31-Aug-2017 07:01 AM
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देश में एक तरफ सरकार रेलवे के कायाकल्प में जुटी हुई है, वहीं दूसरी तरफ लगातार रेल हादसे हो रहे हैं। आलम यह है कि अब तो लोग जान हथेली पर लेकर रेल का सफर कर रहे हैं। देश में रोजाना कहीं ना कहीं छोटा-बड़ा रेल हादसा आम बात हो गई है। अभी हाल ही में उत्तर प्रदेश में चार दिन के अंदर दो हादसे इस बात का गवाह है कि भारतीय रेल का सफर कभी भी हादसे में बदल सकता है। मुजफ्फरनगर के पास हुए रेल हादसे में तेईस यात्रियों की मौत हो गई। पिछली कुछ रेल दुर्घटनाओं को सरकार ने दुश्मन मुल्क की साजिश बताया था। हालांकि मुजफ्फरनगर में उत्कल एक्सप्रेस का पटरी से उतरना पहली दृष्टि में मानवीय लापरवाही ही नजर आ रही है। यात्रियों पर बोझ डालने की लगातार कोशिश कर रही सरकार यात्रियों की सुरक्षा के प्रति गंभीर नहीं है।
कम से कम सरकार को यह सोचना चाहिए कि रेल में यात्री किराया देकर सफर कर रहे हैं। वे सरकारी अस्पतालों की तरह मुफ्त इलाज नहीं करवा रहे हैं, लेकिन फिलहाल रेल मंत्रालय की दिलचस्पी ब्रिटिश भारत में विकसित किए गए रेलवे नेटवर्क की परिसंपत्तियों को निजी क्षेत्र के हवाले करने में है। कमजोर हो रही पटरियों के रखरखाव, उनकी मजबूती बनाए रखने पर रेल मंत्रालय का कोई ध्यान नहीं है। दिलचस्प बात है कि बदहाल हो रही पटरियों पर ही रेलवे अब हाइस्पीड ट्रेन चलाने की कोशिश कर रहा है। यह एक जोखिम भरी योजना है। पहले दिल्ली और आगरा के बीच हाइस्पीड यात्री गाड़ी चलाई गई, वहीं दिल्ली-मुंबई के बीच हाइस्पीड गाड़ी का परीक्षण किया गया। रेलवे इंजीनियरों के अनुसार, जिन पटरियों पर हाइस्पीड ट्रेन चलाने की बात हो रही है वे काफी कमजोर हो चुकी हैं। इन पुरानी पटरियों पर हर साल ट्रैफिक बढ़ रहा है। बढ़ते ट्रैफिक ने पटरियों को कमजोर कर दिया है। इन पटरियों पर डेढ़ सौ किलोमीटर प्रतिघंटे की गति से रेलगाड़ी चलाना, यात्रियों की जान को खतरे में डालना है।
रेलवे यात्रियों को सुविधा बढ़ाने के नाम पर लगातार किरायों में बढ़ोतरी कर रहा है। सामान्य टिकटों के रद््दीकरण के नियम बदल कर रेलवे ने मोटी कमाई की। यात्री रेल की यात्रा करें या न करें, टिकट रद््दीकरण से रेलवे को खूब आय हुई। रेलवे इसके लिए खुद अपनी पीठ थपथपा रहा है। यात्रियों की जेब काटने वाले अधिकारियों की तारीफ सरकार में बैठे लोग कर रहे हैं। इसे भारी उपलब्धि बताया जा रहा है, लेकिन रेलवे इसके एवज में यात्रियों को क्या दे रहा है, इस पर चर्चा करने की हिम्मत किसी में नहीं है। रेलवे ने वर्ष 2016-17 में टिकट रद््दीकरण के एवज में काटे जाने वाले शुल्क से 15 अरब रुपए की मोटी कमाई की। जबकि वर्ष 2015-2016 में रेलवे ने टिकट रद््दीकरण से 11 अरब रुपए और वर्ष 2014-15 में 9 अरब रुपए की कमाई की थी। आखिर इतनी कमाई के बाद भी रेलवे आम यात्रियों को ट्रेनों में सुरक्षा क्यों नहीं दे पा रहा है? सर्ज प्राइजिंग के नाम पर रेलवे राजधानी और शताब्दी एक्सप्रेस में यात्रियों से मोटी रकम वसूल रहा है। उसके एवज में यात्रियों को शताब्दी और राजधानी ट्रेनों में गंदे शौचालय और गंदा खाना मिल रहा है और तो और, अब यात्रियों का सामान भी सुरक्षित नहीं है। हाल ही में मुंबई-नई दिल्ली राजधानी एक्सप्रेस में हुई एक बड़ी चोरी ने रेलवे की फजीहत कर दी। कई यात्रियों के पैसे और जेवरात चलती ट्रेन में गायब हो गए। इससे रेलवे की यात्रा दुखदायी होने लगी है।
कमजोर पटरियों पर बढ़ता बोझ
उत्तर प्रदेश में कैफियत एक्सप्रेस हादसे के बाद रेलवे बोर्ड के चेयरमैन अशोक मित्तल ने इस्तीफा दे दिया। वे लगातार हो रहे रेल हादसों से दुखी थे। अब अश्विनी लोहानी को रेलवे बोर्ड का चेयरमैन बनाया गया है, लेकिन जिस तरह रेलवे की पूरी प्रणाली जर्जर है उससे कोई भी आ जाए रेल दुर्घटनाएं रुकने वाली नहीं है। दरअसल, कमजोर पटरियों पर लगातार बोझ बढ़ रहा है और उससे हादसे बढ़ रहे हैं। रेलवे का ध्यान इस ओर नहीं जा रहा है। हालांकि रेलवे सुरक्षा को लेकर 2010 से पहले ही कई महत्वपूर्ण सिफारिशें आ गई थीं, लेकिन 2010 के बाद भी रेल दुर्घटनाओं में कोई कमी नहीं आई। 2009 से 2015 तक देश में 803 रेल दुर्घटनाए हुई हैं जिनमें 620 यात्रियों ने अपनी जान गंवाई। इनमें से 47 प्रतिशत रेल दुर्घटनाएं यात्री गाड़ी के पटरियों से उतरने के कारण हुई हैं। दुनिया के एक बड़े रेल नेटवर्क के लिए यह काफी गंभीर मसला है।
- अजय धीर