ करोड़ रुपए खर्च किए हैं।
बड़वानी और धार क्षेत्र में बने पुनर्वास केंद्रों पर अव्यवस्था की भरमार है। इसलिए जो लोग यहां गए थे उनमें से कई अपने पुराने मकान में लौट आए हैं। कुछ लोग ऐसे भी हैं जो पुनर्वास केंद्रों पर रहने की बजाए पास ही अपना डेरा जमा लिया है। विस्थापितों में एक तबका ऐसा था, जिसने पुनर्वास का कोई पैकेज मंजूर नहीं किया। ये लोग सुप्रीम कोर्ट तक लड़े। इन्हें 60 लाख रुपए का फाइनल पैकेज मिल गया। इस बड़ी रकम ने पहले से असंतुष्ट बाकी विस्थापितों की नाराजगी बढ़ा दी। सस्ते में निपटने की सोच के साथ वे खुद को ठगा हुआ महसूस करने लगे। हालांकि 60 लाख की रकम के पात्र सिर्फ 745 लोग ही हैं! तो बड़वानी-धार के जितने गांवों में जाइए-परेशानियों की कुछ एक जैसी श्रेणियां सामने होंगी। हजारों लोग अपनी आपबीती सुनाएंगे, जिनमें कुसूरवार सिर्फ सरकार होगी। जैसे-घर के पुरुषों को तो उनके हक मिले, मगर मां-बहनों के नाम नदारद हैं।
वयस्क बेटों को छोड़ दिया गया। अवयस्क खातेदारों की नहीं सुनी गई। जमीन के बदले जमीन का क्या हुआ? एक गांव के लिए तीन जगहों पर प्लॉट दे दिए गए। जहां प्लॉट दिए, वहां की जमीन ही अधिगृहीत नहीं है। नदी के दोनों किनारों की हजारों सिंचाई की मशीनें शिफ्ट करने के वैकल्पिक इंतजाम नहीं किए गए। फर्जी रजिस्ट्री के घोटाले ने सालों पहले एनवीडीए के मैदानी अफसरों और दलालों के कारनामे उजागर किए। लोगों का कहना है कि सरकार ने बिना तैयारी के उन्हें उनके घर से भगाना शुरू कर दिया है। उनका कहना है कि सरकार हमें विस्थापित करने पर तुली हुई है, लेकिन हम जाएं तो जाएं कैसे। न तो वहां रोजगार के साधन हैं और न ही अन्य सुविधाएं।
आम आदमी पार्टी के प्रदेश संयोजक आलोक अग्रवाल कहते हैं कि सरदार सरोवर और दूसरे बड़े बांधों की तरह बरगी के विस्थापितों को भी बांध में पानी भरने के पहले तरह-तरह के सब्जबाग दिखाए गए थे। उन दिनों जमीन और संपत्ति के लिए नकद मुआवजे के प्रावधान थे। यह मुआवजा इलाके में पिछले तीन साल में हुई जमीन की खरीद-फरोख्त की कीमतों के औसत के आधार पर निकाला जाता था। बरगी में भी विस्थापितों को उनकी डुबोई गई जमीन के बदले 500 से 9940 रुपए एकड़ के हिसाब से मुआवजा बांट दिया गया। पीढिय़ों के डूबते घर छोड़ जब वे आसपास की ऊंची जमीन, पहाडिय़ों पर बसने गए तो वन विभाग ने उन्हें अतिक्रामकÓ का आपराधिक दर्जा भी दे दिया। इसका डर अब सरदार सरोवर बांध प्रभावितों को भी है। विस्थापित गांवों में आज तक सड़क, बिजली, स्कूल नहीं हैं। ऐसे में कौन इन गांवों की ओर जाएगा।
उधर कांग्रेेस प्रदेश अध्यक्ष अरुण यादव का कहना है कि सरकार ने केवल सुप्रीम कोर्ट का मान रखने के लिए जैसे-तैसे विस्थापन का खाका खींच दिया है। इसमें जमकर भ्रष्टाचार हुआ है। लाखों लोगों की जिंदगी नारकीय बना दी गई है। जिस परियोजना से मप्र को कोई लाभ नहीं उसके लिए लोगों की बलि क्यों?
-अरविंद नारद