19-Aug-2017 07:15 AM
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डोकलाम पर भारत का रूख और शून्य से नीचे तापमान में भी भारतीय सैनिकों का अटल रूप देखकर चीन की युद्ध की चाल उल्टी पड़ गई है। चीन लगातार डोकलाम मामले पर अनावश्यक उग्रता का प्रदर्शन कर रहा है। चीन की युद्ध की अंतहीन धमकियों के बीच भारतीय संसद में विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने स्पष्ट कर दिया कि भारत सीमा से पीछे नहीं हटेगा, परंतु मामले के शांतिपूर्ण समाधान हेतु सक्रिय कूटनीतिक प्रयास जारी हैं। जबकि चीनी मुखपत्र ग्लोबल टाइम्सÓ अब भी युद्ध की धमकियों से भरा हुआ है। अखबार में छपे एक लेख में चीनी सैन्य विशेषज्ञ ने कहा कि चीन छोटे स्तर के युद्ध की तैयारी कर रहा है। शंघाई एकेडमी ऑफ सोशल साइंसेज में अंतरराष्ट्रीय राजनीति के शोधार्थी हू झियोंग ने कहा कि संक्षिप्त मिलिट्री ऑपरेशन के जरिए चीन भारतीय सैनिकों को दो हफ्ते में डोकलाम से पीछे ढकेल देगा।
शायद इस तरह की धमकी देने वाले चीनी विशेषज्ञ हू को युद्ध रणनीति का प्रारंभिक ज्ञान भी नहीं है। डोकलाम में भारत जिस तरह से महत्वपूर्ण सामरिक स्थिति में मौजूद है, वहां भारतीय पक्ष, चीनी पक्ष से कम से कम 9 गुना मजबूत है। अर्थात् भारत के एक सैनिक के समतुल्य चीन को 9 सैनिक खड़े करने होंगे। ऐसी स्थिति में डोकलाम में भारत को हिला पाना भी चीन के लिए कठिन होगा। भारत और चीन की भौगोलिक स्थिति भी भारत के पक्ष में है। जंग होने पर चीनी विमानों को तिब्बत के ऊंचे पठार से उड़ान भरनी होगी। ऐसे में न तो चीनी विमानों में ज्यादा विस्फोटक लादे जा सकते हैं और न ही ज्यादा इंधन भरा जा सकता हैं। चीनी वायुसेना विमानों में हवा में इंधन भरने में भी उतना सक्षम नहीं है। युद्ध की स्थिति में चीन के जे-11 और जे-10 विमान चोंग डू सैन्य क्षेत्र से उड़ान भरेंगे। वहीं भारत ने असम के तेजपुर में सुखोई 30 का ठोस बेस बनाया है। युद्ध की स्थिति में विमान यहां से तेजी से उड़ान भर सकेंगे। पश्चिमी हवाई कमान के पूर्व एयर मार्शल चीफ पीएस अहलूवालिया कहते हैं- भारतीय वायु सेना पीएलए के पहले कदम का इंतजार नहीं करेगी और हमारे लड़ाके उनके सघन क्षेत्रों को निशाना बनाएंगे।Ó
आज उत्तर पूर्व में हमारे तीन सैन्य कोर यानी करीब तीन लाख जवान तैनात हैं। इस क्षेत्र में कभी कंपनियां हुआ करती थीं, लेकिन अब वहां ब्रिगेड हैं। ज्ञात हो एक कंपनी में 100 जवान होते हैं, जबकि एक ब्रिगेड में 3000 जवान होते हैं। इससे पूर्वोत्तर क्षेत्र में सामान्य स्थिति में सेना की भारी-भरकम उपस्थिति को समझा जा सकता है। ऐसे में चीनी विशेषज्ञ हू झियोंग के सीमित सैन्य ऑपरेशन द्वारा भारत को डोकलाम से भारत निकालने की बात दिवास्वप्न ही है। अगर ऐसा कुछ होगा तो चीन को ही भारत, डोकलाम से निर्णायक दूरी तक पीछे कर देगा।
डोकलाम को लेकर हताशा में पड़े चीन ने अब गतिरोध के लिए भारतीय प्रधानमंत्री मोदी के सख्त रवैये को जिम्मेदार ठहराया है। ग्लोबल टाइम्स के अनुसार अगर भारतीय सेना डोकलाम से पीछे नहीं हटती तो युद्ध तय है, और अगर युद्ध होता है तो उसका नतीजा सभी जानते हैं। इस तरह बौखलाहट में चीन भारतीय जनमानस को युद्ध का भय दिखा रहा है। डोकलाम विवाद पर चीन अत्यधिक दबाव में है, जिसके कारण उसके हताशापूर्ण व्यवहार की पुनरावृत्ति बारंबर हो रही है। बाकी पड़ोसियों को लाल आंखे दिखाने वाली चीनी सेना के सामने इस बार एक मजबूत आर्मी है। दांव पर सिर्फ डोकलाम की जमीन ही नहीं है बल्कि अरबों डॉलर की आर्थिक तरक्की भी है। यह वही आर्थिक विकास है, जिसकी बदौलत चीन इतना ताकतवर हुआ है। भारत से सशस्त्र संघर्ष की पहली चोट इसी पर पड़ेगी।
हताशा में चीन
डोकलाम पर चीनी हताशा का महत्वपूर्ण कारण नवंबर में होने वाली पंचवर्षीय पार्टी कांग्रेस की होने वाली बैठक है। इसे ध्यान में रखते हुए चीन भारत को मनोवैज्ञानिक रूप से हराने के लिए धमकियों की श्रृंखला खड़ा कर रहा है। नवंबर के कम्युनिस्ट पार्टी की इस बैठक में कमजोरी के कोई भी संकेत शी जिनपिंग के प्रतिद्वंदियों का सशक्तीकरण कर सकता है, जो शी जिनपिंग कदापि नहीं चाहेंगे। लेकिन तमाम प्रयासों के बावजूद जब चीन को मनोवांछित सफलता नहीं मिल रही है, तो वह असंतुलित व्यवहार कर रहा है। इस असंतुलित चीनी व्यवहार में उसकी हताशा को देखा जा सकता है। दरअसल चीन के हताशापूर्ण व्यवहार में हो रही गड़बडिय़ों की तो अब चीनी विशेषज्ञ ही आलोचना करने लगे हैं। चीनी सामरिक मामलों के जानकार वांग ताओ ताओ ने अरुणाचल प्रदेश पर चीन के दावे को ही नकारा है। उन्होंने कहा है कि चीन और भारत के बीच विवादित क्षेत्र को लेकर वर्षों से तल्ख रिश्ता है।
-इंद्रकुमार