31-Aug-2017 09:06 AM
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सरकार ने राजस्व मामलों को लेकर सख्ती क्या बरती उसका खजाना भरने लगा। सरकार के सख्त कदम से दो माह में डायवर्सन से 150 करोड़ रुपए सरकार के खजाने में आए हैं। पिछले 37 साल में इतना पैसा कभी नहीं आया है। दरअसल किसान आंदोलन के बाद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने किसानों से जुड़े राजस्व मामलों के निराकरण पर जोर दिया है।
मध्यप्रदेश के प्रशासनिक मुखिया बसंत प्रताप सिंह से लेकर राजस्व महकमे के छोटे और बड़े अफसर आजकल राजस्व मामलों की पेंडेंसी दूर करने में जुटे हुए हैं। आलम यह है कि मुख्य सचिव को भी जिलों में लंबित मामलों को निपटाने के निर्देश देने के लिए मंत्रालय के बाहर निकल कर संभागीय बैठकें लेनी पड़ रही हैं। सवाल यह है कि बंटवारे और नामांतरण के मामले निपटाने की इतनी हड़बड़ी क्यों है? कहीं राजस्व संबंधी मामले पेंडिंग मिलने पर कलेक्टरों को उल्टा टांगने की मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की गर्जना तो इसका कारण नहीं? यदि ऐसा है तो क्या वाकई इतने छोटे मामलों में इस बार अफसर नपेंगे?
रेवेन्यू से जुड़े मामलों में अचानक परवान चढ़ी सक्रियता की वजह भरपूर सहायता और सुविधाओं के दावे के बीच अचानक उपजा किसान आंदोलन है। इसकी आंच झेल चुकी सरकार ने किसान और गांव वालों को खुश करने के जो उपाय तलाशे हैं उनमें एक उपाय राजस्व संबंधी मामलों का निराकरण भी है, लेकिन यह सक्रियता प्रदेश सरकार, उसके कामकाज के तरीके और पूरी अफसरशाही को कटघरें में खड़ा करती है।
यदि मुख्यमंत्री धमकी नहीं देते तो क्या हजारों-लाखों बंटवारे और नामांतरण के अविवादित मामले और कई साल तक लटके रहते? क्या कलेक्टर, अनुविभागीय अधिकारी, तहसीलदार और नायब तहसीलदार अपने कार्यक्षेत्र के ऐसे मामलों की सुनवाई नहीं कर रहे थे, या फिर उनकी रूचि इन प्रकरणों में नहीं है, अथवा सरकार के दीगर कामों के बीच उन्हें इनके लिए समय ही नहीं मिल रहा? क्या हर मंगलवार को सभी दफ्तरों में होने वाली जनसुनवाई महज रस्मी हो गई है, जिनमें किसान और आम आदमी अपने इन्हीं प्रकरणों के निराकरण नहीं होने की शिकायत लेकर आता है। मुख्यमंत्री के जनशिकायत निवारण के फोरम समाधान ऑनलाइन और सीएम हेल्पलाइन भी इसके लिए कारगर साबित नहीं हो रहे! और तो और हर महीने मुख्य सचिव द्वारा की जाने वाली परख वीडियो कांफ्रेंसिंग एवं इसके इतर होने वाली जिलों की समीक्षाएं भी बेकार साबित हो रही हैं। आम जनता के दु:ख दर्द दूर करने और सुशासन देने के तमाम उपायों के बावजूद मुख्यमंत्री को भाजपा के कार्यक्रम में राजस्व कोर्ट के लंबित मामलों को लेकर कलेक्टरों को उल्टा टांगने की बात कहने की जरूरत अगर पड़ी है तो साफ है पूरे सिस्टम में कम-से-कम इस मामले में तो खोट है। ऐसा नहीं होता तो मुख्य सचिव को क्यों सिर्फ राजस्व प्रकरणों को लेकर संभाग-संभाग भटकना पड़ता। मुख्य सचिव संभागों के लिए निकले भी तब जब मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने उन्हें इसके निर्देश दिए, अन्यथा निजाम जैसा चलता है वैसा ही चलता रहता (खुद मुख्यमंत्री ने एक से अधिक मौकों पर मुख्य सचिव को संभागों में जाकर राजस्व मामलों पर बैठक करने के निर्देश देने की जानकारी दी है)। मुख्यमंत्री को इसके बाद भी भरोसा नहीं था, इसीलिए विभाग में प्रमुख सचिव और सचिव होने के बावजूद अपने सचिव हरिरंजन राव को दूसरे राजस्व सचिव की भी जिम्मेदारी देकर ब्यूरोक्रेसी को चौंका दिया। पार्टी बैठक के बाद मुख्यमंत्री ने अपनी पहली रेडियो वार्ता दिल से में तीन माह बाद अविवादित नामांतरण और बंटवारे का प्रकरण बताने वालों को ईनाम देने की घोषणा भी कर दी। यानी सीएम के रडार पर अब राजस्व कोर्ट के मामले प्रमुखता से हैं, लेकिन सवाल फिर वही है कि प्रशासनिक अफसरों को क्यों बार-बार उनके काम की याद मुख्यमंत्री को दिलानी पड़ती है। यदि मुख्यमंत्री न बोलें तो प्रशासन अपना काम नहीं करेगा? मुख्यमंत्री के इन निदेर्शों से यही इंगित होता है। लगातार सत्ता के 14 साल पूरे कर रहे भाजपा राज पर आरोप भी यही लगते हैं कि सरकार अफसर चला रहे हैं। इस आवरण को तोडऩे का जतन गाहे-बगाहे मुख्यमंत्री ऐसी सख्ती दिखा कर करते हैं। फिलहाल तीन माह की डेडलाइन बीतने के बाद ही पता चलेगा कि असलियत क्या है, लेकिन इस बीच राजस्व विभाग के अफसर दावा कर रहे हैं कि तीन माह में पुरानी पेंडेंसी खत्म कर दी जाएगी।
मुख्यमंत्री की चेतावनी का मैदानी अफसरों पर भी असर दिखने लगा है। यही कारण है कि आज सभी संभागायुक्त अपने-अपने स्तर पर जिला अधिकारियों के साथ राजस्व मामलों की समीक्षा कर रहे हैं। उधर मुख्य सचिव बीपी सिंह ने राजस्व अधिकारियों को सख्त हिदायत दी कि दीगर काम के बोझ का बहाना बताकर मूल कार्य की उपेक्षा न करें। यदि राजस्व कोर्ट में एक भी प्रकरण बिना आरसीएमएस पोर्टल के दर्ज किया गया तो संबधित राजस्व अधिकारी उसी समय निलंबित कर दिया जाएगा। दरअसल मुख्य सचिव की समीक्षा बैठकों में यह तथ्य सामने आ रहा है कि राजस्व न्यायालय सही ढंग से काम नहीं कर रहे हैं। अभी भी पूरे राजस्व प्रकरण दायरा पंजी और आरसीएमएस पोर्टल पर दर्ज नहीं हो रहे हैं। सीएस ने सभी जिला कलेक्टर, एडीएम, एसडीएम, तहसीलदार व नायब तहसीलदारों को स्पष्ट किया कि केन्द्र व राज्य शासन दोनों का फोकस राजस्व विभाग पर है। विभाग की छवि सुधारने के लिए राजस्व अधिकारी कार्यप्रणाली में सकारात्मक बदलाव लाएं। आमजन की समस्याओं के निराकरण के लिए कारगर पहल करें। जब भी कोर्ट की कुर्सी पर बैठे तो अपनी अंतरात्मा की आवाज सुने व प्रकरणों में न्याय करें।
मुख्यमंत्री और मुख्य सचिव की सतर्कता के बाद भी यह देखा जा रहा है कि प्रदेश के अधिकांश जिलों में पदस्थ कलेक्टर लापरवाह हैं और उनका अपने मैदानी अमले पर कंट्रोल नहीं है। सरकार की तमाम कोशिश के बाद भी एक माह पहले लांच किए गए गिरदावरी मोबाइल एप में कलेक्टर दस फीसदी डाटा भी फीड नहीं करा सके हैं। अनूपपुर, भिंड, विदिशा, श्योपुर, सीहोर और हरदा में तो अब तक के काम की परफार्मेंस जीरो प्रतिशत आई है। ज्ञातव्य है कि राज्य शासन द्वारा राजस्व विभाग के अफसरों की कारस्तानियों से परेशान होने वाले भूमि स्वामियों, किसानों को राहत देने तथा सरकारी कामकाज में सरलता लाने के लिए एक माह पहले गिरदावरी मोबाइल एप लांच किया गया था, लेकिन अफसरों की निष्क्रियता के कारण यह एप भी कारगर सिद्ध नहीं हो रहा है। उधर मुख्यमंत्री और मुख्य सचिव पूरी तरह संकल्पित हैं कि दो माह के अंदर राजस्व मामलों को पूरी तरह निपटा दिया जाएगा। यानी सितम्बर में सारे मामले निपट जाएंगे और एक अक्टूबर से शुरू हो रहे राजस्व वर्ष में नई शुरूआत होगी।
वेब जीआईएस ने बिगाड़ा खेल
प्रदेश में राजस्व मामलों में हुई गड़बड़ी वेज जीआईएस के कारण और बिगड़ी है। अफसरों ने बिना सोचे-समझे प्रदेश में वेब जीआईएस के माध्यम से राजस्व मामलों की निगरानी कराने का कदम उठाया था। इसमें गड़बड़ी सामने आने के बाद 25 जिलों के कलेक्टरों ने तो इसे सिरे से नकार दिया था। दरअसल वेब जीआईएस की शुरूआत ही घोटाले से हुई थी। एक कंपनी को लाभान्वित करने के लिए अफसरों ने वर्ष 2012 से 17 तक के लिए 150-200 करोड़ रुपए का पैमेंट वेब जीआईएस में कर दिया। जबकि नियमानुसार 50 करोड़ से अधिक का जो भी मामला होता है उसे कैबिनेट में ले जाया जाता है, लेकिन अफसरों ने ऐसा नहीं किया। इससे सरकार को करोड़ों रुपए की राजस्व हानि हुई है।
डायवर्सन में वर्षों से होता रहा घपले पर घपला
जमीनों का डायवर्सन एडीएम कोर्ट से लेकर बिल्डरों, नेताओं के लिए कमाई का जरिया बना हुआ था। आलम यह था कि बड़े-बड़े भूखण्डों पर निर्माण करवाकर बिल्डर परमीशन ले लिया करते थे, लेकिन डायवर्सन का पैसा जमा नहीं करते थे। आलम यह है कि प्रदेशभर में कई हाउसिंग प्रोजेक्ट बदहाली की कगार पर पहुंच गए हैं, लेकिन अभी तक उनके डायवर्सन का पैसा जमा नहीं हुआ है। कइयों ने तो नजूल लैंड ले लिया है और उसका मनमानी से उपयोग कर रहे हैं। प्रदेश सरकार में पूर्व मंत्री रहे जबलपुर के एक नेता ने तो अरबों रुपए का घोटाला किया है। दरअसल एडीएम कोर्ट के साथ मिलीभगत कर डायवर्सन में मनमानी का खेल चलता रहा। इस कारण पिछले 37 साल में सरकार को बड़ी राजस्व हानि हुई है, लेकिन अब उम्मीद जगी है कि घोटालेबाजों का सारा खेल उजागर होगा और सरकार उनसे वसूली करेगी।
14 प्वाइंट के एजेंडे पर हो रही समीक्षा
राजस्व विभाग को पटरी पर लाने के लिए मुख्य सचिव बीपी सिंह संभागवार समीक्षा कर रहे हैं। 14 प्वाइंट पर वे संभागों में राजस्व मामलों की समीक्षा कर रहे हैं। राजस्व का हर प्रकरण रेवेन्यू कोर्ट मैनेजमेंट सिस्टम (आरसीएमएस) पर दर्ज करें। अगले दौरे में किसी भी कोर्ट में कोई प्रकरण बगैर दर्ज किया मिला तो अधिकारी की छुट्टी तय है। सीएस द्वारा नामांतरण, बंटवारा, सीमांकन, लीज नवीनीकरण, कार्यों को पारदर्शी बनाने के लिए प्रकरण आरसीएमएस पर दर्ज करने पर जोर दिया जा रहा है। मुख्य सचिव जिस संभाग में जाते हैं वहां 14 प्वाइंट पर समीक्षा कर अफसरों को आवश्यक निर्देश देते हैं। यही नहीं विभाग की कार्यप्रणाली को तेज करने के लिए सरकार कई और सुधार कर रही है। इसी कड़ी में 42 तहसीलों के तहसीलदारों को कार्यालय प्रमुख बना दिया गया है। इससे तहसीलदार निर्णय लेने की स्थिति में आ गए हैं। राजस्व से संबंधित मामलों को यह अफसर अपने स्तर पर निर्णय लेकर उसका समाधान कर सकेंगे। ज्ञातव्य है कि प्रदेश में 45 प्रतिशत पटवारियों और 40 प्रतिशत तहसीलदारों की कमी है। सरकार इस कमी को पूरा करने में जुटी हुई है। यही नहीं मुख्यमंत्री ने समाधान ऑनलाइन में अब जनशिकायतों के साथ ही लोकसेवा गारंटी और सीएम हेल्पलाइन के प्रकरणों संबंधी शिकायतें सुनने का भी फैसला किया है। इससे अफसर ताबड़तोड़ मामलों को निपटाने में जुट गए हैं।
-कुमार राजेंद्र