19-Aug-2017 07:17 AM
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सरदार सरोवर बांध उन पैंतीस बड़े बांधों में सबसे बड़ा बांध है, जो नर्मदा के पानी को दूर-दूर तक पहुंचाने, बिजली का उत्पादन कर देश को तरक्की की रोशनी से भर देने का वायदा है। हालांकि यह वादा कब पूरा होगा यह तो आगे ही पता चल पाएगा, लेकिन इस बांध के कारण लाखों लोगों को अपने पुस्तैनी मकान छोड़कर विस्थापित होना पड़ा है। वर्तमान में बांध में जलभराव 139 मीटर किए जाने के फैसले से एक बार फिर से विस्थापन का दर्द बढ़ गया है और 40 हजार से अधिक लोग अपने घर से बेदखल किए जा रहे हैं।
पंडित जवाहरलाल नेहरू ने देश के बांधों को आधुनिक भारत के तीर्थ कहा था। नर्मदा का यह सबसे बड़ा आधुनिक तीर्थ है, जिसके खिलाफ पिछले बत्तीस सालों से एक लड़ाई लड़ी जा रही है। नेहरू के आधुनिक तीर्थ के सपने को साकार करने के लिए लाखों लोगों पर विस्थापन की गाज गिरी है। जाहिर है कि एक तरफ से सरकार की हीलाहवाली और अब गुजरात का दबाव न केवल बांध को खतरे के निशान पर ले जा रहा है तो दूसरी ओर विस्थापितों को पुनर्वास स्थल पर पर्याप्त सुविधाएं न मिलने एवं अधिकतम मुआवजे का मोह सरकार की मुश्किलें तो बढ़ा ही रहा है। ऐसे में एक बार विकास की परिभाषा पर प्रश्नचिन्ह लग रहे हैं तो विस्थापितों का मौन चीखें मारने लगा है।
हालांकि विस्थापितों को सुविधायुक्त विस्थापन की मांग को लेकर धार जिले के चिखल्दा गांव में अनशन कर रही नर्मदा बचाओ आन्दोलन की प्रमुख मेधा पाटकर को उठाकर जेल में डाल दिया गया है, लेकिन डूब प्रभावित अभी भी मोर्चा संभाले हुए हैं। इसकी वजह है विस्थापन की उचित व्यवस्था का नहीं होना। डूब प्रभावितों को जिन विस्थापन स्थलों पर विस्थापित किया गया है वहां सुविधाओं का अभाव है न लोगों को अपने रहने की जगह मिली है और न ही उनके पशुओं को। आलम यह है कि लोग विस्थापन स्थलों पर टीन-टप्पर की छत बनाकर रहने को मजबूर हो रहे हैं। वहीं उनके जानवर खुले में बंधे हैं।
नर्मदा सागर परियोजना में उजड़े हरसूद का दर्द अभी तक लोग भूले नहीं कि सरदार सरोवर बांध के विस्थापकों का दर्द अब कराहने लगा है। मध्य प्रदेश सरकार का संकट भी इसी कारण है कि समय से विस्थापितों का पुनर्वास नहीं कर पाई और अब बांध की ऊंचाई न बढऩे देने की गुहार भी नहीं लगा सकते क्योंकि मामला गुजरात से जुड़ा है। इसी बीच नर्मदा का स्तर खतरे के निशान को छूने को है। डूब में आने वाले गांवों के विस्थापन का भय है। सबसे बड़ा प्रश्न बार-बार यही उभर रहा है कि गुजरात को अगर इतने पानी की अभी जरूरत नहीं है तो फिर डैम को भरने की इतनी जल्दी क्यों है। मध्य प्रदेश विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष सीधा आरोप लगाते हैं कि गुजरात में विधान सभा के चुनाव होने के कारण ही यह सब हो रहा है। वहीं 3600 करोड़ खर्च करने के बावजूद सरकार की मुश्किलें दिन-प्रतिदिन वैसे ही बढ़ रही हैं जैसे सरदार सरोवर बांध में जलस्तर बढ़ रहा है क्योंकि अभी समस्याएं इतनी ज्यादा है कि इनका समाधान तय समय सीमा में होना सम्भव नहीं है। अधिकतर लोग अपने घर छोड़कर सरकार द्वारा निर्धारित पुनर्वास स्थलों पर मिली जगहों पर रहने गये ही नहीं। सो, वहां पर बाकी सुविधाएं भी अब तक नहीं जुटा पाई हैं। लगभग 15 सौ करोड़ खर्च करने के बाद भी अब तक रहने लायक सुविधाएं पुनर्वास स्थल पर नहीं जुट पाई हैं। कुछ लोगों ने पुनर्वास का कोई पैकेज नहीं लिया और सुप्रीम कोर्ट चले गये जहां इन्हें 60 लाख का पैकेज मिल गया। इनकी संख्या केवल 745 है। ऐसे में बाकी लोगों को सरकार से मिलने वाला मुआवजा राशि कम लगने लगी और उनका असन्तोष धीरे-धीरे बढऩे लगा।
धार जिले के निसरपुर पुनर्वास स्थल जहां दिनभर डूब से लेकर पुनर्वास को लेकर रोज नई रणनीति बनाई जाती है। उस स्थान से महज डेढ़ किमी दूर निसरपुर पुनर्वास स्थल-3 के सबसे अंतिम छोर पर है ग्राम मलवाड़ी का पुनर्वास स्थल। यहां 16 परिवार आ चुके हैं। ये सभी परिवार गरीब वर्ग से है और अब वे अपनी नई जिंदगी को आगे बढ़ाने की जद्दोजहद कर रहे हैं, लेकिन जिंदगी के जो सपने उन्हें प्रशासन के चश्मे से दिखाए थे, वे यहां कहीं नजर नहीं आ रहे हैं। यहां अभी तक पानी की कोई व्यवस्था नहीं है। मणिराम भाई बताते हैं कि लगभग 300 मीटर दूर एक खेत के कुएं में से पीने का पानी लाते हैं और वहीं पर जिन लोगों के मकान बन रहे हैं, उन्होंने अपनी-अपनी निजी छोटी पानी की मोटरें लगा रखी हैं। उससे पाइप बिछाकर मकान बनाने के लिए पानी की जुगाड़ कर रहे हैं। इन सबमें हर परिवार ने लगभग 10 हजार का खर्च कर दिया है। जबकि प्रशासन के अधिकारी कह रहे हैं कि हम मकान बनाने और पीने के लिए पानी की दिक्कत नहीं आने देंगे। जबकि यह निसरपुर का पुनर्वास स्थल होने के बाद भी अभी तक यहां पेयजल पाइप लाइन नहीं डल पाई है।
प्रशासन ने डूब के ग्रामों से लोगों को पुनर्वास स्थल पर भेजने के लिए सभी विभागों के अधिकारियों और कर्मचारियों का दल बना रखा है, जो डूब के लोगों को शासन की योजना और पुनर्वास पैकेज की जानकारी देकर उन्हें मकान तोड़कर पुनर्वास स्थलों की ओर रुख करवाती है। जब ये लोग पुनर्वास स्थल आते हैं, तो यहां सिर्फ उन्हें भूखंड की जानकारी देकर दूसरी सुविधा के लिए कोई नहीं आगे आता। यदि सही मायने में प्रशासन आदर्श पुनर्वास करना चाहता है तो हर पुनर्वास स्थल पर उसी तरह की एक टीम होनी चाहिए, जो यहां आने वाले परिवार को सही समय पर सुविधा देने में मदद करें।
निर्णायक मोड़ पर आंदोलन
जलाशय में बढ़ता जलस्तर अब उन लोगों के घर-द्वार लील लेने को आगे बढ़ रहा है, जिन्हें सरकार परियोजना प्रभावित लोगÓ कहा करती है। उन्हें अपने घरों को छोड़ देने की अंतिम तिथि 31 जुलाई दी गयी थी। अब किसी भी दिन उन्हें वहां से जबरन निकालने की कार्रवाई शुरू हो सकती है। हजारों परिवार सरकारी आदेश का उल्लंघन करते हुए अपने घरों में डटे हैं, सैकड़ों गांव जल-सत्याग्रह के अंतिम दौर में सहभागी हैं। सालों से इस आंदोलन पर अपनी निगाहें जमाये लोग यह जानते हैं कि इसके प्रत्येक नये चरण का सरोकार एक कदम पीछे से रहा है। पहले इसका उद्देश्य इस डैम को न बनने देना था, जो बाद में डैम की ऊंचाई कम करना हुआ और अब इसका यह अंतिम दौर मध्य प्रदेश में विस्थापित होने वाले लोगों के लिए राहत तथा पुनर्वास पर केंद्रित है। इस डैम के निर्माण की अनुमति देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने निर्माण के पूर्व ही प्रभावितों के पुनर्वास की शर्त रखी थी।
-श्याम सिंह सिकरवार