कागजी स्वास्थ्य सेवाएं
31-Aug-2017 07:58 AM 1234804
इसमें कोई दो राय नहीं है कि वर्तमान केंद्र सरकार ने कई जीवनोपयोगी योजनाएं और कार्यक्रम संचालित कर रखें हैं, लेकिन उसकी मॉनिटरिंग नहीं हो पाने के कारण उसका लाभ लोगों को नहीं मिल पा रहा है, लेकिन जमीनी हकीकत को जाने बिना शाह दावा कर गए कि स्वास्थ्य के क्षेत्र में एनडीए सरकार ने उपचार को सस्ता बनाने के लिए हृदय रोगियों के काम आने वाले स्टेंट की कीमत जो 2 लाख रूपए तक थी उसे घटाकर 7 से 35 हजार तक पहुंचा दी है। इसी तरह घुटने के रिप्लेसमेंट का खर्च घटाकर 1 तिहाई करके उपचार जनसामान्य की पहुंच के अंदर किया है। यह जनसामान्य के लिए मोदी सरकार का बहुत बड़ा उपहार है। शाह के दावे के विपरीत आज भी हृदय रोग का ईलाज और घुटने का रिप्लेसमेंट महंगा है। दरअसल, हाल के दिनों में जिस तरीके से चिकित्सा विज्ञान का बाजारीकरण हुआ है, उस हिसाब से अब इस बाजारिक प्रवृत्ति पर सरकारी अंकुश भी लगना ही चाहिए। केंद्र सरकार ने हाल ही में हृदय रोग में काम आने वाले स्टेंट की कीमतें निर्धारित कर दी तो अस्पतालों में स्टेंट की कमी हो गयी। अस्पतालों में स्टेंट आपूर्ति करने वालों ने नये सिरे से इसके लेबलों में सुधार के नाम पर सार्वजनिक उपलब्धता से इसे दूर कर दिया। दूसरी तरफ ऊंची कीमत पर इनकी उपलब्धता बरकरार है। देश के लगभग सभी बड़े अस्पतालों में सरकार के निर्देशों का पालन नहीं किया जाता है। इन अस्पतालों में अस्पताल प्रबंधन अपनी खुद की दरें तय करता है। सरकार ने हृदय रोग उपचार, घुटने का रिप्लेसमेंट, आंखों में लेन्स लगाना आदि सर्व सुलभ बनाने के लिए इनके रेट भले ही कम कर दिए हैं, लेकिन मरीजों को इसका लाभ नहीं हो रहा है। अभी हाल ही में मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में संपन्न इंटरनेशनल कॉनक्लेव ऑन बेस्ट प्रैक्टिसेस इन ड्रग रेगुलेशन वर्कशॉप में भाग लेने आए नेशनल फार्मास्यूटिकल प्राइजिंग अथारिटी (एनपीपीए) के चेयरमैन भूपेन्द्र सिंह ने स्वीकार किया कि देश में आज भी लोगों को सस्ता इलाज नामुमकिन है। उन्होंने कहा कि इलाज के साथ ही दवाइयां भी महंगी हैं। वह कहते हैं कि मरीजों को सस्ती व गुणवत्ता वाली दवाएं देने के लिए केंद्र सरकार बड़ी राहत देने जा रही है। 10 गुना (1 हजार फीसदी) तक महंगे दामों पर दवाओं को बेचने वाली कंपनियों पर लगाम कसने के लिए नेशनल फार्मास्यूटिकल पॉलिसी 2017 का मसौदा तैयार हो गया है। हालांकि इसके बाद भी कंपनियां अधिकतम 35 से 40 फीसदी (1 गुना से भी कम) मुनाफा मरीजों से वसूल सकेंगी। उन्होंने बताया मरीजों को सस्ती, सुलभ गुणवत्तापूर्ण दवाएं मिल सके, इसलिए फार्मास्यूटिकल पॉलिसी में कई प्रावधान किए जा रहे हैं। हालांकि, सुझावों के बाद कुछ बदलाव भी हो सकता है। उन्होंने बताया सभी दवाओं के ट्रेड मार्जिन (बिक्री में मुनाफा) तय किए जाएंगे। बता दें कि अभी कई दवाओं का खुदरा मूल्य (एमआरपी) 10 से 15 गुना तक ज्यादा रहता है। भूपेन्द्र सिंह ने कहा कान में लगने वाले कॉक्लियर इंप्लांट (अंगों में लगने वाली मेटल से बनी चीजें), आंख में लगने वाले लेंस, दांत में लगने वाले विभिन्न इंप्लांट की कीमतें भी कम की जाएगी। इसके लिए जल्द ही बैठक होने जा रही है। उन्होंने बताया एनपीपीए पहले कुछ इंप्लांट की कीमत कम की गई थी। इसके बाद यह देखा जा रहा है कंपनियां खुद बाकी इंप्लांट की कीमत कम करती हैं या नहीं। एसोचैम ने इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टूरिज्म एंड ट्रैवल मैनेजमेंट के साथ किये गये एक संयुक्त अध्ययन की रिपोर्ट कहती है कि सरकार के दावों के बीच भी हकीकत यह है कि मरीजों को बड़ी राहत मिलती नजर नहीं आ रही है। यदि कोई दवाई बनाने की लागत 50 रुपए है तो कंपनियां इसे अभी मनमाने दामों में दस गुना यानी 500 रुपए में बेचती थी। नई नीति के बाद कंपनियों को 50 रुपए का 40 प्रतिशत यानी 20 रुपए ही मुनाफा कमाने का अधिकार होगा। रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2020 तक देश में फार्मा उद्योग के विकास की रफ्तार 15.92 प्रतिशत सालाना रहने की उम्मीद है। वर्ष 2005 से 2016 के बीच यह 17.46 प्रतिशत सालाना की दर से बढ़ा है। वर्ष 2005 में इसका आकार छह अरब डॉलर था। रिपोर्ट में इस बात का उल्लेख नहीं किया गया है कि इस कारोबार में कमीशन की दर क्या है और क्यों किसी खास डाक्टर द्वारा लिखी गयी दवा उसी डाक्टर के आस-पास की दवा दुकानों में ही उपलब्ध हो पाती है। इसके अलावा चिकित्सा कार्य में मेडिकल जांच का गोरखधंधा भी खूब चल निकला है। डाक्टर भी बेहतर गुणवत्ता के नाम पर किसी खास लैब से ही जांच कराने पर जोर क्यों देते हैं। इसका एक अर्थ तो यह भी होता है कि दरअसल देश में जांच करने वाली प्रयोगशालाओं में एकरुपता नहीं है अथवा निर्धारित मानदंडों का पालन सही तरीके से नहीं करते हैं। देश में इलाज, स्वास्थ्य उपकरण और दवाएं पहले से ही महंगी हैं और अब हाल ही में लागू हुए गुड्स एंड सर्विस टैक्स के कारण ये और महंगे हो रहे हैं। देश में पिछले कुछ सालों में कैंसर आम बीमारी बन गई है, लेकिन इसका इलाज अब भी आम आदमी की पहुंच से बाहर है। इसमें सबसे ज्यादा खर्च कैंसर की दवाओं का है। ब्लड कैंसर को छोड़ अन्य सभी प्रकार के कैंसर की 80 प्रतिशत दवाओं पर टैक्स 7 प्रतिशत से बढ़ाकर 12 प्रतिशत कर दिया गया है। ऑर्थो इम्प्लांट सप्लायर और डीलर राजेंद्र कुमार भार्गव कहते हैं कि हिमोडायलेसिस मशीन, ट्यूबिंग्स, कैथेटर, प्लाजमा फिल्टर जैसे नेफ्रोलॉजी में इस्तेमाल वाले उपकरणों पर पहले टैक्स 5 प्रतिशत था जो जीएसटी के बाद बढ़कर 12 प्रतिशत हो गया है। पेसमेकर और हार्ट वॉल्व पर तो पहले 4.5 फीसदी टैक्स था, जो अब बढ़कर जीएसटी के रूप में 28 प्रतिशत हो गया है। सर्जरी उपकरणों की खरीद पर पहले आठ फीसदी टैक्स देना पड़ता था, अब जीएसटी लागू होने पर 28 फीसदी टैक्स देना पड़ रहा है। ऐसे में सस्ते इलाज की कल्पना कैसे की जाती है। यानी आज भले ही सरकार सस्ते इलाज के दावे पर दावे करें, लेकिन यहां सस्ता इलाज मिलना नामुमकिन है। यानी इस देश में आम आदमी को आज भी गंभीर बीमारियों से निजात मिलने की संभावना न के बराबर है। देखना यह है कि सरकार अपने सस्ते इलाज के सपने को कैसे साकार करती है। सस्ते स्टेंट से किसके दिल में हो रहा है दर्द जुलाई में 42 वर्षीय विकास रंजन को दिल में दर्द महसूस हुआ। पता चला कि इस कम उम्र में उनके दिल की धमनियों में रुकावट है। डॉक्टर ने स्टेंट लगाने की सलाह दी। स्टेंट की मदद से दिल की जाम धमनियों को साफ किया जाता है। एक विदेशी कंपनी के स्टेंट का इस्तेमाल किया गया और इसका बिल था एक लाख 28 हजार रुपए का। अस्पताल से छूटने के बाद विकास ने जांच में पाया कि आयातित स्टेंट की कीमत मात्र 23 हजार रुपए है। इस मामले में देश के प्रख्यात हृदय रोग विशेषज्ञ स्कंद त्रिवेदी कहते हैं कि शुरू के छह महीने तो कंपनियों ने सरकार द्वारा तय कीमत पर स्टेंट मुहैया कराया लेकिन अब वे खेल कर रही है। वह कहते हैं कि अब या तो क्वालिटी खराब आ रही है या फिर साईज में गड़बड़ की जा रही है। इससे मजबूर होकर लोगों को महंगे दामों पर स्टेंट खरीदना पड़ रहा है। - श्याम सिंह सिकरवार
FIRST NAME LAST NAME MOBILE with Country Code EMAIL
SUBJECT/QUESTION/MESSAGE
© 2025 - All Rights Reserved - Akshnews | Hosted by SysNano Infotech | Version Yellow Loop 24.12.01 | Structured Data Test | ^