सरकार की असली परीक्षा
19-Aug-2017 06:42 AM 1234807
मप्र में एक तरफ सरकार विकास के बड़े-बड़े दावे कर रही है, वहीं दूसरी तरफ नगरीय निकाय चुनाव जीतने के लिए भी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को घर-घर दस्तक देनी पड़ी है। यह आश्चर्यजनक है। साथ ही भाजपा और उसकी सरकार के लिए चिंता का विषय की छोटे-छोटे चुनाव के लिए भी मुख्यमंत्री को उतरना पड़ रहा है। दरअसल, विधानसभा चुनाव से पहले सरकार की असली परीक्षा नगरीय निकाय चुनावों में होगी। 11 अगस्त को 43 नगरीय निकायों में 71 प्रतिशत मतदान के बाद भाजपा और कांग्रेस के दावों का फैसला ईवीएम में बंद हो गया है। 16 अगस्त को जब मतगणना शुरू होगी तब यह तथ्य सामने आएगा कि सरकार जनता के मन पर कितनी छाप छोड़ पाई है। दरअसल जून में हुए किसान आंदोलन के बाद प्रदेश में माहौल बना हुआ है कि किसान भाजपा सरकार के खिलाफ हो गए हैं। जिन क्षेत्रों में मतदान हुआ है उनमें से अधिकांश ग्रामीण क्षेत्रों में आते हैं जहां किसानों की संख्या सबसे अधिक है। अत: विधानसभा चुनाव से पहले यह तस्वीर साफ हो जाएगी कि क्या किसान सरकार के खिलाफ हैं। अगर ऐसा होता है तो सरकार और भाजपा संगठन डेमेज कंट्रोल में जुट जाएगा। उधर भाजपा के खिलाफ परिणाम आने से कांग्रेस को 2018 में सत्ता में वापसी के लिए उम्मीद की एक किरण नजर आ जाएगी। हालांकि ये नगरीय निकाय चुनाव भाजपा और कांग्रेस दोनों के लिए किसी अग्नि परीक्षा से कम नहीं है। हालांकि इस बार निकाय चुनाव छनेरा, सैलाना, सारनी, आठनेर, चिचोली, झाबुआ, रानापुर, थांदला, पेटलावद, अलीराजपुर, भाभरा, जोबट, भीकनगांव, महेश्वर, मंडलेश्वर, नेपानगर, जुन्नारदेव, दमुआ, पांढुर्ना, सौंसर, हर्रई, मोहगांव, लखनादौन, मंडला, नैनपुर, निवास, बम्हनी बंजर, बिछिया, शहपुरा, बैहर, शहडोल, जयसिंह नगर, बुढार, कोतमा, बिजुरी, पाली में हुए हैं, लेकिन माना जा रहा है कि ये चुनाव परिणाम प्रदेश की राजनीति की दिशा-दशा तय करेंगे। यही कारण है कि भाजपा की तरफ से मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार सिंह चौहान और कई मंत्रियों ने जमकर प्रचार किया है। उधर भाजपा और कांग्रेस दोनों के लिए बागी इस चुनाव में सबसे बड़ी समस्या बनकर उभरे हैं। बागी कई प्रत्याशियों का चुनावी गणित बिगाड़ सकते हैं। भाजपा की सबसे बड़ी परीक्षा सनावद, डबरा, जैतवारा, कैलारस, गाडरवारा, सबलगढ़, शमशाबाद में है। दरअसल यहां भाजपा की नींद बागियों ने उड़ा रखी है। करीब एक दर्जन से अधिक स्थानों पर उसे अपनी ही पार्टी के बागियों से चुनौती मिली है। सीएम और प्रदेशाध्यक्ष के तूफानी दौरों ने भाजपा के पक्ष में माहौल तो तैयार किया है पर बागियों के कारण होने वाली नुकसान की चिंता उसे सता रही है। भाजपा को सबसे ज्यादा चिंता झाबुआ, अलिराजपुर जिलों की है। झाबुआ लोकसभा क्षेत्र के आठ नगरीय निकायों में मतदान हुए हैं। यहां भाजपा को अपने ही नेताओं के भितरघात का खतरा सता रहा है। अलिराजपुर में भाजपा महिला मोर्चा की पूर्व जिलाध्यक्ष जैना गहरवाल ने बागी प्रत्याशी के रूप में मैदान में उतरकर मुश्किलें बढ़ा दी है। यहां से भाजपा ने विधायक माधो सिंह डाबर की पत्नी निर्मला डाबर को मैदान में उतारा है। इसी तरह थांदला में भाजपा के बंटी डामोर को भाजपा के ही पूर्व नगर मंत्री दिलीप डामौर के मैदान में उतरने से चुनौती मिली है। दिलीप डामौर लंबे समय से आरएसएस से जुड़े रहे हैं। इसी तरह झाबुआ में भाजपा प्रत्याशी बसंती धन सिंह भी कार्यकर्ताओं की नाराजगी के चलते कड़े मुकाबले में फंसी है। राणापुर में सुनीता अजनार भी कड़े मुकाबले में फंसी बताई जा रही है। सैलाना में भाजपा प्रत्याशी कांति जोशी के खिलाफ विधायक प्रतिनिधि रहे बाबूलाल पाटीदार की पत्नी शिवकन्या पाटीदार उनकी जीत की राह में खतरा बन गई हैं। इसी तरह बालाघाट के बैहर में दिलीप उइके भाजपा के लिए दिक्कत खड़ी कर रहे हैं। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार सिंह चौहान ने डेमेज कंट्रोल करने के लिए कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है, लेकिन इनका यह प्रयास कितना कारगर होगा यह तो 16 अगस्त को पता चलेगा। इस चुनाव में जहां दोनों ही राजनैतिक दलों के अपने-अपने दावे और मुद्दे है, लेकिन मतदाताओं के मौन ने उनकी परेशानी बढ़ा दी है। बगावत करने वालों की भाजपा में जगह नहीं भाजपा प्रदेश अध्यक्ष एवं सांसद नंदकुमार सिंह चौहान नगरीय निकाय चुनाव में बगावत करने वालों के खिलाफ सख्त हो गए हैं। उनका कहना है कि पार्टी से बगावत करने वाले, पार्टी प्रत्याशी के खिलाफ चुनाव लडऩे वाले और चुनाव के बाद भाजपा में आने का दुष्प्रचार करने वालों के लिए पार्टी में कोई जगह नहीं है। ऐसे लोगों को किसी भी सूरत में पार्टी में नहीं लिया जाएगा। चौहान कहते हैं कि कुछ लोग चुनाव प्रचार के दौरान जनता को यह बता रहे थे कि चुनाव जीतने के बाद वे भाजपा में शामिल हो जाएंगे, तो ये उनका भ्रम है। वे जनता को धोखा दे रहे हैं। पार्टी से बाहर निकाले गए लोगों के लिए यही फैसला है कि उन्हें पार्टी में वापस नहीं लिया जाएगा। उनके लिए पार्टी के दरवाजे बंद हो चुके हैं। -नवीन रघुवंशी
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