30-May-2013 06:55 AM
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90 के दशक की बात है एक महत्वपूर्ण मैच में इमरान खान को भनक लगती है कि उनकी टीम के कुछ खिलाड़ी मैच फिक्स कर चुके हैं और उन्होंने हारने की तैयारी कर ली है। इमरान खान तुरंत खिलाडिय़ों की मीटिंग बुलाते हैं, सबको सख्ती से चेतावनी देते हैं कि कल के मैच में यदि किसी को कमजोर खेलते देखा तो उसका भविष्य चौपट हो जाएगा वह दोबारा पाकिस्तान के लिए नहीं खेल पाएगा। इमरान की चेतावनी रंग लाती है पाकिस्तान अगले दिन मैच जीत जाता है।
किंतु इस एक घटना ने आज से 23 वर्ष पहले फिक्सिंग के मायाजाल को उजागर कर दिया था। इससे पहले भी फिक्सिंग चलती थी। दरअसल एक दिवसीय क्रिकेट के इजाद होने के साथ ही फिक्सिंग इजाद हो गई थी। मुंबई में सट्टे का इतिहास छह दशक पुराना है। घुड़दौड़ से लेकर क्लब क्रिकेट तक फिक्सिंग नई नहीं है। फर्क सिर्फ इतना है कि पहले एक जमाने में कुछ खास लोगों तक सीमित रही फिक्सिंग आज हर शहर हर गांव और गली-मोहल्लो में फैल चुकी है। दिल्ली पुलिस ने तो फिक्सिंग के महासागर की दो-चार छोटी मछलियों को शिकंजे में लिया है, लेकिन इस पूरे फिक्सिंग तंत्र में पूर्व खिलाडिय़ों से लेकर अंडर वल्र्ड और व्यापार जगत की जो गठजोड़ है उसे समझना बड़ा पेंचीदा है। भले ही हर मैच फिक्स न होता हो लेकिन यह सच है कि हर मैच पर सट्टा खेला जाता है। देश के कस्बे-कस्बे में खेले जा रहे इस सट्टे को नियंत्रित करने वाले हमारे देश में नहीं है।
बल्कि यह सट्टा आपरेटर इत्मीनान से विदेशों में बैठकर खरबों रुपए का सट्टा खिलाते हैं। अनुमान है कि आईपीएल के एक-एक मैच पर 10-10 हजार करोड़ रुपए का सट्टा लगता है। आईपीएल के जनक ललित मोदी ने जब यह कहा कि क्रिकेट में सट्टे को वैध कर देना चाहिए तो बड़ा बवाल मचा लेकिन मोदी के इस कथन की गहराई समझने की आवश्यकता है। सट्टा रोकना भारतीय सुरक्षा

एजेंसियों के बस की बात ठीक उसी तरह नहीं है जिस तरह वेश्यावृत्ति रोकना संभव नहीं है। जिस प्रवृत्ति को रोका नहीं जा सकता उसे लायसेंस या अन्य तरीके से वैध करना ज्यादा नीति संगत जान पड़ता है क्योंकि इससे सरकारी आमदनी का एक रास्ता तो खुलता ही है। यूं नैतिकता के पहरेदार सट्टे को अन्य बुराइयों की तरह खराब मानते हैं लेकिन सवाल यह है कि उनके खराब मानने से क्या यह बुराइयां रुक जाएंगी। गहराई से समझा जाए तो सट्टे को लीगलाइज करके कम से कम खिलाडिय़ों को बिकने से रोका जा सकता है। क्योंकि तब पुलिस की नजर कानूनी तौर पर खिलाडिय़ों पर ज्यादा रखी जा सकती है। विदेशों में फुटबाल के दौरान सट्टा आम बात है। वहां क्लब खिलाडिय़ों को खरीदते हैं लेकिन सट्टेबाज खिलाडिय़ों के पास फटक भी नहीं पाते। उन्हें क्लबों द्वारा ही इतना पैसा मिलता है कि पैसे की प्रचुरता सट्टे के जंजाल में फंसने से रोक देती है। भारत में जहां क्रिकेट धर्म बन चुका है प्राय: हर शहर में प्रतिभाशाली खिलाडिय़ों की भरमार है जिन्होंने अपना जीवन क्रिकेट के लिए अर्पित कर दिया है। पर इन प्रतिभाशाली खिलाडिय़ों में से सभी को मौका नहीं मिल पाता कि वे राष्ट्रीय स्तर पर खेलकर अपना भविष्य संवार सके। इसीलिए पैसे का ग्लैमर उन्हें खींच लेता है। श्रीसंत इसका ताजा उदाहरण है। जिसे पैसे की चकाचौंध ने भटकने पर मजबूर कर दिया है।
अंकित चव्हाण और अजित चंडीला ज्यादा ख्याति प्राप्त खिलाड़ी नहीं थे लेकिन पैसा कमाने की लालसा उन्हें उनके रास्ते से अलग ले गई। लेकिन क्रिकेटर ही नहीं गुरुनाथ मयप्पन जैसे खेल मालिक और प्रशासक भी इस जाल में फंस रहे हैं। क्रिकेट की दुनिया में रातों-रात तरक्की पाने और अमीर बनने के सपने घरों-घर पलने लगे हैं। महानगरों में तो ऐसे बहुत से परिवार मिल जाएंगे जहां अभिभावकों ने अपने बच्चों को क्रिकेट की कोचिंग दिलाने के लिए घर बार तक बेच दिए और अपना सबकुछ न्यौछावर कर दिया। इन बच्चों पर परिवार का अत्यधिक दबाव है। यह दबाव उन्हें पथभ्रष्ट कर रहा है। दिल्ली पुलिस जो कि बलात्कार के जघन्य प्रकरणों के बाद आलोचना का सामना कर रही थी, क्रिकेट फिक्सिंग के मामले में कुछ ज्यादा ही सक्रियता दिखा रही है। दिनों-दिन नए खुलासे हो रहे हैं। बताया जा रहा है कि किस तरह सटोरियों ने हमारे देश के प्रतिभाशाली खिलाडिय़ों को अपनी उंगली पर नचाया। उन्हें लड़कियां सप्लाई की गई, उनकी ब्लू फिल्म (कथित रूप से) बनाई गई। उन्हें ब्लैकमेल किया गया। पैसों का लालच दिया गया और बाद में वे हंसते-हंसते कुर्बान हो गए सटोरियों के लिए। सट्टे का यह जाल क्रिकेट को घुन की तरह नष्ट करने पर तुला हुआ है। सटोरिए सबसे पहले क्रिकेट मैचों के बाद होने वाली पार्टियों के माध्यम से क्रिकेटरों के नजदीक पहुंचते हैं।
इन नजदीकियों में उनका माध्यम कोई भी बन सकता है। वह बड़ा बिजनेस मैन हो सकता है, क्रिकेटर का निकट दोस्त हो सकता है, रिश्तेदार भी हो सकता है, कोई क्रिकेट प्रशासक हो सकता है, कोई वरिष्ठ या पूर्व खिलाड़ी हो सकता है, काल गर्ल हो सकती है या कोई महिला मित्र हो सकती है। श्रीसंत, चंडीला और चव्हाण को अपने जाल में फांसने वालों की लंबी सूची है। हाल ही में जो फिक्सिंग सामने आई है उसमें दो अभिनेत्रियों के शामिल होने की बात की जा रही है। इससे पता चलता है कि फिक्सिंग सुनियोजित तरीके से की जाती है। आईपीएल में राजस्थान बनाम पुणे, राजस्थान बनाम मुंबई, राजस्थान बनाम पंजाब सहित कई मैच संदिग्ध हैं।
यदि ध्यान से देखा जाए तो कुछ अप्रत्याशित परिणाम वाले मैचों में फिक्सिंग का शक स्पष्ट दिखाई दे रहा है पर भारतीय कानून शक के आधार पर कार्रवाई करने की इजाजत नहीं देता कुछ ठोस सबूत जुटाने होंगे। सवाल यह है कि दिल्ली पुलिस के पास क्रिकेटरों और सटोरियों की बातचीत के अलावा फिक्सिंग को प्रमाणित करने के अलावा सबूत कौन से हैं क्योंकि दिल्ली में इससे पहले भी क्रिकेट की फिक्सिंग के मामले सामने आ चुके हैं। पुलिस की कार्रवाई एक सीमा तक ही मददगार साबित हो सकती है फिक्सिंग को लेकर भारत में जो कानून बने हुए हैं वे उतने प्रभावशाली नहीं हैं। इसीलिए अब इस फिक्सिंग कांड में कितने चेहरे बेनकाब होंगे और उन बेनकाब चेहरों में से कितनों को सजा हो सकेगी यह कहना फिलहाल संभव नहीं है।