01-May-2013 09:04 AM
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2 नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (कैग) .................शीघ्र रिटायर हो रहे हैं पर रिटायरमेन्ट से पहले उन्होंने जो घोटाला उजागर किए हैं वे इतिहास के सबसे बड़े भ्रष्टाचारों की कलई खोल रहे हैं।

कामनवेल्थ, 2जी, कोल आवंटन और मनरेगा से लेकर रक्षा सौदों में भ्रष्टाचार ने सरकार को बैकफुट पर ला दिया है। 2जी घोटाले और कोयले के कुहासे में केंद्र सरकार एक बार फिर घिर गई है। 2जी घोटाले की रिपोर्ट सामने आने के बाद विपक्ष ने केंद्र सरकार को आड़े हाथों लिया है और कहा है कि इस घोटाले में प्रधानमंत्री को क्लीन चिट देना न्याय संगत नहीं है। उधर ए राजा ने भी यह कहकर सनसनी फैला दी है कि उन्होंने सभी निर्णय प्रधानमंत्री से विचार-विमर्श करके लिए थे। राजा ने कहा कि पद छोडऩे के बाद भी उन्होंने सभी लोगों को बता दिया था कि 2जी स्पैक्ट्रम आवंटन में जो भी कुछ किया गया वह प्रधानमंत्री की सलाह के साथ ही किया गया था। राजा का यह बयान जेपीसी के रिपोर्ट के एकदम विपरीत है जेपीसी की रिपोर्ट में यह कहा गया है कि 2जी स्पैक्ट्रम आवंटन घोटाले में दूरसंचार मंत्रालय ने प्रधानमंत्री कार्यालय को गुमराह किया था। राजा ने यह भी कहा कि पूरा 2जी मामला गड़बड़ी से भरा है। उन्होंने कैग पर भी सवाल उठाए और यह भी कहा कि जो कुछ उनके साथ हुआ वह नैसर्गिंक न्याय के अनुरूप नहीं है। हालांकि जेपीसी अध्यक्ष पीसी चाको ने जिस तरह के बयान दिए उसके बाद बाकी सदस्यों ने उनके भी इस्तीफे की मांग कर डाली।
राजा सच या गलत कह रहे हैं इस विषय में तो संयुक्त जांच समिति की रिपोर्ट ही बताएगी। लेकिन इतना तो तय है कि जिस तरह 2जी स्पैक्ट्रम आवंटित किए गए उसमें अकेले राजा को आरोपित करना एक तरह से ज्यादती ही है। भारत में प्रधानमंत्री का पद इस तरह से बनाया गया है कि सभी मंत्रालयों के प्रति वह जवाबदेह होता है। इसीलिए प्रधानमंत्री कार्यालय से सभी मंत्रालयों के कामकाज पर नजर रखी जाती है, लेकिन जिस तरह सत्ता के दो केंद्र उभरकर सामने आए हैं उसके कारण प्रधानमंत्री की शक्ति क्षीण हुई है और राजनीतिक दलों को अपनी मनमानी करने का मौका मिल गया है। यही कारण है कि विपक्ष 2जी आवंटन मामले में केवल सहयोगी दलों को निशाना बनाए जाने के सरकार के कदम से नाराज है। जनता पार्टी के अध्यक्ष सुब्रमण्यम स्वामी ने वर्ष 2011 में ही कहा था कि इन आरोपों के लिए अकेले राजा को दोषी ठहराना उचित नहीं है। जो कुछ भी हुआ है उसमें गृहमंत्री पी. चिदंबरम की भी सक्रिय भागीदारी है। उस वक्त राजा ने चिदंबरम को भी सह अभियुक्त बनाने की मांग की थी। लेकिन राजनीतिक तौर पर कांग्रेस को इस कदम से बहुत बड़ी हानि हो जाती इसलिए जानबूझकर चिदंबरम को बचाया गया। कहा जाता है कि 2003 में केबिनेट के फैसले के अनुसार स्पैक्ट्रम के दाम तय करने में राजा को फ्री हैंड नहीं दिया गया था बल्कि तब वित्तमंत्री पी. चिदंबरम भी इस प्रक्रिया में शामिल थे। क्योंकि 2जी स्पैक्ट्रम के दाम 2003 के कैबिनेट फैसले के अनुसार तय किए गए थे इसीलिए इसमें स्वाभाविक रूप से प्रधानमंत्री पर भी आंच आना तय है पर सरकार बहुत चालाकी से प्रधानमंत्री को इस मामले में बचा ले गई है।
2जी घोटाला साल 2010 में प्रकाश में आया जब भारत के महालेखाकार और नियंत्रक ने अपनी एक रिपोर्ट में साल 2008 में किए गए स्पेक्ट्रम आवंटन पर सवाल खड़े किए। 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले में कंपनियों को नीलामी की बजाए पहले आओ और पहले पाओ की नीति पर लाइसेंस दिए गए थे, जिसमें भारत के महालेखाकार और नियंत्रक के अनुसार सरकारी खजाने को एक लाख 76 हजार करोड़ रूपयों का नुकसान हुआ था। आरोप था कि अगर लाइसेंस नीलामी के आधार पर होते तो खजाने को कम से कम एक लाख 76 हजार करोड़ रुपयों और प्राप्त हो सकते थे। हालांकि महालेखाकार के नुकसान के आंकड़ो पर कई तरह के आरोप थे लेकिन ये एक बड़ा राजनीतिक विवाद बन गया था और मामले पर देश के सर्वोच्च न्यायालय में याचिका भी दाखिल किया गया था। देश के घोटालों के लंबे इतिहास में सबसे बड़ा बताए जाने वाले इस मामले में प्रधानमंत्री कार्यालय और तत्कालीन वित्त मंत्री पी चिदंबरम पर भी सवाल उठाए गए हैं। इस मामले में ए राजा के अलावा मुख्य जांच एजेंसी सीबीआई ने सीधे-सीधे कई बड़ी और हस्तियों और कंपनियों पर मुख्य आरोप लगाए हैं। पूर्व दूर संचार मंत्री पर आरोप था कि उन्होंने साल 2001 में तय की गई दरों पर स्पेक्ट्रम बेच दिया जिसमें उनकी पसंदीदा कंपनियों को तरजीह दी गई। करीब 15 महीनों तक जेल में रहने के बाद ए राजा को हाल ही में जमानत दी गई। तमिलनाडू के पूर्व मुख्यमंत्री एम करूणाधि की बेटी कनिमोड़ी को भी मामले में जेल काटनी पड़ी थी और उन्हें बाद में जमानत मिली।
इस बीच कोयला घोटाले में संसद की स्थायी समिति ने लोकसभा में जो रिपोर्ट प्रस्तुत की है उसमें साफ कहा गया है कि कोल ब्लाक आवंटन में पारदर्शिता का पालन नहीं किया गया है और उसमें मनमानी की गई है। समिति के अध्यक्ष कल्याण बनर्जी ने स्पष्ट कर दिया है कि कोयला खदानों के मनमाने आवंटन से सरकारी खजाने को कितना नुकसान हुआ है इसका अंदाजा लगाना असंभव है। दरअसल कोयला घोटाले में कैग ने जो रिपोर्ट प्रस्तुत की थी उसमें यह बताया गया कि 1.86 लाख करोड़ रुपए का नुकसान सरकार को उठाना पड़ा था। यह घोटाला सामने आने के बाद सरकार की तरफ से एक मंत्री द्वारा कहा गया था कि कैग को तो शून्य लगाने की आदत पड़ी हुई है, लेकिन संसद की स्थाई समिति के अध्यक्ष कल्याण बनर्जी ने साफ कर दिया है कि सरकार को हुए नुकसान का आंकलन असंभव है। बनर्जी के इस कथन से पता चलता है कि घोटाला बड़ा है। जेपीसी की रिपोर्ट में बताया गया है कि किस तरह पद का दुरुपयोग कर कुछ खास लोगों को फायदा पहुंचाया गया और अवैध तरीके से आवंटन करते हुए सरकार को चूना लगाया गया। जेपीसी ने अपनी रिपोर्ट में यह भी कहा है कि 2005 के बाद कोल ब्लॉक आवंटन के लिए निगरानी हेतु व्यवस्था बिल्कुल विफल थी। जेपीसी से पहले भी कोल ब्लॉक आवंटन को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने सख्त टिप्पणी की थी। सुप्रीम कोर्ट की विशेष खंडपीठ ने कहा था कि सीबीआई की रिपोर्ट देखने से पता चलता है कि अनियमितताएं हुई हैं। कोर्ट ने सरकार से पूछा था कि 2006 से 2009 के बीच उसे कोयला ब्लाक आवंटन के लिए 2100 आवेदन मिले थे जबकि सिर्फ 151 कंपनियों को कोयला ब्लाक आवंटित किए गए। पीठ ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया था कि वह तीन सप्ताह में अतिरिक्त हलफनामा दाखिल कर स्पष्ट करे कि किस आधार पर कुछ कंपनियों को कोयला ब्लाक आवंटित करने के लिए चुना गया और बाकी को छोड़ दिया गया। इससे पूर्व भी न्यायालय ने 24 जनवरी को कंपनियों को कोयला ब्लाक आवंटन करने के अधिकार पर सवाल उठाते हुये कहा था कि उसे बहुत सारे स्प्ष्टीकरण देने होंगे क्योंकि कानून के तहत ऐसा करने का अधिकार सिर्फ राज्यों को ही है। न्यायालय ने यह भी कहा था कि केन्द्र खान और खनिज कानून को नजरअंदाज नहीं कर सकता है जिसमें उसे कंपनियों को कोयला ब्लॉक आवंटन करने का कोई अधिकार नहीं प्राप्त है।
कैग ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि सरकार ने प्राइवेट कंपनियों को कौडिय़ों के भाव कोयला खानों का आवंटन कर दिया, जिससे सरकारी खजाने को 1.86 लाख करोड़ रुपये का नुकसान हुआ था। साथ ही कैग ने अनिल अंबानी की कंपनी को करीब 29,033 करोड़ रुपये का फायदा पहुंचाए जाने की बात भी कही थी। रिपोर्ट के मुताबिक, मनमानी पूर्ण आवंटन के बजाय इन खदानों की नीलामी की गई होती तो सरकारी खजाने में करीब 1.86 लाख करोड़ रुपये का ज्यादा राजस्व आता। कैग ने अपनी रिपोर्ट में रिलायंस पावर, टाटा स्टील, टाटा पावर, भूषण स्टील, जिंदल स्टील ऐंड पावर, हिंडाल्को और एस्सार ग्रुप समेत 25 कॉर्पोरेट घरानों को फायदा मिलने की बात कही थी। केंद्र सरकार पर कोल ब्लॉक आवंटन के मामले में सीबीआई की रिपोर्ट में छेड़छाड़ करने का भी आरोप लग चुका है। एक अखबार ने खुलासा किया था कि सुप्रीम कोर्ट में स्टेटस रिपोर्ट देने से पहले कानून मंत्री अश्विनी कुमार और प्रधानमंत्री कार्यालय के कुछ अधिकारियों ने सीबीआई के साथ बैठक की थी। जिस बैठक में सीबीआई के निदेशक रंजीत सिन्हा भी मौजूद थे। सीबीआई इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में सरकार को बेनकाब करते हुए कहा कि कानून मंत्री अश्विनी कुमार, प्रधानमंत्री कार्यालय और कोयला मंत्रालय ने कुछ अधिकारियों ने यह रिपोर्ट देखी थी।
मनरेगा में भी घोटाला
इस बीच घोटालों से घिरी सरकार की परेशानी कैग की रिपोर्ट ने अब और बढ़ा दी है। कैग ने कहा है कि मनरेगा में लगभग 13 हजार करोड़ रुपए का घोटाला हुआ है जिसमें कथित रूप से सरकार के कई आला अफसर शामिल हो सकते हैं। कैग ने बहुत से प्रांतों में मनरेगा की जिन गड़बडिय़ों की तरफ इशारा किया है उनके चलते केंद्र सरकार की परेशानी अब और बढ़ गई है। संसद में पेश रिपोर्ट के मुताबिक सभी राज्यों में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) के क्रियान्वयन में भारी अनियमितताएं बरती गई। मनरेगा के फंड का इस्तेमाल उन कामों के लिए किया गया, जो इसके दायरे में नहीं आते हैं। मनरेगा का फायदा उठाकर 13,000 करोड़ रुपए का घपला कर दिया गया। इसका लाभ सही लोगों तक नहीं पहुंच पाया। 14 राज्यों में ऑडिट करने के बाद कैग ने पाया कि सवा चार लाख जॉब कार्ड्स में फोटो नहीं थे। 1.26 लाख करोड़ रुपए के 129 लाख प्रॉजेक्ट्स को मंजूरी दी गई, लेकिन इनमें से सिर्फ 30 फीसदी में ही काम हुआ। कैग ने माना कि असम, गुजरात, बिहार, यूपी, कर्नाटक, बंगाल और महाराष्ट्र जैसे राज्यों को कोई खास फायदा नहीं हुआ है। यूपी, महाराष्ट्र और बिहार में 46 फीसदी लोग गरीब हैं, लेकिन सिर्फ 20 फीसदी फंड का ही लाभ उन लोगों को मिला है। कैग के मुताबिक, मार्च 2011 में इस योजना के तहत करीब 1960.45 करोड़ रुपए निकाला गया, जिसका कोई हिसाब नहीं है। मनरेगा के जरिए करीब 5 करोड़ लोगों को काम मिला है। काम करने वाले मजदूरों का जॉब कार्ड बनता है जिसमें उसका फोटो भी लगा होता है। ग्राम पंचायतों के जरिए काम के बदले पैसे दिए जाते हैं। मार्च माह में ही संप्रग सरकार की महत्वाकांक्षी योजना किसान कर्ज माफी के क्रियान्वयन में बड़े पैमाने पर गड़बडिय़ों का खुलासा लोकसभा में किया गया था। इसमें बैंकों एवं वित्तीय सेवा अधिकारियों की भूमिका पर सवाल खड़े किए गए थे। इस मामले में कैग ने रिजर्व बैंक को अपनी रिपोर्ट के तथ्यों से अवगत कराया था, जिसके बाद रिजर्व बैंक ने सभी बैंकों को 15 दिन के भीतर अपात्र लोगों को दिए गए धन की वसूली करने और गड़बड़ी के जिम्मेदार बैंक अधिकारियों के विरुद्ध प्राथमिकी दर्ज करने के निर्देश दिए थे, लेकिन इस पर कोई कार्रवाई नहीं की गई। बल्कि अब मनरेगा में भी घोटाला सामने आ गया है। इस कारण सरकार की परेशानी और बढ़ गई है। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के इस्तीफे की मांग की जा रही है। पूर्व उप प्रधानमंत्री और भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी ने भी इस घोटाले को शर्मनाक बताते हुए कहा है कि इस सरकार को सत्ता में रहने का हक नहीं है।
सुनील सिंह