कागजों से बाहर आएगी मेट्रो
31-Aug-2017 08:33 AM 1234848
पिछले 10 सालों से कागजों पर दौड़ रही भोपाल-इंदौर मेट्रो ट्रेन अब धरातल पर आ सकती है। वह इसलिए की इस बार केंद्र सरकार मेट्रो प्रोजेक्ट को लेकर सक्रिय है। अब प्रदेश सरकार मेट्रो ट्रेन प्रोजेक्ट के लिए एशियन डेवलपमेंट बैंक (एडीबी) से कर्ज लेगी। केंद्र की नई समग्र मेट्रो नीति को मंजूरी मिलते ही भोपाल और इंदौर मेट्रो के लिए रास्ता साफ हो गया है। मप्र की मेट्रो परियोजनाओं को अभी तक वित्तीय सहायता नहीं मिल पा रही थी, नई नीति में मेट्रो प्रोजेक्ट के लिए निजी निवेश और केंद्रीय सहायता का प्रावधान किया गया है। इस नीति से भोपाल और इंदौर मेट्रो का काम शुरू करने के लिए मप्र को काफी मदद मिलेगी। भोपाल, इंदौर समेत देश के 13 शहरों में मेट्रो रेल चलाने की योजना है। नई नीति में राज्यों को ज्यादा अधिकार देने के साथ निजी भागीदारी को बढ़ावा दिया गया है। वहीं नीति में मौजूदा आठ फीसदी फाइनेंशियल इंटरनल रेट ऑफ रिटर्न के बजाय 14 फीसदी का पैमाना तय किया है। राज्यों को प्रोजेक्ट रिपोर्ट में बताना होगा कि स्टेशनों पर कमर्शियल प्रॉपर्टी का विकास कैसे होगा तथा विज्ञापन आदि से कैसे कमाई की जाएगी। उन्हें किराया निर्धारण के लिए स्वतंत्र प्राधिकरण की स्थापना भी करनी होगी। इसके अलावा संचालन और रखरखाव में निजी भागीदारी के भी तीन मॉडल वीजीएफ, 10 फीसदी एकमुश्त अनुदान तथा 50 फीसदी इक्विटी भागीदारी होंगे। समूची मेट्रो रेल प्रणाली के संचालन के लिए सभी राज्यों को एकीकृत मेट्रोपोलिटन ट्रांसपोर्ट अथॉरिटी का गठन भी करना होगा। उल्लेखनीय है की मानसून सत्र में बाबूलाल गौर ने इंदौर-भोपाल मेट्रो प्रोजेक्ट में हो रही ढिलाई को लेकर अपनी ही सरकार को कठघरे में खड़ा कर दिया था। उसके बाद शासन स्तर पर एक बार फिर मेट्रो प्रोजेक्ट को लेकर हलचल शुरू हुई है। पिछले 10 सालों से शिवराज सरकार मेट्रो प्रोजेक्ट के ढोल पीटती रही है और अभी तक कागजों में ही ये ट्रेन दौड़ रही है। पहले चरण में इंदौर और भोपाल के लिए मेट्रो प्रोजेक्ट तैयार किया गया, जिसका काम 2 साल पहले ही मैदानी रूप से शुरू हो जाना था। दिल्ली मेट्रो रेल कार्पोरेशन ने 4 साल पहले ही फिजिबिलिटी सर्वे कर रिपोर्ट शासन को सौंप दी, मगर लोन की जुगाड़ नहीं हो सकी। पहले चरण के लिए इंदौर मेट्रो प्रोजेक्ट पर 11 हजार करोड़ रुपए की राशि खर्च होने का अनुमान लगाया गया और 30 किलोमीटर का रुट भी तय किया, जिसमें सुपर कॉरिडोर से लेकर सुखलिया, अन्नपूर्णा, पलासिया, विजय नगर जैसे क्षेत्र शामिल किए गए और लाइट मेट्रो का संचालन प्रस्तावित किया गया है। कंसल्टेंट की नियुक्ति से लेकर कई कार्य अब किए जा रहे हैं। विधानसभा में पूर्व मुख्यमंत्री और पूर्वी काबिना मंत्री बाबूलाल गौर, जिन्होंने इंदौर-भोपाल मेट्रो प्रोजेक्ट में महती भूमिका निभाई, अब इसमें लेटलतीफी पर शासन से खफा नजर आए और उन्होंने सवालों के माध्यम से सरकार को कठघरे में खड़ा किया और कांग्रेस ने भी मेट्रो प्रोजेक्ट के नाम पर शासन द्वारा की जा रही हवाबाजी की पोलपट्टी खोली। उसके बाद मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान की ओर से बयान आया कि अब जल्द ही इंदौर-भोपाल मेट्रो प्रोजेक्ट पूरे होंगे, वहीं जबलपुर-ग्वालियर के लिए प्रोजेक्ट तैयार किया जा रहा है। अब सरकार का दावा है कि अगले विधानसभा चुनाव के पहले ही मेट्रो प्रोजेक्ट के काम की शुरुआत कर दी जाए, ताकि इसका लाभ चुनाव में उठाया जा सके। फिलहाल तो एक बार फिर कागजों पर मेट्रो प्रोजेक्ट को दौड़ाने के प्रयास सरकार ने शुरू कर दिए हैं, लेकिन लोगों को विश्वास नहीं हो रहा है, क्योंकि भोपाल-इंदौर मेट्रो रेल दस साल से कागजों पर रेंग रही है। जिस पर अब तक 27 करोड़ रुपए खर्च हो चुके हैं। दो साल से 15 हजार पेज की डीपीआर तैयार रखी है। वहीं अब तक देश में दिल्ली, बेंगलुरु, कोलकता, चेन्नई कोच्चि, मुंबई, जयपुर, लखनऊ और गुरुग्राम शहरों में कुल 370 किमी परियोजनाएं चालू हो चुकी है, जबकि हैदराबाद, नागपुर, अहमदाबाद, पुणे और लखनऊ समेत पांच शहरों में मेट्रो परियोजनाएं निर्माणाधीन है। वहीं जयपुर, लखनऊ के साथ भोपाल, इंदौर में एक साथ मेट्रो प्राजेक्ट आया था, लेकिन यहां अभी कागजी खानापूर्ति चल रही है। हांलाकि केंद्र की नई मेट्रो नीति की मंजूरी से एक बार फिर उम्मीद जगी है। मेट्रो का सपना कब साकार होगा यह देखना होगा। मप्र को चुनना होगा तीन में से एक विकल्प केंद्रीय ग्रामीण विकास, पंचायती राज और पेयजल एवं स्वच्छता मंत्री नरेद्र सिंह तोमर का कहना है कि मध्यप्रदेश सरकार को इंदौर, भोपाल, ग्वालियर और जबलपुर में मेट्रो ट्रेन चलाना है तो इसके लिए तीन विकल्पों में से एक को चुनना होगा। पहला विकल्प, वह केंद्र के साथ 50-50 प्रतिशत लागत भागीदारी के साथ मेट्रो प्रोजेक्ट का क्रियान्वयन करे। दूसरा, सरकार पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप के आधार पर निजी कंपनियों से प्रोजेक्ट में पैसा निवेश करवाए। पीपीपी मॉडल में केंद्र सरकार 10 प्रतिशत अनुदान राशि देगी। तीसरा विकल्प यह कि निजी कंपनी से साझेदारी कर प्रोजेक्ट क्रियान्वित करे और शहरी विकास मंत्रालय से एकमुश्त 20 प्रतिशत राशि ले ले। केंद्र ने जो नई गाइड लाइन तय की है कि उसके हिसाब से मध्यप्रदेश को दोबारा अपने प्रोजेक्ट के लिए विकल्प चुनकर केंद्र को भेजना होंगे। -जेश बोरकर
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