19-Aug-2017 06:37 AM
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यूपीए के दौर में एक वक्त था जब नेहरू-गांधी परिवार तक अपनी बात पहुंचाने के लिए न केवल कांग्रेस कार्यकर्ता बल्कि पार्टी के मुख्यमंत्री तक दिग्विजय सिंह के दरवाजे पर दस्तक दिया करते थे। उन्हें पार्टी का अनाधिकारिक प्रवक्ता माना जाता था। कहा जाता था कि कांग्रेस जो बात आधिकारिक रूप से नहीं कह सकती, वो दिग्विजय सिंह कहते हैं। वो यूपीए के दोनों कार्यकाल में बिना किसी मंत्रालय के गांधी परिवार से अपने नजदीकी के बूते सत्ता के गलियारों में ताकतवर बने रहे। अब हालात बदल गए हैं। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने दिग्विजय सिंह से तेलंगाना का प्रभार वापस ले लिया था। इससे पहले उन्हें गोवा और कर्नाटक के प्रभार से हटाया गया था।
राजनीतिक जानकार ताजा घटनाक्रम को पार्टी में दिग्विजय के घटते कद और आलाकमान की उनके प्रति नाराजगी के तौर पर देख रहे हैं। दिग्विजय सिंह करीब चार साल तक तेलंगाना के प्रभारी रहे। कार्यकाल के दौरान सिंह ने सनसनीखेज आरोप लगाया था कि तेलंगाना पुलिस फर्जी इस्लामिक स्टेट वेबसाइट बनाकर मुस्लिम युवकों को फंसा रही है। वहीं, असेंबली चुनावों में खराब प्रदर्शन के लिए भी दिग्विजय पार्टी के एक धड़े के निशाने पर थे। दिग्विजय कुछ वक्त पहले भी सुर्खियों में थे, जब कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी होकर भी गोवा में सरकार बनाने में नाकाम रही थी। तेलंगाना का प्रभार छिनने के बाद अब यह सवाल उठने शुरू हो गए हैं कि क्या आंध्र प्रदेश दिग्विजय सिंह के पास रहेगा या वह ऑल इंडिया कांग्रेस कमिटी से बाहर हो जाएंगा?
अब तो सवाल उठने लगे हैं कि क्या दिग्विजय सिंह चूक गए हैं? यानी बेकाम हो गए है? क्या दिग्विजय सिंह के अच्छे दिन गुजर गए? इस सवाल पर कांग्रेस पार्टी के मीडिया सेल से जुड़े एसवी रमणी कहते हैं, पहले लोग ये सोचते थे कि राहुल गांधी पर दिग्विजय सिंह खासा असर रखते हैं। लोग अब ये कह रहे हैं कि उन्हें किनारे कर दिया गया है। हालांकि यह सच है कि नेहरू-गांधी परिवार से उनके रिश्ते पहले जैसे ही हैं। सोनिया गांधी, राहुल गांधी और दिग्विजय सिंह के आपसी संबंधों पर हम बाहर से कुछ नहीं कह सकते हैं।
यह भी खबर है कि कुछ नेताओं ने हाई कमान से शिकायत की कि दिग्विजय सिंह को गोवा, कर्नाटक, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश का प्रभार दिए जाने के कारण वो किसी भी प्रदेश के साथ न्याय नहीं कर पा रहे हैं। कई लोगों ने दिग्विजय की कार्यशैली की खुलेआम आलोचना की जिनमें एआईसीसी के पूर्व सचिव वी हनुमंतराव एक हैं। हनुमंतराव ने कहा, जिन राज्यों के वो प्रभारी रहे, उन पर उनका ध्यान ही नहीं रहा। गोवा में सरकार गठन जैसे अहम मुद्दों पर वो विफल रहे। पार्टी में गुटबाजी को खत्म करने के लिए उन्होंने कुछ नहीं किया। हनुमंतराव की बातों का लब्बोलुआब यह था कि दिग्विजय ने न तो जमीनी स्तर पर कोई काम किया और न ही ऐसा काम करने वालों पर ध्यान दिया। हनुमंतराव का मानना है कि दिग्विजय सिंह की कार्यशैली से पार्टी को नुकसान हो रहा था और इसीलिए राहुल गांधी ने उन्हें तेलंगाना प्रदेश कांग्रेस के प्रभार से मुक्त करने का फैसला लिया।
उधर दिग्विजय समर्थक नेताओं का कहना है की वे जल्द ही नर्मदा परिक्रमा पदयात्रा करने जा रहे हैं। हालांकि वो लंबे अरसे से इसके बारे में सोच रहे थे लेकिन जिम्मेदारियों के चलते उन्हें यह मौका नहीं मिल पाया था। अब आलाकमान ने इसके लिए उन्हें प्रभार से मुक्त किया है। सियासी हलकों में कयास लगाए जा रहे हैं कि गुजरात और मध्य प्रदेश के आगामी चुनावों के मद्देनजर ही कांग्रेस ने यह प्रपंच रचा है।
आज भी दमदार हैं दिग्विजय
कांग्रेस के महासचिव दिग्विजय सिंह के मप्र में सर्वाधिक विरोध दर्ज होता है परंतु यह भी सच है कि इसी मप्र में उनका आज भी काफी प्रशंसक हैं। सैंकड़ों क्षेत्रीय नेता दिग्विजय सिंह से जुड़े हुए हैं और आज तक वो जिस भी मुकाम पर हैं, दिग्विजय सिंह के आशीर्वाद के कारण ही हैं। उनमें से कई लोगों का मानना है कि यह शुभ और अशुभ काम खेल है। दिग्विजय सिंह ने मप्र में 10 साल शासन किया। 2003 के चुनाव से पहले अचानक उन्होंने कुछ ऐसे अप्रिय फैसले किए जिसके कारण उनके वो सारे प्रशंसक नाराज हो गए जो बिना स्वार्थ के उनसे जुड़े हुए थे। नतीजा उन्हें शर्मनाक हार का सामना करना पड़ा। बावजूद इसके उनकी कांग्रेस में पकड़ कमजोर नहीं हुई। उन्होंने 10 साल का सन्यास बिताया परंतु वो इतने पॉवरफुल थे कि उनके समर्थकों को ना तो सन्यास लेना पड़ा और ना ही गुट बदलकर नए नेता की शरण में जाना पड़ा।
-भोपाल से अरविंद नारद