30-May-2013 06:51 AM
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कॉमनवेल्थ घोटाले के बाद अब दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित सरकारी फंड के दुरुपयोग के मामले में फंसी नजर आ रही हैं। हाल ही में लोकायुक्त ने शीला दीक्षित को सरकारी विज्ञापनों से जुड़े

एक मामले में आरोपी बनाया है। लोकायुक्त का आरोप है कि शीला दीक्षित ने न केवल सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग किया बल्कि 2008 से लेकर अब तक जनसंपर्क के माध्यम से लगभग 11 करोड़ रुपए के अतिरिक्त विज्ञापन जारी किए, जो सरकारी हिसाब से बहुत अधिक हैं। हालांकि भारतीय जनता पार्टी ने शीला सरकार पर 22 करोड़ रुपए के घोटाले का आरोप लगाया है।
दिल्ली के लोकायुक्त जस्टिस मनमोहन सरीन ने कहा कि दीक्षित ने अपने पद का दुरुपयोग कर जनता के पैसे को चुनावी फायदे के लिए इस्तेमाल किया है। आने वाले चुनावों की देखते हुए उन्होंने सरकारी स्कीम को अपने राजनीतिक लाभ के लिए इस्तेमाल किया और एक खास तबके के वोटरों को लुभाने की कोशिश की। दिल्ली स्वरोजगार योजना के आवेदन पत्र पर दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित और अनुसूचित जन जाती कल्याण मंत्री राज कुमार चौहान की तस्वीर लगने को भी लोकायुक्त ने गलत बताया है।
जस्टिस सरीन ने कहा कि ये जनता को लुभाने और चुनाव से पहले अपना नाम चमकाने का प्रयास है, जबकि ये सरकारी स्कीम है और इसमें जनता का पैसा लग रहा है। जन प्रतिनिधियों को जनता के पैसों का दुरूपयोग अपने नाम का प्रचार करने में नहीं लगाना चाहिए। आवेदन पत्र की कीमत में तस्वीर छपवाने का पैसा भी जुड़ जाता है जिसे जनता को देना होता है। सरकारी स्कीम को अपनी लोकप्रियता के लिए इस्तेमाल करना गलत है, यह अपने पद का दुरूपयोग है। लोकायुक्त ने भाजपा के हर्ष वर्धन से इस मामले की शिकायत मिलने के बाद दिल्ली सरकार को नोटिस जारी किया था। लोकायुक्त ने राष्ट्रपति से भी इस मामले को देखने की अपील की है। उन्होंने राष्ट्रपति से दिल्ली सरकार को मना करने के साथ साथ पहले से छपे फॉर्म्स पर से भी तस्वीर हटावाने की मांग की है। उन्होंने अपनी अपील में ये भी कहा कि नेताओं को सरकारी स्कीमों का निजी लाभ लेने से रोकने के लिए कुछ कानून बनाने की भी ज़रूरत है जिससे जनता के पैसों का दुरुपयोग बंद हो सके। शीला दीक्षित को इससे पहले भी कई बार सरकारी स्कीम से राजनीतिक लाभ लेने की कोशिश के लिए लोकायुक्त से फटकार लग चुकी है और ये दूसरी बार राष्ट्रपति से कड़े कदम उठाने की अपील की गयी है। 2011 में लोकायुक्त द्वारा शीला दीक्षित को पिछले विधानसभा चुनाव में गरीबों को सस्ते दाम पर फ्लैट देने का वादा कर गुमराह करने का आरोप लगा था। लोकायुक्त जस्टिस मनमोहन सरीन ने तब भी मुख्यमंत्री के इस वादे को चुनावी लाभ के लिए घोषणा बताते हुए राष्ट्रपति से अनुरोध किया था कि मुख्यमंत्री को चेतावनी दें ताकि भविष्य में वे ऐसे वादे न करें। कामनवेल्थ घोटाले के बाद से भी शीला दीक्षित का नाम कई घोटालों में सामने आया था। लोकायुक्त ने उन्हें जिन मामलों में आरोपी बनाया है वह छोटे-मोटे मामले हैं। बड़े मामलों में शीला दीक्षित भले ही प्रत्यक्ष रूप से शामिल न हों किंतु उन पर आरोप लगते रहे हैं। वर्ष 2011 में राजधानी में स्कूलों की दशा सुधारने के नाम पर करोड़ों रुपये का घोटाला सामने आया था। आरोप था कि दिल्ली सरकार ने एक ऐसी कंपनी को करोड़ों रुपए का फायदा पहुंचाया था जिसमें मुख्यमंत्री की एक करीबी रिश्तेदार काम करती थी। दिल्ली सरकार और इस कंपनी के बीच उस रिश्तेदार ने ही सांठगांठ कराने में भूमिका निभाई थी। लोकायुक्त ने इस मामले की भी जांच की लेकिन बाद में फाइलें दबा दी गईं। इस मामले में क्या कदम उठाया गया इसकी जानकारी अभी तक नहीं है। इस गंभीर प्रकरण में मुख्यमंत्री के एक रिश्तेदार के लिए दिल्ली सरकार ने कंसल्टेंसी देने वाली एक कंपनी ढ्ढरु&स्नस् को सारे नियमों को ताक पर रखकर स्कूलों के विकास के नाम पर उंची दरों पर करोड़ों रुपए का काम दे दिया था।
दरअसल मुख्यमंत्री की सगी बहन रमा धवन की बहू चारू मल्होत्रा ढ्ढरु&स्नस् कंपनी में बड़े ओहदे पर काम करती थीं। सूत्र बताते हैं कि स्कूलों की कंसल्टेंसी के लिए दिल्ली सरकार का शिक्षा विभाग सरकारी कंपनी डीएसआईआईडीसी को 3 फीसदी फीस देता है जो करीब 7 करोड़ 35 लाख रुपये होते हैं लेकिन इस मामले में डीएसआईआईडीसी ने नियमों को ताक पर रखकर ढ्ढरु&स्नस् कंपनी को खुद को चपत लगाते हुए करीब 13 करोड़ रुपए दे दिये। यही नहीं कंपनी को दिल्ली के तीन सौ सरकारी स्कूलों के रखरखाव के लिए हर महीने साढ़े 79 लाख रुपए अलग से भी दिये जा रहे थे। ढ्ढरु&स्नस् को 28 अगस्त 2007 तक काम पूरा कर लेना था लेकिन अभी तक ये काम लटका हुआ है। शीला दीक्षित लगातार 3 बार मुख्यमंत्री पद का चुनाव जीत चुकी हैं। उनके शुरुआती दो कार्यकाल दिल्ली में विकास की दृष्टि से अभूतपूर्व कहे जा सकते हैं, किंतु राष्ट्रमंडल खेलों के समय दिल्ली में विकास के नाम पर जो गड़बड़ झाला हुआ उसमें शीला दीक्षित प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से लिप्त पाई गई थीं। शीला के करीबी कई अधिकारियों ने जमकर भ्रष्टाचार किया।
सुरेश कलमाड़ी के भ्रष्टचार की अनदेखी की गई, जिसके चलते कलमाड़ी को जेल की हवा भी खानी पड़ी। बताया जाता है कि उस वक्त शीला दीक्षित को जानबूझकर बचाया गया, लेकिन अब हाल की घटनाओं के बाद 10 जनपथ से शीला के रिश्ते बिगड़ चुके हैं और मुख्यमंत्री पद के प्रत्याशी के रूप में कांग्रेस को नई तलाश है।
दिल्ली से अरुण दीक्षित