19-Aug-2017 06:48 AM
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प्रशासनिक व्यवस्था को चुस्त दुरुस्त और सक्रिय रखने के लिए अलग-अलग कार्यों के लिए अलग-अलग पद बनाए गए हैं। उच्च पद पर बैठा अधिकारी अपने नीचे वाले पदों पर तैनात अधिकारियों-कर्मचारियों के कार्यों की मानीटरिंग करता है। इससे प्रशासनिक व्यवस्था दुरुस्त रहती है। लेकिन मप्र की प्रशासनिक व्यवस्था में यह देखा जा रहा है कि सरकार ने एक ही अधिकारी को खिलाड़ी और कोच वाली भूमिका दे रखी है। इस कारण उक्त अधिकार अपने दोनों पदों के कार्यों के साथ न्याय नहीं कर पा रहे हैं।
मध्यप्रदेश सरकार ने कुछ विभागों में एक ही अधिकारी को प्रमुख सचिव और विभागाध्यक्ष (एमडी) या आयुक्त का प्रभार दे दिया है, जबकि इनके अधिकार और कार्य अलग-अलग होते हैं। किसी भी विभाग के प्रमुख सचिव का कार्य। शासन की नीतियों को फील्ड में क्रियान्वित करना होता है। वह मंत्रीमंडल के आवश्यक निर्देश प्राप्त कर उनका नियंत्रण और पर्यवेक्षण की जिम्मेदारी निभाता है। वहीं एमडी का काम शासन की नीति अनुसार जिले में तैनात विभागीय अधिकारियों से काम कराना होता है। लेकिन जब दोनों काम एक ही अधिकारी के हाथ में होता है तो पूरी व्यवस्था चरमरा सी जाती है। स्थिति यह हो जाती है कि जिस प्रमुख सचिव को एमडी की भी जिम्मेदारी दी जाती है, वह विभाग का कार्यालय प्रमुख होने के बाद भी कार्यालय नहीं जा पाता है। विभाग का सारा काम वह मंत्रालय में ही बैठकर करता है। इस कारण एमडी कार्यालय का अमला भी मंत्रालय आकर विभागीय काम कराता है। एमडी के कार्यालय नहीं जाने से वहां अराजकता का माहौल निर्मित हो जाता है। इसके बावजूद शासन ने कई अधिकारियों को एक ही विभाग में दोहरे पद दे दिए हंै।
1987 बैच की आईएएस अधिकारी शिखा दुबे को आयुष विभाग का प्रमुख सचिव के साथ ही आयुक्त-सह-संचालक का पद भी दिया गया है। इसी तरह 1990 बैच के अधिकारी अशोक शाह को सामाजिक न्याय नि:शक्तजन कल्याण विभाग के प्रमुख सचिव के साथ आयुक्त का भी प्रभार दिया गया है। 1991 बैच के मनु श्रीवास्तव को ऊर्जा विभाग का प्रमुख सचिव के साथ ही एमडी भी बनाया गया है। आलम यह है कि मनु श्रीवास्तव मंत्रालय में बैठते ही नहीं हैं। वे हमेशा ऊर्जा विकास निगम में बैठते हैं। जब कभी विभागीय बैठक होती है तब ही वह मंत्रालय आते हैं। 1991 बैच के एसके मिश्रा को प्रमुख सचिव के साथ ही माध्यम और एमपी एग्रो का एमडी बनाया गया है। 1992 बैच के अधिकारी वीएल कांताराव को प्रमुख सचिव के साथ ही उद्योग विभाग का आयुक्त और लघुउद्योग निगम का एमडी बनाया गया है। इसी तरह 1994 बैच के आईएएस अधिकारी हरिरंजन राव को पर्यटन विभाग के सचिव और एमडी जिम्मेदारी है।
इन अधिकारियों की तरह कुछ सीनियर आईएएस और हैं जो प्रमुख सचिव बनने के बाद भी उन्हें विभागाध्यक्ष बनाया गया है। इनमें 1992 बैच की कल्पना श्रीवास्तव और 1993 बैच के नीरज मंडलोई हैं। कल्पना श्रीवास्तव तकनीकी शिक्षा विभाग में प्रमुख सचिव के बाद अब महानिरीक्षक पंजीयक बना दिया गया है। इसी तरह प्रमुख सचिव के पद पर पदोन्नत नीरज मंडलोई को आयुक्त उच्च शिक्षा बनाया गया है। यह एक तरह से पदान्नवत की अवस्था है। ऐसे में अधिकारी अपनी क्षमता से काम नहीं कर पाता है।
सीनियर की जगह जूनियरों को बनाया एमडी
प्रशासनिक व्यवस्था के अनुसार सीनियर आईएएस अधिकारियों को किसी विभाग का एमडी बनाया जाना चाहिए, लेकिन देखा यह जा रहा है कि कई युवा अधिकारियों को एमडी बनाया दिया गया है। लेकिन अभी हाल ही में सरकार ने 2008 बैच के विकास नरवाल, 2009 बैच के श्रीकांत भनोट, प्रमोटी अधिकारियों में 2005 बैच के रविंद्र सिंह और इसी बैच की अरुणा गुप्ता को एमडी बनाया है। एमडी को प्रमुख सचिव या सचिव को निर्देशित करना पड़ता है, जो वरिष्ठ आईएएस होते हैं। इस कारण देखा यह जा रहा है कि कई एमडी कलेक्टर और सचिव के सामने अपनी बात दमदारी से नहीं रख पा रहे हैं। हालात ऐसे हैं कि जिन प्रमोटी अफसरों को एमडी बनाया गया है वे भी अपनी बात ठीक से नहीं रख पाते हैं। इससे प्रशासनिक व्यवस्था गड़बड़ा रही है।
-कुमार राजेंद्र