शिवराज जरूरी भी, मजबूरी भी...!
31-Aug-2017 06:48 AM 1234823
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, भाजपा संगठन, एजेंसियों की रिपोर्ट में कहा जा रहा है कि मप्र में मंत्री नाकाम, विधायक और संगठन पदाधिकारी बेलगाम, नौकरशाही नाफरमान, कानून व्यवस्था बेहाल, मंत्रियों और विधायकों की परफारमेंस खराब, सरकार की योजनाओं का बुरा हाल, 14 साल से सत्ता में होने के कारण भाजपा के खिलाफ एंटी इनकमबेंसी का सवाल है, लेकिन आलाकमान की नजर में इन सारी समस्याओं का एक ही समाधान है वह है शिवराज सिंह चौहान। तभी तो मप्र के तीन दिन के दौरे के दौरान भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने साफ कर दिया कि अगला विधानसभा चुनाव शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में ही लड़ा जाएगा। पहली नजर में तमाम प्रशासनिक खामियों के बावजूद यह शिवराज सिंह चौहान की कामयाबी का प्रमाण-पत्र है। यह इस बात का भी प्रमाण है कि मध्यप्रदेश में भाजपा की लगातार चौथी बार सरकार बनाने के लिए शिवराज जरूरी भी हैं और मजबूरी भी हैं। यानी बिना शिवराज के मध्यप्रदेश में भाजपा लगातार चौथी बार सरकार बनाने की स्थिति में नहीं है। यही कारण है कि शिवराज के खिलाफ कुछ नेताओं द्वारा निरंतर चलाई जा रही मुहिम के बाद भी आलाकमान ने उन्हें फ्री हैंड दे दिया है। शाह ने भोपाल के तीन दिनी दौरे के दौरान जिस तरह उतार-चढ़ाव वाले तेवर दिखाए और तमाम खामियों के बावजूद शिवराज सिंह चौहान को कुशल प्रशासक बताते रहे, उसके कई अर्थ-भावार्थ निकाले जा रहे हैं। पहला यह कि भाजपा जीतती है तो मध्यप्रदेश में शिव-राज कायम रहेगा, दूसरा शिवराज की राजनीतिक भूमिका मध्यप्रदेश की सीमाओं में ही रहेगी और तीसरा शिवराज के प्रत्यक्ष-परोक्ष विरोधी राजनीतिक शतरंज बंद करें, कोई फायदा नहीं होगा। दरअसल, भाजपा आलाकमान यह भलीभांति जानता है कि संगठन और सरकार की नाकामी के बाद भी मप्र में अगर भाजपा का परचम लहरा रहा है तो वह शिवराज सिंह चौहान की ही बदौलत। अबकी बार 350 के पार दरअसल शाह मिशन 2019 को लक्ष्य बनाकर निकले हैं। पार्टी ने अबकी बार 350 के पार का नारा दिया है। इसके लिए शाह सबसे पहले अपने गढ़ को मजबूत करना चाहते हैं। मध्यप्रदेश भाजपा का मजबूत गढ़ है, लेकिन यहां कई किलेदार मुख्यमंत्री की कुर्सी पर नजर गड़ाए हुए हैं। इससे सरकार के खिलाफ निरंतर प्रायोजित रिपोर्ट केन्द्रीय नेतृत्व को भेजी जा रही है, लेकिन चतुर सुजान शाह इन रिपोर्टों पर आंख बंद कर विश्वास करने की बजाए खुद भोपाल आ धमके। अध्यक्ष ने तीन दिन तक मैराथन बैठके कर पदाधिकारियों द्वारा जो असंतोष उभरकर सामने आया उसने साबित किया कि मध्यप्रदेश भाजपा में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। अमित शाह जिस राज्य में कार्यकर्ताओं को भड़ास निकालने का मौका दे रहे थे, जो डांट फटकार लगा रहे थे, मध्यप्रदेश के लिए इसमें नया कुछ नहीं था। भाजपा अध्यक्ष इन तीन दिनों में ऐसी कोई टिप नहीं दे गए जिसे मुख्यमंत्री सहित प्रदेश भाजपा के आज जो तमाम सीनियर नेता कहे जाते हैं, न जानते हों। असल में मध्यप्रदेश में पार्टी के लिए जो परम्पराएं कुशाभाऊ ठाकरे ने तय की थी, सत्ता के इन 14 सालों में वे सब तिरोहित हो गईं। भाजपा में मध्यप्रदेश का संगठन सबसे मजबूत माना जाता है। जनसंघ के जमाने से और यह कुशाभाऊ ठाकरे और प्यारेलाल खंडेलवाल जैसे कुशल संगठनकर्ताओं की बदौलत ही संभव हुआ था। एक जमाना हुआ करता था जब मध्यप्रदेश भाजपा में पार्टी के केन्द्रीय संगठन का हस्तक्षेप ना के बराबर होता था। प्रदेश के निर्णय प्रदेश में ही हो जाया करते थे। इसका कारण था सामूहिक निर्णय की परम्परा। आज वो परम्पराएं खत्म हुई हैं तो क्यों? और इसमें किन लोगों को अपना भला दिखता है? आज की भाजपा में तो विरोधियों को किनारे बिठाने की नई परम्परा शुरू हुई है। वरिष्ठ नेताओं के नाम पर आज जो नेता हैं, उन्होंने या तो मौन साध लिया है या फिर उन्हें किनारे कर दिया गया है और शायद इसलिए अमित शाह जब भोपाल के तीन दिन के दौरे पर आए तो उन्हें तमाम तरह के कार्यकर्ताओं से सीधा संवाद करना पड़ा। कोर ग्रुप को किया मजबूत शाह मध्यप्रदेश के फीडबैक के साथ भोपाल आए थे। उनके पास वह सारे अपडेट थे जिसके कारण सरकार, संगठन के प्रति आम लोग ही नहीं बल्कि भाजपा कार्यकर्ताओं में भी रोष है। इसीलिए उन्होंने संवाद का यह रास्ता अख्तियार किया। असल में भाजपा ने मध्यप्रदेश में लगातार तीसरी बार सत्ता में आने का एक नया इतिहास तो रच दिया है, लेकिन इस इतिहास को रचने के लिए पार्टी अपनी परम्पराएं भूलती चली गई। सत्ता ने पार्टी का विस्तार किया, लेकिन जिन लोगों के हाथों में सत्ता और संगठन की चाबी है, वे कार्यकर्ताओं का तरीके से नियोजन नहीं कर पाए। पार्टी में अलग-अलग प्रकृति, योग्यता और क्षमता के कार्यकर्ता हैं, लेकिन पार्टी अगर उनकी क्षमता का इस्तेमाल नहीं कर पाएगी तो असंतोष होना स्वाभाविक है और मध्यप्रदेश में वही हो रहा है। बताया भले ही यह जा रहा हो कि अमित शाह के दौरे से मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की स्थिति मजबूत हुई है, लेकिन गौर करेंगे तो अमित शाह ने मुख्यमंत्री की शक्तियों को सीमित करने की दिशा में कदम बढ़ाए हैं। जिस तरह से उन्होंने कोरग्रुप में संगठन और सरकार के निर्णय करने की हिदायत दी है, उससे भविष्य में शिवराज सरकार और नौकरशाही दोनों के लिए दिक्कतें पैदा होंगी। फिलहाल तो पार्टी और सरकार के सारे फैसले दो-चार लोगों तक सिमटे हुए हैं। अब फैसले लेने के भागीदारों की संख्या बढ़ सकती है। लालफीताशाही का दर्द यों तो मध्यप्रदेश में शिव-राज सफलतापूर्वक चल रहा है, लेकिन किसान आंदोलन ने भाजपा के लिए कई सवाल खड़े कर दिए थे और ताजा छोटे-बड़े चुनावों के नतीजे बताते हैं कि मध्यप्रदेश में एक तरफा जीत दर्ज करवाना भाजपा के लिए आसान नहीं है। इसकी मूल वजह है राज्य में लालफीताशाही का हावी होना। बताया जाता है कि करीब 172 लोगों से मिले फीडबैक के बाद शाह को उसके सूत्रों ने रिपोर्ट दी थी कि राज्य में लाल फीताशाही इस कदर हावी है कि पार्षदों से लेकर विधायकों, सांसदों तक की अधिकारी नहीं सुनते हैं और अपने मन की करते रहे हैं। तभी तो शाह ने पत्रकारों से चर्चा में कहा कि उन्हें पता है कि यहां ब्यूरोक्रेसी हावी है, लेकिन कोई ऐसा पहला मौका नहीं था जब शिवराज सिंह चौहान को नौकरशाही के जरिए घेरा गया हो। इससे पहले भी कई दफा उन पर हमले नौकरशाही के जरिए किए गए हैं। उन पर कई दफा पार्टी और संघ के भीतर से भी आरोप लगते रहे हैं कि उनका रवैया नौकरशाही के प्रति लचीला है, जिसके कारण प्रदेश में सरकार की पकड़ ढीली होती जा रही है। आरोप कुछ भी हों, लेकिन भाजपा के भीतर से जिस तरह से निशाने उठ रहे हैं, यह इस बात का संकेत जरूर दे रहे हैं कि सरकार के खिलाफ अब एक विपक्ष भाजपा के भीतर से ही खड़ा हो रहा है या फिर खड़ा किया जा रहा है। दरअसल विभिन्न माध्यमों से सरकार की खामियां शाह तक पहुंचाई जा रही थीं, लेकिन आलाकमान के पास प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान के अलावा कोई ऐसा चेहरा नहीं है जो तमाम खामियों के बाद भी चुनाव जिताने की क्षमता रखता हो। मुगालते से बाहर निकलें देश भ्रमण पर निकले अमित शाह के भोपाल आने से पहले कई तरह की अटकलों का बाजार गर्म था, लेकिन अपने सीधे संवाद के जरिए अमित शाह ने पार्टी के नेताओं को चाल-चरित्र और चेहरे की नई परिभाषा के सूत्र समझा दिए। उन्होंने साफ कर दिया कि कोई भी नेता-कार्यकर्ता इस गलतफहमी में न रहे कि पार्टी अब किसी एक पर निर्भर रहकर अपने राजनीतिक एजेंडे को आगे बढ़ाएगी। तीन दिन के अलग-अलग संवाद कार्यक्रमों में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने दो टूक नसीहत दी है कि पार्टी के टॉप टू बॉटम नेता अपने चाल चरित्र को सुधारें और यह सुनिश्चित कर लें कि मेक इन इंडिया के फार्मूले को 2022 तक पूरा करने के उद्देश्य के चलते देश और भाजपा का एक मात्र चेहरा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही रहेंगे। साथ ही अमित शाह की यात्रा के बाद यह स्पष्ट हो चुका है कि मध्यप्रदेश के 2018 में होने वाले विधानसभा चुनाव में शिवराज सिंह चौहान ही पार्टी का चेहरा होंगे। अमित शाह ने पार्टी नेताओं और खुद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को इस बात के साफ संकेत दे दिए हैं कि प्रदेश में सत्ता वापसी के लिए पार्टी हाईकमान पूरी तरह से उनके साथ खड़ा है। शिवराज भी हुए सख्त आलाकमान से मिले फीडबैक के बाद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी सख्त हो गए हैं। इसकी झलक पिछले दिनों कैबिनेट बैठक में देखने को मिली। शाह के बाद मुख्यमंत्री ने भी मंत्रियों को नसीहत दी है कि सबका मूल्यांकन काम के आधार पर होगा। पार्टी अध्यक्ष ने कहा है कि मंत्रियों को मौका दो, ताकि वे बेहतर प्रदर्शन करें। जो काम नहीं कर पा रहे हैं, उन्हें बदलो। मैं चाहता हूं कि आप पूरी क्षमता से काम करें और बेस्ट परफार्मेंस दें। अब जितना समय बचा है, उसमें कामकाज में तेजी लाएं। यदि कोई दिक्कत है तो मुझे बताइए। सप्ताह में दो दिन प्रभार के जिलों में जाएं और संगठन के साथ बैठकें भी करें। बुद्धिजीवी और विशेषज्ञ लोगों से जीवंत संपर्क रखें। इस दौरान अमित शाह के तीन दिवसीय दौरे में जो बातें सामने आई थीं, वो मुख्यमंत्री ने मंत्रियों के साथ साझा कीं। उन्होंने बताया कि दौरा अच्छा था। समयसीमा को ध्यान में रखते हुए काम करें। जिसे जो जिम्मेदारी मिली है, उसमें प्रदर्शन बेहतर होना चाहिए। अब ये साफ है कि मूल्यांकन काम के आधार पर ही होगा। अपनी सीट के साथ अन्य विधानसभा सीटों पर भी ध्यान दें। प्रभार के जिलों में दौरे के दौरान वहां के जिला संगठन के साथ बैठक करें। केंद्र और राज्य की योजनाओं के क्रियान्वयन पर ध्यान दें। शाह के यू टर्न से बढ़ा असंतोष भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने कहा है कि पार्टी में 75 वर्ष की उम्र पार कर चुके लोगों के चुनाव लडऩे पर कोई रोक नहीं है। उनके इस बयान से मध्यप्रदेश की सियासत में हलचल पैदा हो गई है और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की मुसीबत भी बढ़ गई है। शिवराज ने जून, 2016 में प्रदेश के दो मंत्रियों- बाबूलाल गौर व सरताज सिंह को 75 वर्ष की उम्र पूरी करने पर मंत्री पद से यह कहते हुए हटा दिया था कि पार्टी हाईकमान का ऐसा निर्देश है, लेकिन पार्टी अध्यक्ष शाह ने कहा कि किसे मंत्री बनाना है, और किसे नहीं, यह तय करना मुख्यमंत्री का अधिकार है। पार्टी में न तो ऐसा नियम है और न ही परंपरा कि 75 वर्ष की उम्र पार कर चुके लोगों को चुनाव नहीं लडऩे देना है। उन्होंने स्पष्ट कर दिया कि 75 की उम्र पार नेता भी चुनाव लड़ सकते हैं। शाह का बयान आने के बाद से 75 वर्ष की उम्र पार कर चुके गौर और सरताज ने पूर्व में लिए गए फैसले पर सवाल उठाने शुरू कर दिए हैं। वहीं पार्टी के भीतर और बाहर यह सवाल उठ रहे हैं कि क्या इन दोनों नेताओं से झूठ बोला गया था? शाह के बयान के बाद पूर्व मुख्यमंत्री गौर ने कहा, मुझे तो प्रदेश प्रभारी विनय सहस्रबुद्धे और प्रदेशाध्यक्ष नंदकुमार सिंह चौहान ने पार्टी हाईकमान का हवाला देते हुए 20 जून, 2016 को घर पर आकर बताया था कि पार्टी ने 75 वर्ष की उम्र पार कर चुके नेताओं को मंत्री न बनाने का फैसला लिया है, लिहाजा आप इस्तीफा दे दें। चौथी पारी आसान नहीं प्रदेश की भाजपा सरकार और उसके मुखिया शिवराजसिंह चौहान को भाजपाध्यक्ष अमित शाह भले ही सौ में सौ नंबर दे रहे हों पर आरएसएस ऐसा नहीं मानता। संघ के वरिष्ठ पदाधिकारियों का मानना है कि प्रदेश में भाजपा की चौथी पारी इतनी आसान है नहीं जितनी समझी और समझाई जा रही है। मंदसौर का किसान आंदोलन भाजपाई प्रयासों पर भारी पड़ सकता है। प्याज खरीदी घोटाला भी संघ की नजर में बड़ा घोटाला है जिसका व्यापक असर पड़ सकता है। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सरकार्यवाह भैयाजी जोशी ने जबलपुर में संघ के वरिष्ठ पदाधिकारियों के साथ ही अनुषांगिक संगठनों के पदाधिकारियों की बैठक में 2018 के विधानसभा चुनावों और 2019 के लोकसभा चुनाव की तैयारियों और वर्तमान हालातों के मद्देनजर भाजपा की चुनावी संभावनाओं पर मंथन किया। बैठक में यह बात भी सामने आई कि मंदसौर से उपजा और बाद में पूरे प्रदेश में फैला किसान आंदोलन भाजपा को भारी पड़ सकता है। इतना ही नहीं इस बैठक में मंत्रियों को भी बुलाकर प्रदेश सरकार की योजनाओं और उसके क्रियान्वयन में हो रही गड़बडिय़ोंं के बारे में बताया गया और सतर्क रहने को कहा गया। 2018 तक मंत्रियों को अभयदान शाह के दौरे के बाद प्रदेश में मंत्रिमंडल के विस्तार की सुगबुगाहट शुरू हो गई है। कहा जा रहा है कि नॉन परफार्मर मंत्रियों को घर बैठाया जा सकता है जबकि कुछ नए चेहरों को मौका दिया जा सकता है, लेकिन पार्टी के अंदरखाने से मिली खबर के अनुसार संगठन मिशन 2018 को देखते हुए किसी को नाखुश नहीं करना चाहता है। इसलिए 2018 तक सभी मंत्रियों को अभयदार दे दिया गया है। वहीं एक अन्य सूत्र का कहना है कि अगर किसी मंत्री की परफारमेंस अधिक खराब हुई तो संगठन में भेज दिया जाएगा। इन सारे कयासों के बीच इन दिनों मंत्रिमंडल के सदस्यों का बर्ताव भी बदला-बदला नजर आ रहा है। इसके पीछे वजह यह बताई जा रही है कि शाह के बाद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भी हिदायत दे दी है कि मंत्री काम करें या इस्तीफा दें। ज्ञातव्य है कि अपनी तीन दिनी यात्रा के दौरान शाह ने शिवराज से कहा कि मंत्रियों के कामकाज का आंकलन उन्हें करना है, उन्हें जिन मंत्रियों का काम ठीक नहीं लगता उन्हें वे अपनी टीम से हटा सकते हैं और नए लोगों को जोड़ सकते हैं। इसके बाद कोर ग्रुप की बैठक में भी शाह ने इस बात के संकेत यह कहते हुए दिए कि जो लोग अच्छा काम करेंगे, वे साथ चलेंगे और जो नानपरफार्मर होंगे उन्हें बाहर का रास्ता दिखाया जाएगा। शिवराज कैबिनेट में अभी 19 कैबिनेट और 9 राज्यमंत्री हैं। विधायकों की संख्या के मान से सीएम पांच से छह मंत्रियों को अपनी टीम में और जगह दे सकते हैं। बताया जाता है कि शाह की बैठकों के दौरान प्रदेश सरकार के एक पूर्व मंत्री द्वारा आलाकमान को प्रदेश के सात मंत्रियों और नौ अफसरों के कथित गठजोड़ का शिकायती पत्र सौंपा गया था। इसमें सिलसिलेवार शिवराज कैबिनेट के वर्तमान सात मंत्री, मंत्रालय में पदस्थ नौ अफसर और एक दर्जन कलेक्टर-एसपी की गंभीर शिकायतों का उल्लेख है, लेकिन सरकार और संगठन इस आधार पर किसी भी तरह का विवाद बढ़ाने के मूड में नहीं है। इसलिए इस मामले को विराम दिया जा रहा है। लोकसभा के साथ विधानसभा चुनाव भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह भाजपा शासित राज्यों का जिस तरह दौरा कर रहे हैं उसे मिशन 2018 और 2019 से जोड़कर देखा जा रहा है। उधर संभावना जताई जा रही है कि इस बार सरकार 2018 में जिन राज्यों में चुनाव होने हैं उन्हें लोकसभा के साथ 2019 में कराने पर विचार कर रही है। इसके लिए सरकार विधानसभा चुनावों को तीन महीने के लिए टाल सकती है। संविधान में चुनाव टालने का प्रावधान नहीं होने के कारण इन राज्यों में राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया जाएगा और फिर 2019 में लोकसभा चुनाव के साथ विधानसभा के चुनाव भी कराए जाएंगे। शायद यही वजह है कि अमित शाह अपने मिशन को पूरा करने के लिए अभी से जुट गए हैं। सक्रियता की वजह शाह की क्लास के बाद वैसे तो पूरा मंत्रीमंडल सक्रिय नजर आ रहा है, लेकिन पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री गोपाल भार्गव सबसे अधिक सक्रिय हैं। पिछले दिनों इन्होंने प्रदेशभर के सरपंचों के साथ वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से चर्चा की। बताया जाता है कि शाह की फटकार के बाद भार्गव लय में लौटे हैं। इसके पीछे एक वजह यह भी बताई जा रही है कि भार्गव की शिकायत पर सरकार ने विभाग के एसीएस राधेश्याम जुलानिया को शांत रहने का निर्देश दे दिया है इसलिए भार्गव फॉर्म में लौटे हैं।
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